लंच पर मुलाकात, महाशिवरात्रि पर शादी, मुस्कुराते हुए खुद त्याग दिये प्राण, जानिए कौन थीं सद्गुरु की पत्नी?
Sadguru Jaggi Vasudeva: हाल ही में ईशा फाउंडेशन के संस्थापक सद्गुरु जग्गी वासुदेव की ब्रेन सर्जरी हुई है। सर्जरी कामयाब रही। पीएम नरेंद्र मोदी से कंगना रनौत तक ने उनके जल्द स्वस्थ होने की कामना की है।
Photo Source: Isha Foundation
बिजनेस किया करते थे सद्गुरु
सद्गुरु का जन्म 03 सितंबर 1957 को कर्नाटक के मैसूर में एक संपन्न तेलुगु परिवार में हुआ। मां-बाप ने उन्हें नाम दिया- जगदीश ‘जग्गी’ वासुदेव। गांव से ही 12 वीं करने के बाद सद्गुरु ने मैसूर विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में ग्रेजुएशन किया। पढ़ाई के बाद वह बिजनेस करने लगे। उन्होंने ईंट भट्टों के कारोबार से पोल्ट्री तक का बिजनेस किया। लेकिन किस्मत ने उनके लिए कुछ और ही तय कर रखा था।जगदीश वासुदेव कैसे बने सद्गुरु
जग्गी वासुदेव जब 25 साल के थे तब उनके जीवन में एक ऐसी घटना घटी जिसने उनकी जिंदगी पूरी तरह से बदल दी। एक दिन वह मैसूर के ही चामुंडी हिल पर गए और वहां जा कर ऊंचाई पर बैठ गए। बैठे-बैठे वह ध्यानमग्न हो गए। जब उनकी आंख खुली तो उन्हें लगा 10 मिनट तक वह किसी और ही दुनिया में थे। लेकिन हकीकत ये थी कि वह 4 घंटे तक ध्यानमग्न थे। इसके बाद वह एक बार फिर ध्यान करने लगे।अपनी विज्जी से सद्गुरु की पहली मुलाकात
अध्यात्म और योग की दुनिया में जाने के करीब दो साल बाद एक लंच प्रोग्राम में उनकी मुलाकात विजयकुमारी से हुई। विजयकुमारी एक बैंक में काम करती थीँ। यह इन दोनों की पहली मुलाकात थी। इसके बाद कुछ समय तक दोनों के बीच थोड़ी और बातें हुईं। एक दूसरे को चिट्ठियां लिखी गईं। प्रेम पनपा और फिर साल 1984 में महाशिवरात्रि वाले दिन जग्गी वासुदेव और विजयकुमारी ने ब्याह रचा लिया। वियकुमारी को सद्गुरु प्यार से विज्जी कहते थे। शादी के बाद विज्जी भी अपने पति के साथ कार्यक्रमों में जाया करती थीं। दोनों अकसर मोटरसाइकिल की सवारी करते थे।सद्गुरु की 'लक्ष्मी' राधा
शादी के 6 साल बाद 1990 में सद्गुरु और विज्जी के घर बिटिया ने जन्म लिया। बेटी का नाम राधा रखा गया। बेटी के जन्म से पहले ही सद्गुरु ने ये तय कर लिया था कि उनकी संतान कहां पर पढ़ेगी। हुआ भी ऐसा ही। राधा ने शुरुआती शिक्षा मैसूर के ही ऋषि वैली स्कूल से पूरी की। राधा आज कला के क्षेत्र में बहुत अच्छा काम कर रही हैं।जब सद्गुरु की पत्नी ने त्याग दिये प्राण
जुलाई, 1996 में एक दिन सद्गुरु ध्यानलिंग की प्रतिष्ठा करने जा रहे थे। बकौल सद्गुरु- विज्जी ने तय कर लिया था कि लिंग की प्राण प्रतिष्ठा होते ही, वह अपना देह त्याग देंगी। विज्जी ने सार्वजनिक ऐलान कर दिया एक निश्चित पूर्णिमा को इस संसार से विदा ले लेंगी। सद्गुरु ने उन्हें समझाया तो वो बोलीं- इस समय, मेरा जीवन संपूर्ण है, बाहर और भीतर, कोई अभाव या कमी नहीं। मेरे लिए यही उचित समय है। मैं नहीं जानती कि जीवन में ऐसा समय दोबारा कब आएगा।क्या होती है महासमाधि
सद्गुरु के मुताबिक शरीर को बिना कोई हानि पहुंचाए, संसार से जाना आसान नहीं होता। अपने शरीर को उसी तरह त्याग देना, जिस तरह हम कपड़े बदल देते हैं, यह कोई साधारण बात नहीं है। जब कोई व्यक्ति जीवन में ऐसे बिंदु पर आ जाता है, जहां आ कर उसे लगता है कि उसे जो भी चाहिए था, वह सब पूरा हो गया है, और जीवन में देखने के लिए कुछ नहीं रहा, तो वह अपनी मर्जी से शरीर का त्याग कर देता है।मैं टाइम्स नाऊ नवभारत के साथ बतौर डिप्टी न्यूज़ एडिटर जुड़ा हूं। मूल रूप से उत्तर प्रदेश में बलिया के रहने वाला हूं और साहित्य, संगीत और फिल्मों में म...और देखें
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