Sanskrit Shlokas for Success: संस्कृत के इन श्लोकों में छिपी है सफलता की गारंटी, खुशहाल जीवन के लिए गांठ बांध लें ये बातें

Sanskrit Shlokas for Success (सफलता पर संस्कृत श्लोक): आपको जीवन में सफलता (Sanskrit Shloka for Success) का स्वाद चखने के लिए कई जतन करने पड़ते हैं। हमारे वेदों पुराणो में सफलता के मूलमंत्र बताए गए हैं। संस्कृत के कई मंत्रों (Sanskrit Motivational Quotes in Hindi) में छिपी है सफलता का गारंटी। आइए डालते हैं ऐसे ही कुछ संस्कृत के श्लोकों (Sanskrit Success Shlokas Meaning in Hindi) और उनके हिंदी भावार्थ पर एक नजर:

Sanskrit Quotes for Success

Sanskrit Quotes for Success and Meaning in Hindi

Sanskrit Shlokas for Success in Hindi: सफल जीवन हर कोई चाहता है। हर कोई चाहता है कि वह जो भी काम (Sanskrit Motivational Quotes) करे उसे उसमें सफलता (Sanskrit quotes on success) मिले और उसका जीवन सुखों के साथ बीते। लेकिन ऐसा हो नहीं पाता है। दरअसल (Sanskrit Motivational Quotes) सिर्फ सोचने मात्र से ना तो आपके कोई काम बनेंगे और ना ही किसी काम में सफलता (Sanskrit success mantra) मिलेगी। आपको जीवन में सफलता (Sanskrit Shloka for Success) का स्वाद चखने के लिए कई जतन करने पड़ते हैं। हमारे वेदों पुराणो में सफलता के मूलमंत्र बताए गए हैं। संस्कृत के कई मंत्रों (Sanskrit Motivational Quotes in Hindi) में छिपी है सफलता का गारंटी। आइए डालते हैं ऐसे ही कुछ संस्कृत के श्लोकों (Sanskrit Success Shlokas) और उनके हिंदी भावार्थ पर एक नजर:

Sanskrit Motivational Quotes For Success | Sanskrit Shlokas for Success | संस्कृत में सफलता के मूलमंत्र

1. प्रभूतंकार्यमल्पंवातन्नरः कर्तुमिच्छति।
सर्वारंभेणतत्कार्यं सिंहादेकंप्रचक्षते॥
अर्थ: जैसे कोई शेर एकाग्रता के साथ झपट्टा मारकर पूरी ताकत से अपना शिकार करता है और उसकी सफलता निश्चित होती है। ठीक उसी प्रकार हमें अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए भी लक्ष्य पर ध्यान केंद्र‍ित कर पूरी मेहनत के साथ प्रयत्न करना चाहिए।
2. उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा:।
अर्थ: सिर्फ इच्छा करने से काम पूरे नहीं होते, बल्कि व्यक्ति के मेहनत करने से ही उसके काम पूरे होते हैं। जैसे सोये हुए शेर के मुंह में हिरण स्वयं नहीं आता, उसके लिए शेर को परिश्रम करना पड़ता है।
3. काक चेष्टा बको ध्यानं, श्वान निद्रा तथैव च।
अल्पहारी गृह त्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणं ॥
अर्थ: एक विद्यार्थी मे यह पांच लक्षण होने चाहिए - कौवे की तरह जानने की चेष्टा करने वाला, बगुले की तरह ध्यान लगाने वाला यानि एकाग्र, कुत्ते की तरह निंद्रा लेने वाला जो हल्की सी आहट से जग जाता है, अल्पाहारी यानि कम खाने वाला और गृह-त्यागी।
4. योगस्थः कुरु कर्माणि संगं त्यक्त्वा धनंजय ।
सिद्धयसिद्धयोः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ॥
अर्थ: इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे धनंजय! तू आसक्ति को त्यागकर, सफलताओं और विफलताओं में समान भाव लेकर सारे कर्मों को कर। ऐसी समता ही योग कहलाती है।
5. अलसस्य कुतो विद्या अविद्यस्य कुतो धनम् ।
अधनस्य कुतो मित्रममित्रस्य कुतः सुखम् ॥
अर्थ: आलसी इन्सान को विद्या कहां, विद्याविहीन को धन कहां, धनविहीन को मित्र कहां और मित्रविहीन को सुख कहां! अथार्त जीवन में इंसान को कुछ प्राप्त करना है तो उसे सबसे पहले आलस वाली प्रवृति का त्याग करना होगा।
6. उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।
क्षुरासन्नधारा निशिता दुरत्यद्दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति॥
अर्थ: उठो, जागो, और अपने लक्ष्य को प्राप्त करो। तेरे रास्ते कठिन हैं, और वे अत्यन्त दुर्गम भी हो सकते हैं, लेकिन विद्वानों का कहना हैं कि कठिन रास्तों पर चलकर ही सफलता प्राप्त होती है।
7. षड् दोषाः पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता!
निद्रा तद्रा भयं क्रोधः आलस्यं दीर्घसूत्रता !!
अर्थ: किसी व्यक्ति के बर्बाद करने के लिए ये 6 लक्षण काफी होते हैं – नींद, गुस्सा, भय, तन्द्रा, आलस्य और काम को टालने की आदत।
8. न चोरहार्य न राजहार्य न भ्रतृभाज्यं न च भारकारि।
व्यये कृते वर्धति एव नित्यं विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्।।
अर्थ: एक ऐसा धन जिसे चुराया नहीं जा सकता, जिसे कोई भी छीन नहीं सकता, जिसका भाइयों के बीच बँटवारा नहीं किया जा सकता, जिसे संभलना बिल्कुल भी मुश्किल नहीं है और जो खर्च करने पर और अधिक बढ़ता है, वह धन, विद्या है। विद्या सबसे श्रेष्ठ धन है।
9. आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतोऽदब्धासो अपरीतास उद्भिदः।
देवा नोयथा सदमिद् वृधे असन्नप्रायुवो रक्षितारो दिवेदिवे॥
अर्थ: हमारे पास चारों ओर से ऐसे कल्याणकारी विचार आते रहें जो किसी से न दबें, उन्हें कहीं से बाधित न किया जा सके एवं अज्ञात विषयों को प्रकट करने वाले हों। प्रगति को न रोकने वाले और सदैव रक्षा में तत्पर देवता प्रतिदिन हमारी वृद्धि के लिए तत्पर रहें।
10. अमृतत्वस्य तु नाशास्ति वित्तेन ।
अर्थ: धन से अमरत्व प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
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Suneet Singh author

मैं टाइम्स नाऊ नवभारत के साथ बतौर डिप्टी न्यूज़ एडिटर जुड़ा हूं। मूल रूप से उत्तर प्रदेश में बलिया के रहने वाला हूं और साहित्य, संगीत और फिल्मों में म...और देखें

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