Shaheedi Diwas 2022: कब मनाया जाता है गुरु गोविंद सिंह जी का शहीदी दिवस, क्या है चमकौर युद्ध का इतिहास
Shaheedi Diwas 2022, Guru Gobind Singh Shaheedi Diwas 2022 Date: सिख धर्म में 22 दिसंबर से 29 दिसंबर तक शहीदी दिवस मनाया जाता है। इन दिनों सिख धर्म के लोग गुरुद्वारे में पाठ करते हैं और गुरु गोबिंद सिंह जी को याद करते हैं। बता दें यही वह सप्ताह है जब गुरु गोबिंद साहिब ने देश व धर्म की रक्षा के लिए अपने परिवार की कुर्बानी दे दी थी।

शहीदी दिवस 2022 कब है
- 22 दिसंबर 1982 को गुरु गोबिंद सिंह साहब का जन्म।
- 23 दिसंबर को मनाया जाता है गुरु गोबिंद सिंह साहिब का शहीदी दिवस।
- गुरु गोबिंद सिंह ने मुगलों से 14 बार युद्ध किया था।
जब आज पूरा देश क्रिसमस डे की तैयारी कर रहा है, तो वहीं 23 दिसंबर को सिख धर्म के लोग शहीदी दिवस मनाते हैं। सिख समाज के लिए यह सप्ताह और महीना बेहद खास है। सिख समाज के लिए इस दिन का विशेष (
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आज ही का दिन था जब सिरसा नदी के तेज बहाव के कारण गोबिंद साहब का पूरा परिवार तीन हिस्सों में विभाजित हो (
Shaheedi Diwas 2022 Date, कब मनाया जाता है शहीदी दिवस
सिख धर्म में दिसंबर का अंतिम सप्ताह शहीदी दिवस के रूप में जाना जाता है। यही वह सप्ताह है जब गुरू गोबिंद सिंह साहब ने अपने मुट्ठीभर सैनिकों के साथ मुगलिया सल्तनत को घुटने टेकने के लिए मजबूर कर दिया था। इसी दिन गुरू गोबिंद साहब ने अपनी मां, पत्नी और बच्चों समेत सभी की कुर्बानी दी थी। शहीदी दिवस 22 दिसंबर से 29 दिसंबर तक मनाया जाता है।
इस पूरे सप्ताह गुरुद्वारों में पाठ होता है तथा सिख धर्म के अनुयाई गुरु गोबिंद सिंह जी को याद करते हैं। गुरुद्वारों में गुरु गोबिंद साहिब के परिवार की शहादत के बारे में बताया जाता है। साथ ही कई सिख परिवार इस पूरे सप्ताह नंगे पांव रहते हैं और जमीन पर सोते हैं। माता गुजरी और साहिबजादों की याद में पाठ किया जाता है।
तीन हिस्सों में बंट गया था परिवारमुगलिया सल्तनत ने अपने लाखों सैनिकों को भेज आनंदपुर साहिब के किले पर कब्जा कर लिया था। जिसे देख अन्य सिखों ने गुरु गोबिंद सिंह साहब को किले को छोड़कर जाने के लिए कहा। गुरु गोबिंद सिंह जी अपने परिवार व बच्चों समेत आनंदपुर साहिब के किले को छोड़ वहां से निकल पड़े। 21 दिसंबर की सुबह जब वह परिवार के साथ सिरसा नदी को पार कर रहे थे, तो तेज बहाव के कारण उनका परिवार तीनें हिस्सों में बंट गया
परिवार से बिछड़ने के बाद गुरु साहिब और बड़े साहिबजादे बाबा अजित सिंह और बाबा जुझार सिंह चमकौर पहुंच गए। गुरु साहिब से बिछड़ने के बाद गंगू साहिब माता गुजरी और दोनों छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह को अपने घर ले गए, लेकिन उसने धोखा करते हुए वजीर खान को इसकी जनकारी दे दी। वजीर खान अपने ने सैनिकों को भेज माता गुजरी और छोटे साहिबजादों को कैद कर लिया।
मुट्ठीभर सिखों ने मुगलिया सल्तनत को घुटने टेकने के लिए कर दिया था मजबूरवहीं मुगलिया सल्तनत को खबर लग गई की गुरु गोबिंद सिंह साहिब अपने दोनों बड़े साहिबजादों के साथ चमकौर के किले में हैं। इसे सुन वजीर खान ने अपने 10 लाख सैनिकों के साथ गुरु गोबिंद साहिब को घेर लिया। इसके बाद गुरु गोबिंद सिंह साहिब ने अपने मुट्ठीभर सैनिकों के साथ मुगल सैनिकों को नाकों चने चबाने के लिए मजबूर कर दिया।
चमकौर का युद्ध लगातार दो दिनों तक चला, एक के बाद एक सिखों को शहीद होते देख बड़े साहिबजादों ने भी युद्ध में जाने की अनुमति मांगी। गोबिंद साहिब ने उन्हें युद्ध में जाने की अनुमति दे दी। इसके बाद साहिबजादों ने एक के बाद एक मुगलिया सैनिकों को मौत के घाट उतारना शुरू कर दिया, लेकिन कुछ देर बाद दोनों साहिबजादे शहीद हो गए।
बीबी हरशरन कौर को जलती आग में धकेल दिया गयागुरु गोबिंद साहिब ने एक रणनीति के तहत मुगलों से लड़ने की योजना बनाई, हर बार पांच सिख युद्ध के लिए जाते और सैकड़ो मुगलों को मारने के बाद शहीद हो जाते थे। इसे देख गुरु गोबिंद साहिब भी युद्ध में उतरने के लिए तैयार होने लगे, लेकिन सिखों ने उन्हें चमकौर छोड़ने के लिए मजबूर किया। मजबूरीवश गुरु गोबिंद साहिब को चमकौर का किला छोड़ना पड़ा। यहां से निकलने के बाद वह एक गांव पहुंच गए, जहां उन्हें उन्हें बीबी हरशन कौर मिली।
वजीर खान माता गुजरी और दोनों साहिबजादों को धर्म परिवर्तन के लिए विवश करता रहा, लेकिन उन्होंने हार न मानी और इस्लाम धर्म कुबूल करने से इंकार कर दिया। साहिबजादों की जिद्द को देखते हुए वजीर खान ने उन्हें जिंदा दीवार में चुनवा दिया। यह खबर जैसे ही माता गुजरी के पास पहुंची उन्होंने अपने प्रांण त्याग दिए।
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मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की नगरी अयोध्या का रहने वाला हूं। लिखने-पढ़ने का शौकीन, राजनीति और शिक्षा से जुड़े मुद्दों में विशेष रुचि। साथ ही हेल्...और देखें

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