मुख्य बातें
- छोटे बच्चे के विकास में असर डालती है आपकी आर्थिक स्थिति
- जीवन में अच्छे संस्कार ज्ञान का है सबसे पहला स्त्रोत
- आत्मनिर्भर बनने से बच्चा देता है अपना 100 फीसदी
Parenting Tips in Hindi: बच्चे पालना, उनकी देखभाल करना, उनके विकास, परवरिश तथा पढ़ाई में योगदान देना, बिल्कुल आसान नहीं होता। अगर आप भी एक पैरेंट हैं, तो ये सवाल आपके मन में उठना भी लाजमी है कि, आप कैसे अपने बच्चे को पढ़ने लिखने और जीवन की राह में और सफल बना सकते हैं। इस सवाल के चलते माता-पिता अक्सर बच्चों को जल्दी स्कूल में डालने की होड़ में रहते हैं। ये सोचकर की बच्चा सिर्फ वहीं जाकर शिक्षा के क्षेत्र में कुछ ज्यादा सीख सकता है। लेकिन बार्सिलोना में शिक्षा का थिंक टैंक मानी जाने वाली बॉफेल फाउंडेशन की नई स्टडी इस धारणा का विरोध करती है।
इस शोध में पता चला है कि, बच्चों के ज्ञान का, शब्दो का भंडार तब से बनने लग जाता है। जब वे बोलना, पढ़ना या लिखना तक नहीं सीखते हैं। जो इस बात को समझने पर भी जोर डालता है कि, मां बाप ही बच्चों के जीवन में संस्कार, अच्छे आचरण और ज्ञान का संचार करने का सबसे पहला और महत्वपूर्ण स्रोत होते हैं। और बच्चों का ये विकास केवल सामाजिक, शारीरिक या मानसिक नहीं, शैक्षणिक भी होता है। रिसर्च में इस बात का खुलासा हुआ है कि, अगर आप अपने 6 महीने के बच्चे के आसपास कुछ पढ़ते हैं या बात करते हैं। तो वो शब्द बहुत आसानी से उसके दिमाग में सेट हो जाते हैं, तथा उसकी शुरुआती स्कूली पढ़ाई के बराबर माने जा सकते हैं।
इस घर के बच्चे जल्दी पढ़ना-लिखना सीखते हैं
ये बात आपको काफी आश्चर्यजनक लग सकती है कि, आर्थिक रूप से संपन्न और गरीब परिवार के बीच का फर्क, नन्हें शिशु की शिक्षा पर भी असर डालता है। शोध में इस बात के सबूत दिए गए हैं कि आर्थिक रूप से कमजोर परिवार की तुलना में संपन्न परिवार के बच्चे जल्दी पढ़ना-लिखना सीख जाते हैं। बिना किसी बाहरी फोर्स या प्रयास के, इन बच्चों का शब्द भंडार कमजोर परिवार के बच्चों की तुलना में करीब 3 करोड़ शब्दों से आगे होता है। यानी कि इन्होंने अपने शुरुआती जीवन में ज्यादा शब्द सुने और सीखे होते हैं। हालांकि इस आंकड़े में स्थिति की मांग के अनुसार बदलाव हो सकता है।
अब आपको लग रहा होगा इस आंकड़े से होगा क्या? तो इसका जवाब आपको आपके बच्चे के 9 साल तक का होने तक खुद ब खुद पता चल जाएगा। बता दें कि ऐसा आपको बच्चें के अच्छे एवं सकारात्मक अकादमिक प्रदर्शन के रूप में देखने को मिल सकता है।
बच्चे का होमवर्क करवाना है गलत?
बॉफेल फाउंडेशन का ये शोध समाज की एक और बहुत आम धारणा का विरोध करती नजर आती है। आपके भी अगर स्कूल जाने वाले बच्चे हैं तो, आप उनका जरूर ही उनके होमवर्क में उनका हाथ बटाते होंगे। लेकिन रिसर्च का कहना ये है कि, ऐसा करना बिल्कुल गलत है। इसके पीछे की धारणा ये हो सकती है कि, बच्चा जब खुद से कुछ करता है उसके मन में हारने या फेल होने का ख्याल होता है। तो वे छोटे से छोटे काम को पूरा करने में भी अपना 100 प्रतिशत देते हैं। जिसका सीधा सकारात्मक असर उसके सीखने की क्षमता में वृद्धि करता है।
इसी के साथ अगर आप अपने बच्चे की पढ़ाई या होमवर्क में अपना योगदान देना चाहते हैं। तो कोशिश करें कि आप उनके लिए पढ़ने की कोई जगह या समय निर्धारित कर दें। जिससे उनके दिमाग में अनुशासन और एक सेट समय पर पढ़ने की ललक उठे।
ऐसे जिम्मेदार हैं बच्चे के धीरे विकास के लिए माता-पिता
पॉल गोसर्की जो इक्विटी लिटरेसी इंस्टीट्यूट के संस्थापक हैं तथा जिन्होंने डेफिसिट आइडियोलॉजी का टर्म दिया है, कहते हैं कि बच्चों के धीमे विकास के पीछे का कारण मां-बाप की परवरिश में कुछ गलती हो सकता है। यानी कि माता पिता का अपना व्यवहार, सामाजिक-आर्थिक स्थिति का असर बच्चे की शैक्षणिक उपलब्धियों पर पड़ता है।
अच्छा रहता है भाषा का उच्चारण
शोध इस बात की ओर भी संकेत करता है कि, वे बच्चे जो अच्छा पढ़ते हैं। जिनकी भाषा का उच्चारण अच्छा रहता है। वे शिक्षकों की नजर में अक्सर काबिल माने जाते हैं, और ऐसा जानबूझकर नहीं किया जाता है।
आप शुरुआती दिनों से ही अपने बच्चे के आसपास किताबें पढ़े। उससे बात करें, नए शब्दों का इस्तेमाल करके उसके ज्ञान और शब्द भंडार को बढ़ावा दें। जिससे जब आपका बच्चा थोड़ा बढ़ा होगा, अपने आप दूसरों की तुलना में ज्यादा काबिल साबित होगा।