Shaheed Diwas 2025: मिर्जा गालिब का वह शेर जो अकसर गुनगुनाते थे भगत सिंह, चकबस्त की यह गजल भी थी खूब पसंद

Bhagat Singh, Shahid Diwas 2025: हिंदी और अंग्रेजी के साथ ही उर्दू भाषा पर भी भगत सिंह की अच्छी पकड़ थी। वह जेल में अकसर उर्दू पढ़ा करते थे। शेर और शायरी जैसे उनके जुबां में हर वक्त रहती थी। देशप्रेम की उनकी शायरी आज भी वतन-ए-मोहब्बत के पैगाम के साथ खनक रही है।

Bhagat Vs Ghalib

Shaheed Diwas 2025: भगत सिंह की शायरी

Shahid Diwas 2025: जब भी इंकलाब की बात होगी सबसे पहला नाम शहीद-ए-आजम भगत सिंह का लिया जाएगा। महज 23 साल की उम्र में भगत सिंह ने देश के लिए हंसते-हंसते फांसी का फंदा चूम लिया था। वह तारीख थी 23 मार्च 1931। भगत सिंह के साथ ही सुखदेव और राजगुरु को भी इसी दिन फांसी की सजा सुनाई गई थी। देश पर मर मिटने वाले इन तीनों रणबांकुरों की याद में हर साल 23 मार्च को शहीद दिवस के तौर पर मनाया जाता है। बात भगत सिंह की करें तो उन्हें शेर-ओ-शायरी का भी खूब शौक था। मिर्जा गालिब और चकबस्त उनके पसंदीदा शायरों में शुमार थे।

चकबस्त ब्रिज नारायण की एक ग़ज़ल भगत सिंह को बहुत ज्यादा पसंद थी। उन्होंने अपने अंतिम दिनों में जेल से जो खत अपने भाई को लिखा था उसमें इस गजल के पहले मिसरे को कोट किया था। आइए पढ़ें चकबस्त की वो गजल:

उन्हें ये फ़िक्र है हर दम नई तर्ज़-ए-जफ़ा क्या है

हमें ये शौक़ है देखें सितम की इंतिहा क्या है

गुनह-गारों में शामिल हैं गुनाहों से नहीं वाक़िफ़

सज़ा को जानते हैं हम ख़ुदा जाने ख़ता क्या है

ये रंग-ए-बे-कसी रंग-ए-जुनूँ बन जाएगा ग़ाफ़िल

समझ ले यास-ओ-हिरमाँ के मरज़ की इंतिहा क्या है

नया बिस्मिल हूँ मैं वाक़िफ़ नहीं रस्म-ए-शहादत से

बता दे तू ही ऐ ज़ालिम तड़पने की अदा क्या है

चमकता है शहीदों का लहू पर्दे में क़ुदरत के

शफ़क़ का हुस्न क्या है शोख़ी-ए-रंग-ए-हिना क्या है

उमीदें मिल गईं मिट्टी में दौर-ए-ज़ब्त-ए-आख़िर है

सदा-ए-ग़ैब बतला दे हमें हुक्म-ए-ख़ुदा क्या है

हिंदी और अंग्रेजी के साथ ही उर्दू भाषा पर भी भगत सिंह की अच्छी पकड़ थी। वह जेल में अकसर उर्दू पढ़ा करते थे। शेर और शायरी जैसे उनके जुबां में हर वक्त रहती थी। देशप्रेम की उनकी शायरी आज भी वतन-ए-मोहब्बत के पैगाम के साथ खनक रही है। मिर्जा गालिब का यह शेर वह हमेशा गुनगुनाते रहते थे।

'ये न थी हमारी किस्मत की बिसाले यार होता

अगर और जीते रहते तो यहीं इंतजार होता

तेरे वादे पर जिए हम तो यह जान झूठ जाना

कि खुशी से मर न जाते अगर एतबार होता'

भगत सिंह खुद भी लिखने के शौकीन थे। साहित्य और शायरी के प्रति उनके प्रेम की बानगी है उनकी जेल डायरी। उन्होंने जो भी लिखा वह कमाल लिखा। भगत सिंह के हर शब्दों में वतन से प्रेम समाया हुआ था। यहां पढ़ें उनका लिखा एक शेर:

लिख रहा हूं मैं अंजाम जिसका कल आगाज आएगा

मेरे लहू का हर एक कतरा इंकलाब लाएगा

मैं रहूं या न रहूं पर ये वादा है मेरा तुमसे कि

मेरे बाद वतन पर मरने वालों का सैलाब आएगा

भगत सिंह भले बहुत छोटी उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह गए। लेकिन वह हम हिंदुस्तानियों के दिलों में हमेशा के लिए अमर हैं। भगत सिंह को हम उनकी कलम से निकले शब्दों के जरिए भी याद रखेंगे।

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Suneet Singh author

मैं टाइम्स नाऊ नवभारत के साथ बतौर डिप्टी न्यूज़ एडिटर जुड़ा हूं। मूल रूप से उत्तर प्रदेश में बलिया के रहने वाला हूं और साहित्य, संगीत और फिल्मों में म...और देखें

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