Rukhmabai: पहली भारतीय जिसने पति से मांगा तलाक, जमकर हुआ था बवाल, देश की पहली लेडी डॉक्टर भी थीं रखमाबाई

Rukhmabai: The Life and Times of a Child Bride Turned Rebel Doctor के मुताबिक स्वत्तंत्रता संग्राम सेनानी बाल गंगाधर तिलक ने अपने अखबार में लिखा कि, 'रखमाबाई के इस कदम को हिंदू परंपराओं पर एक धब्बे के रूप में देखा जाना चाहिए। उसके जैसी महिलाओं के साथ ठीक वैसा ही व्यवहार किया जाना चाहिए जैसा हत्या के आरोपियों के साथ किया जाता है।'

Rukhmabai Biography

Rukhmabai: The Life and Times of a Child Bride Turned Rebel Doctor

जाने माने लेखक सुधीर चंद्रा की नई किताब आई है - Rukhmabai: The Life and Times of a Child Bride Turned Rebel Doctor. किताब को पब्लिश किया है पैन मैकमिलन इंडिया ने। किताब भारत की पहली महिला डॉक्टर रखमाबाई की बायोग्राफी है। इस किताब में बताया गया है कि कैसे एक बालिका वधू ने अपने हक की आवाज उठाई तो तब की ब्रिटिश महारानी तक को हस्तक्षेप करना पड़ा। रखमाबाई ने उस समय अपने पति से अलग होने की मांग की जब भारत में महिलाओं को ना के बराबर अधिकार थे। आइए इस किताब के जरिए जानते हैं रखमाबाई की अद्भुत कहानी:

रखमाबाई राउत का जन्म सन 1864 में मुंबई में हुआ था। रखमाबाई जब महज 11 साल की थीं तभी उनकी विधवा मां ने उनकी शादी करवा दी। हालांकि शादी के बाद पति के यहां जाने से मना करने के बाद रखमाबाई हमेशा अपनी मां के साथ ही रहीं। रखमाबाई के पति दादाजी भीकाजी ने कोर्ट में याचिका दायर कर मांग की कि रखमाबाई उन्हें अपने पति के तौर पर स्वीकार करें और उनके साथ आकर रहें। रखमाबाई ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि शादी के समय वह बहुत छोटी थीं। उनकी सहमति के बिना हुई इस शादी के लिए उन्हें कोई मजबूर नहीं कर सकता। कोर्ट ने रखमाबाई के पति के पक्ष में फैसला सुनाया और कहा कि अगर रखमाबाई अपने पति के पास वापस नहीं जाती हैं तो उन्हें 6 महीने के लिए जेल जाना पड़ेगा। रखमाबाई ने जेल जाना कबूल किया।

रखमाबाई के इस कदम ने पूरे देशभर में जमकर तूल पकड़ा। लोग उनकी आलोचना करने लगे। चरित्र पर भी सवाल उठाए गए। लोगों ने कहा कि ये कैसी महिला है जो अपने पति के साथ रहने से मना कर रही है। मामला यहां तक भड़का कि देश की आजादी के जननायक बाल गंगाधर तिलक ने भी रखमाबाई की आलोचना कर दी। बाल गंगाधर तिलक ने भी अपने अखबार में लिखा कि, 'रखमाबाई के इस कदम को हिंदू परंपराओं पर एक धब्बे के रूप में देखा जाना चाहिए। उसके जैसी महिलाओं के साथ ठीक वैसा ही व्यवहार किया जाना चाहिए जैसा चोर, व्यभिचारी और हत्या के आरोपियों के साथ किया जाता है।' तमाम आलोचनाओं के बाद भी रखमाबाई नहीं टूटीं।

रखमाबाई के इस पूरे संघर्ष में उनके सौतेले पिता सखाराम अर्जन चट्टान की तरह उनके साथ खड़े रहे। रखमाबाई ने अपनी लड़ाई को आगे बढ़ाते हुए जेल से ही तत्कालीन रानी विक्टोरिया को खत लिखा और अपने तलाक की अर्जी उनके सामने लगाई। रानी विक्टोरिया ने अदालत के फैसले को पलट दिया। रखमाबाई की जीत हुई।

रखमाबाई की जीत ने महिलाओं के कानूनी हक की किताब में एक नया अध्याय जोड़ा। इस केस के बाद कानून में पहली बार यह तय किया कि कम उम्र की लड़की के साथ यौन संबंध बनाने वाले को सज़ा हो सकती है, भले ही वह विवाहित क्यों ना हो। इसके उल्लंघन को बलात्कार की श्रेणी में रखा गया। केस जीतने के बाद रखमाबाई लंदन चली गईं।ब्रसेल्स से उन्होंने डॉक्टरी की पढ़ाई (एमडी) पूरी की। पढ़ाई पूरी कर वह भारत लौटीं और मुंबई के कामा अस्पताल में प्रैक्टिस करने लगीं। रखमाबाई भारत की पहली महिला एमडी और प्रैक्टिस करने वाली डॉक्टर बनीं।

रखमाबाई की इस बायोग्राफी में उनके जीवन के और भी संघर्षों पर बारीकी से प्रकाश डाला गया है। कैसे एक लड़की, जिसके सिर से नन्ही सी उम्र में पिता का साया उठ गया, ने अपने लिए ऐसी लड़ाई लड़ी कि वह इतिहास के पन्नों मे सुनहरे अक्षरों में दर्ज हो गया। इस किताब से भारत और दुनियाभर की करोड़ों महिलाएं प्रेरणा ले सकती हैं।

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Suneet Singh author

मैं टाइम्स नाऊ नवभारत के साथ बतौर डिप्टी न्यूज़ एडिटर जुड़ा हूं। मूल रूप से उत्तर प्रदेश में बलिया के रहने वाला हूं और साहित्य, संगीत और फिल्मों में म...और देखें

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