लंच पर मुलाकात, महाशिवरात्रि पर शादी, मुस्कुराते हुए खुद त्याग दिये प्राण, जानिए कौन थीं सद्गुरु की पत्नी?

Sadguru Jaggi Vasudeva: हाल ही में ईशा फाउंडेशन के संस्थापक सद्गुरु जग्गी वासुदेव की ब्रेन सर्जरी हुई है। सर्जरी कामयाब रही। पीएम नरेंद्र मोदी से कंगना रनौत तक ने उनके जल्द स्वस्थ होने की कामना की है।

Jaggi Vasudev Wife.

Photo Source: Isha Foundation

Sadguru Life Journey: सद्गुरु जग्गी वासुदेव - यह नाम आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है। सद्गुरु को आज भला कौन नहीं जानता है। सद्गुरु का नाम भारत के 50 सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों में लिया जाता है। इन दिनों वह अपनी सेहत को लेकर चर्चा में हैं। हाल ही में ईशा फाउंडेशन के संस्थापक सद्गुरु जग्गी वासुदेव की ब्रेन सर्जरी हुई है। सर्जरी कामयाब रही। पीएम नरेंद्र मोदी से कंगना रनौत तक ने उनके जल्द स्वस्थ होने की कामना की है। सद्गुरु ने जग्गी वासुदेव से गुरु और फिर गुरु से सद्गुरु तक का सफर तय कर पूरी दुनिया में अपना एक अलग मुकाम बनाया है। आज बड़े-से बड़े नेता अभिनेता भी उनके दरबार में हाजिरी लगाते दिख जाते हैं।

बिजनेस किया करते थे सद्गुरुसद्गुरु का जन्म 03 सितंबर 1957 को कर्नाटक के मैसूर में एक संपन्न तेलुगु परिवार में हुआ। मां-बाप ने उन्हें नाम दिया- जगदीश ‘जग्गी’ वासुदेव। गांव से ही 12 वीं करने के बाद सद्गुरु ने मैसूर विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में ग्रेजुएशन किया। पढ़ाई के बाद वह बिजनेस करने लगे। उन्होंने ईंट भट्टों के कारोबार से पोल्ट्री तक का बिजनेस किया। लेकिन किस्मत ने उनके लिए कुछ और ही तय कर रखा था।

जगदीश वासुदेव कैसे बने सद्गुरुजग्गी वासुदेव जब 25 साल के थे तब उनके जीवन में एक ऐसी घटना घटी जिसने उनकी जिंदगी पूरी तरह से बदल दी। एक दिन वह मैसूर के ही चामुंडी हिल पर गए और वहां जा कर ऊंचाई पर बैठ गए। बैठे-बैठे वह ध्यानमग्न हो गए। जब उनकी आंख खुली तो उन्हें लगा 10 मिनट तक वह किसी और ही दुनिया में थे। लेकिन हकीकत ये थी कि वह 4 घंटे तक ध्यानमग्न थे। इसके बाद वह एक बार फिर ध्यान करने लगे।

इस बार जब उनकी आंख खुली तो उनके चारों ओर कई लोग बैठे थे। उन्हें पता चला कि वह पिछले 13 दिनों से ध्यान कर रहे हैं। ध्यान मग्न होने के बाद सद्गुरु को पता चला कि यह ऐसा अवस्था होती है, जिसमें व्यक्ति को होश तो रहता है लेकिन दिमाग और मन में विचार शून्य हो जाते हैं। इतना कि समय का भी कुछ अनुभव नहीं होता। इसके बाद सद्गुरु ने यह तय किया कि, अब वे इस अद्भुत अनुभव से सभी को अवगत कराएंगे। वहां से जगदीश वासुदेव का सद्गगुरु जग्गी वासुदेव वाला सफर शुरू हुआ।

अपनी विज्जी से सद्गुरु की पहली मुलाकातअध्यात्म और योग की दुनिया में जाने के करीब दो साल बाद एक लंच प्रोग्राम में उनकी मुलाकात विजयकुमारी से हुई। विजयकुमारी एक बैंक में काम करती थीँ। यह इन दोनों की पहली मुलाकात थी। इसके बाद कुछ समय तक दोनों के बीच थोड़ी और बातें हुईं। एक दूसरे को चिट्ठियां लिखी गईं। प्रेम पनपा और फिर साल 1984 में महाशिवरात्रि वाले दिन जग्गी वासुदेव और विजयकुमारी ने ब्याह रचा लिया। वियकुमारी को सद्गुरु प्यार से विज्जी कहते थे। शादी के बाद विज्जी भी अपने पति के साथ कार्यक्रमों में जाया करती थीं। दोनों अकसर मोटरसाइकिल की सवारी करते थे।

सद्गुरु की 'लक्ष्मी' राधाशादी के 6 साल बाद 1990 में सद्गुरु और विज्जी के घर बिटिया ने जन्म लिया। बेटी का नाम राधा रखा गया। बेटी के जन्म से पहले ही सद्गुरु ने ये तय कर लिया था कि उनकी संतान कहां पर पढ़ेगी। हुआ भी ऐसा ही। राधा ने शुरुआती शिक्षा मैसूर के ही ऋषि वैली स्कूल से पूरी की। राधा आज कला के क्षेत्र में बहुत अच्छा काम कर रही हैं।

जब सद्गुरु की पत्नी ने त्याग दिये प्राणजुलाई, 1996 में एक दिन सद्गुरु ध्यानलिंग की प्रतिष्ठा करने जा रहे थे। बकौल सद्गुरु- विज्जी ने तय कर लिया था कि लिंग की प्राण प्रतिष्ठा होते ही, वह अपना देह त्याग देंगी। विज्जी ने सार्वजनिक ऐलान कर दिया एक निश्चित पूर्णिमा को इस संसार से विदा ले लेंगी। सद्गुरु ने उन्हें समझाया तो वो बोलीं- इस समय, मेरा जीवन संपूर्ण है, बाहर और भीतर, कोई अभाव या कमी नहीं। मेरे लिए यही उचित समय है। मैं नहीं जानती कि जीवन में ऐसा समय दोबारा कब आएगा।

आखिरकार वो पूर्णिमा आ गई जिस दिन का विज्जी को इंतजार था। वह कुछ लोगों के साथ ध्यान की अवस्था में बैठीं। सद्गुरु बताते हैं कि ध्यान में जाने के आठ मिनट बाद, बिना किसी प्रयत्न के, सहज भाव से, मुस्कुराते हुए विज्जी ने अपने प्राण त्याग दिए। महासमाधि के वक्त विजयकुमारी उर्फी विज्जी महज 33 साल की थीं।

क्या होती है महासमाधिसद्गुरु के मुताबिक शरीर को बिना कोई हानि पहुंचाए, संसार से जाना आसान नहीं होता। अपने शरीर को उसी तरह त्याग देना, जिस तरह हम कपड़े बदल देते हैं, यह कोई साधारण बात नहीं है। जब कोई व्यक्ति जीवन में ऐसे बिंदु पर आ जाता है, जहां आ कर उसे लगता है कि उसे जो भी चाहिए था, वह सब पूरा हो गया है, और जीवन में देखने के लिए कुछ नहीं रहा, तो वह अपनी मर्जी से शरीर का त्याग कर देता है।

सद्गुरु आगे कहते हैं कि, अगर कोई भी संघर्ष या चोट होती है, तो इसका मतलब है कि उसने आत्महत्या की है। जब कोई संघर्ष न हो, और कोई इसी तरह संसार को छोड़ दे, जिस तरह हम कमरे से बाहर आ जाते हैं, तो इसे महासमाधि कहते हैं।

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Suneet Singh author

मैं टाइम्स नाऊ नवभारत के साथ बतौर डिप्टी न्यूज़ एडिटर जुड़ा हूं। मूल रूप से उत्तर प्रदेश में बलिया के रहने वाला हूं और साहित्य, संगीत और फिल्मों में म...और देखें

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