Munawwar Rana Sher-Shayari: 'मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से में मां आई'... पढ़ें मुनव्वर राना के 15 शेर-शायरियां
Munawwar Rana Sher-Shayari: मुनव्वर राना अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके शेर-शायरियां हमें हमेशा याद आएंगी। आज हमनेमुनव्वर राना के कुछ शेर-शायरियां आपके साथ शेयर की हैं।
Munawwar Rana Sher-Shayari: मुनव्वर राणा के 15 शेर-शायरियां।
Munawwar Rana Sher-Shayari: मशहूर उर्दू कवि और लेखक मुनव्वर राना (Munawwar Rana) अब हमारे बीच नहीं है। रविवार रात मुनव्वर राना (Munawwar Rana Death) का 71 साल की उम्र में निधन हो गया। वह काफी समय से बीमार चल रहे थे। लखनऊ के संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में वेंटिलेटर पर रहते हुए कार्डियक अरेस्ट के कारण उन्होंने अंतिम सांस ली। 26 नवंबर, 1952 को उत्तर प्रदेश के रायबरेली में जन्मे मुनव्वर राना (Munawwar Rana Born) को उर्दू (Urdu) साहित्य में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाना जाता है। मुनव्वर राना खासकर अपने शेरों (Munawwar Rana Famus Sher) के लिए जाने जाते हैं, खासतौर से जो उन्होंने मां पर लिखे थे। मुनव्वर राना ने जिंदगी और मौत को लेकर भी कई सारे शेर (Munawwar Rana Sher On Mother) लिखे थे। आज हम आपके साथ उनके ऐसे ही 15 शेर शेयर (Munawwar Rana Famous 15 Sher) कर रहे हैं।
मुनव्वर राना के फेमस शेर-शायरी (Munawwar Rana Sher-Shayari)
1. मिट्टी में मिला दे कि जुदा हो नहीं सकता,
अब इस से ज़यादा मैं तेरा हो नहीं सकता।
2. अभी जिंदा है माँ मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा,
मैं जब घर से निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है।
3. छू नहीं सकती मौत भी आसानी से इसको,
यह बच्चा अभी माँ की दुआ ओढ़े हुए है।
4. इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है,
माँ बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है।
मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊँ,
माँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ
5. मैं भुलाना भी नहीं चाहता इस को लेकिन,
मुस्तक़िल ज़ख़्म का रहना भी बुरा होता है।
6. तुझसे बिछड़ा तो पसंद आ गयी बे-तरतीबी,
इससे पहले मेरा कमरा भी ग़ज़ल जैसा था।
7. सिसकियाँ उसकी न देखी गईं मुझसे 'राना'
रो पड़ा मैं भी उसे पहली कमाई देते
मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना।
8. लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती,
बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती
अब भी चलती है जब आँधी कभी ग़म की 'राना'
माँ की ममता मुझे बाहों में छुपा लेती है।
9. लिपट को रोती नहीं है कभी शहीदों से,
ये हौसला भी हमारे वतन की मांओं में है।
ये ऐसा कर्ज है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता,
मैं जब तक घर न लौटूं मेरी माँ सज़दे में रहती है।
10. जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है,
माँ दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है।
11. वो बिछड़ कर भी कहाँ मुझ से जुदा होता है,
रेत पर ओस से इक नाम लिखा होता है।
12. तुझे अकेले पढूँ कोई हम-सबक न रहे,
मैं चाहता हूँ कि तुझ पर किसी का हक न रहे।
13. घेर लेने को जब भी बलाएँ आ गईं,
ढाल बनकर माँ की दुआएँ आ गईं।
14. किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई,
मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई।
15. मोहाजिरो यही तारीख है मकानों की,
बनाने वाला हमेशा बरामदों में रहा।
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