करपात्री महाराज: उतना ही खाते जितना दोनों हाथों में आ पाता, साधुओं की लाश देख इंदिरा गांधी को दे दिया था 'श्राप'

Karpatri Maharaj: 'द ग्रेट इंडियन पॉलिटिकल बाबा' के आज के अंक में हम बात करेंगे करपात्री महाराज की जिनका राजनीतिक गलियारे में भी काफी सम्मान था। कई नेता उनके दरबार में हाजिरी लगाया करते थे। नेहरू और इंदिरा से भी उनके मधुर संबंध रहे। हालांकि देश के आजाद होने के बाद उन्होंने नेहरू सरकार के हिंदू कोड बिल के खिलाफ बड़ा आंदोलन छेड़ा।

Political Baba: कहानी करपात्री महाराज की

The Great Indian Political Baba: 30 जुलाई 1907 को प्रतापगढ़ में लालगंज के भटनी गांव के ब्राह्मण परिवार में एक बालक का जन्म हुआ। माता-पिता ने इस बालक का नाम रखा हरि नारायण ओझा। 15 साल की उम्र में हरि नारायण ने घर-परिवार का त्याग कर अध्यात्म का रास्ता चुन लिया। वह प्रतापगढ़ से बनारस चले गए और वहां स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती महाराज को अपना गुरु मान लिया। ब्रह्मानंद सरस्वती ने हरिनारायण को दीक्षा दी। दीक्षा प्राप्त करने के बाद हरिनारायण का नाम हरिहरानंद सरस्वती हो गया। वे हिन्दू दशनामी परम्परा के भिक्षु थे। हरिहरानंद सरस्वती को ही दुनिया करपात्री महाराज के नाम से जानती है।

करपात्री कैसे पड़ा नाम

हरिहरानंद सरस्वती कभी बर्तन में खाना नहीं खाते थे। वह उतना ही भोजन करते, जितना उनके दोनों हाथों में आ पाता था। हाथों को संस्कृत में कर कहते हैं। कर का पात्र बनाने के कारण वह करपात्री कहलाए। करपात्री महाराज की स्मरण शक्ति को उनके अनुयायी ‘फोटोग्राफिक’ बताते थे। मतलब की उनकी स्मरण शक्ति इतनी तीव्र थी कि एक बार कोई चीज पढ़ लेने के वर्षों बाद भी बता देते थे कि ये किस किताब के किस पेज पर किस रूप में लिखा हुआ है।

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