बच्चों को बीमार बना रहा मोबाइल, दिखें ये लक्षण तो हो जाएं सावधान, जानिए क्या कहते हैं एक्सपर्ट
Kids Excessive Screen Time: टीवी या मोबाइल की लत बच्चो के विकास, खासतौर पर उनके आंतरिक विकास, जैसै कि अटेंशन स्पैन, मेमोरी, लॉजिकल थिंकिंग, रीजनिंग एबिलिटी के साथ ही बोलने में देरी, भाषा को समझने की समस्या, खुद को अभिव्यक्त करने की दिक्कत के अलावा पढ़ने और लिखने तक की समस्या का प्रमुख कारण बनता है।
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Excessive screen time of kids: आज के समय में लगभग हर घर में मोबाइल, टीवी, गैजेट्स, कंप्यूटर/लैपटॉप और अन्य स्मार्ट डिवाइस आसानी से देखे जा सकते हैं। ये कहना गलत नहीं होगा कि आज के समय में टेक्नोलॉजी वयस्कों, किशोरों, बच्चों यहां तक कि नवजातों के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। आज की पीढ़ी के बच्चे अपनी पढ़ाई या फिर मनोरंजन के उद्देश्य से ही सही, टेक्नोलॉजी से घिरे हुए हैं। आज कल के बच्चों का ज्यादातर खाली समय मोबाइल या टीवी देखने में बीत रहा है। डॉक्टर्स और बाल विशेषज्ञों का साफ कहना है कि डेढ़ साल तक के बच्चों को किसी भी हाल में टीवी या मोबाइल के संपर्क में नहीं लाना चाहिए। हालांकि इसके ठीक विपरीत आमतौर पर देखा जा रहा है कि दो साल की उम्र में ही बच्चे टच स्क्रीन उपकरणों को आसानी से नियंत्रित कर सकते हैं, जो इस तरफ इशारा करता है कि किस कदर ये आदत उनको शारीरिक, मानसिक और मनोवैज्ञानिक तौर पर नुकसान पहुंचा रही है। बच्चों के मोबाइल या टीवी देखने के समय को डॉक्टर्स 'स्क्रीन टाइम' से संबोधित करते हैं। बच्चे का जितना ज्यादा स्क्रीन टाइम होगा उतना ज्यादा उसे नुकसान होगा।
कोरोना काल के बाद बच्चों का स्क्रीन टाइम काफी तेजी से बढ़ा है। कई रिसर्च में ये पाया गया है कि 0 से 8 साल तक के बच्चे औसतन रोजाना दो से ढाई घंटे टीवी या मोबाइल देखते थे जो कि कोरोना काल के बाद बढ़कर चार से साढ़े चार घंटे तक पहुंच गया। विमहंस हॉस्पिटल, नई दिल्ली के साथ बतौर कंसल्टेंट जुड़े ऑकुपेशनल थेरेपिस्ट डॉ. राशिद सैफी ( PhD, MOT Neuro Science) इसे बेहद खतरनाक मानते हुए पेरेंट्स को सचेत करते हैं कि वो किसी भी हाल में बच्चों के, खासतौर पर 3 साल से कम उम्र के बच्चों के, स्क्रीन टाइम को शून्य कर दें। उन्होंने टाइम्स नाऊ नवभारत के साथ इसके दुष्प्रभावों और इसके बचाव को लेकर बात की। उन्होंने पैरेंट्स को भी कुछ सलाह दी है। आइए डालते हैं एक नजर:
बढ़ते स्क्रीन टाइम का बच्चों पर बुरा असर ( Impact of excessive screen time )
डॉ. सैफी के मुताबिक टीवी या मोबाइल की लत बच्चो के विकास, खासतौर पर उनके आंतरिक विकास, जैसै कि अटेंशन स्पैन, मेमोरी, लॉजिकल थिंकिंग, रीजनिंग एबिलिटी के साथ ही बोलने में देरी, भाषा को समझने की समस्या, खुद को अभिव्यक्त करने की दिक्कत के अलावा पढ़ने और लिखने तक की समस्या का प्रमुख कारण बनता है।
बढ़ते स्क्रीन टाइम के कारण डाइट में अनियमितता बच्चों को कुपोषण का शिकार, मोटापे या फिर डायबिटीज का शिकार बना रही है। अनियमित या असंतुलित नींद जिसे अपर्याप्त नींद भी कह सकते हैं, बच्चों के, खासतौर पर डेढ़ दो साल तक के बच्चों के बच्चों पर इतना बुरा असर डालती है कि उनके अंदर तमाम तरह की व्यवहारिक दिक्कतें घर बना ले रही हैं। ऐसे बच्चो बेहद सामान्य काम जैसे कि अपने जूते बांधना या फिर साइकिल चलाना या स्विमिंग करना या फिर ब्लॉक्स लगाने जैसे काम भी ठीक से नहीं कर पाती है।
बच्चों के स्क्रीन टाइम में बेतहाशा बढ़ोतरी के कारण उनका सोशल और इमोशनल (सामाजिक और भावनात्मक) विकास भी काफी धीमा हो जाता है। उनमें अपने परिवार और साथियों के साथ संबंध, खुद की पहचान, आसपास के बारे में जागरूकता, मनोदशा और गुस्से के बारे में जागरूकता और जुड़ाव की कमी बढ़ जाती है। ये सारी दिक्कतें उन्हें ऑकुपेशनल थेरेपी और स्पीच थेरेपी जैसी तमाम चीजों की तरफ जाने पर विवश करती हैं, जो कि हर अभिभावक के लिए आर्थिक तौर पर इतनी आसान नहीं होती।
डिजिटल मीडिया जैसे टीवी, वीडियो-गेम, स्मार्ट फोन और टैबलेट की दुनिया बच्चों और युवाओं में आक्रामकता और असामान्य मनोदशा और व्यवहार पैटर्न पैदा कर रही है। दरअसल हो ये रहा है कि बच्चे जो वर्चुअल दुनिया में देखते हैं उसे ही असल दुनिया में नकल करने की कोशिश करते हैं। वीआर गेम्स जैसी चीजें बच्चों के लिए काफी रोमांचक और आकर्षक हो जाते हैं जो कि साइबर सिकनेस का कारण बन सकते हैं। यही साइबर सिकनेस बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास में बड़ी बाधा बन रहे हैं।
किस उम्र के बच्चे का कितना होना चाहिए स्क्रीन टाइम (Age wise recommended screen time)
- 18 महीने तक के बच्चों का स्क्रीन टाइम जीरो होना चाहिए। इसका मतलब ये है कि उन्हें पूरी तरह से मोबाइल या टीवी से दूर रखना चाहिए।
- डेढ़ से दो साल के बच्चों का स्क्रीन टाइम एक घंटे से ज्यादा नहीं होना चाहिए।
- दो से पांच साल के बच्चों का स्क्रीन टाइम किसी भी हाल में एक दिन में 3 घंटे से ज्यादा नहीं होना चाहिए।
- 6 से 17 साल तक के बच्चों का स्क्रीन टाइम 2 घंटे प्रतिदिन से ज्यादा ना हो।
- 18 साल या फिर उससे अधिक उम्र के वयस्कों के लिए स्क्रीन टाइम दो से चार घंटा ही होना चाहिए।
बच्चों का स्क्रीन टाइम कैसे कम करें पेरेंट्स (How can parents minimize their child screen time?)
घर में माता-पिता का स्क्रीन टाइम सीधे तौर पर बच्चों के स्क्रीन टाइम को प्रभावित करता है। ऐसे कई उपाय हैं जिन्हें अपनाकर पेरेंट्स अपने बच्चे के स्क्रीन टाइम को कम कर सकते हैं:
- बच्चे क्या देख रहे हैं उसका चयन सावधानीपूर्वक करें।
- बच्चे जो कंटेंट देख रहे हैं उसे लेकर पेरेंट्स को उनसे बात करनी चाहिए। वो भी बच्चों के साथ बैठकर देखें कि वो क्या देख रहे हैं।
- पेरेंट्स बच्चे के देखने का समय, सामग्री और प्रकार की सीमा तय करें।
- बच्चों रे बेडरूम में किसी भी हाल में टीवी या मोबाइल नहीं होना चाहिए।
- पेरेंट्स बच्चों के सामने अपना स्क्रीन टाइम भी कम करें। इससे बच्चे पर सकारात्मक असर देखने को मिलेगा।
- पेरेंट्स बच्चों को घर के बाहर खेलने (आउटडोर गेम्स) के लिए प्रोत्साहित करें।
स्क्रीन टाइम की अधिकता के दुष्प्रभावों से कैसे निजात पाएं ( How to overcome with the impact of excessive screen time )
जैसा कि हमने ऊपर बताया कि अनियंत्रित स्क्रीन टाइम कैसे बच्चों पर बुरा असर डाल रहा है। ऐसे में पेरेंट्स को अपने बच्चों के व्यवहार पर सावधानी से नजर रखनी चाहिए। वो देखें कि बच्चे में आक्रामकता, आंख ना मिलाने की आदत, एकाग्रता की कमी, अपना नाम सुनकर अनसुना करना, ना बोलना या काफी कम बोलना, अपने आस पास की चीजों को कम समझना, मेल्टडाउन, अजीब व्यवहार, बाहर ना खेलना, पढ़ाई में कमजोर होने जैसी दिक्कतें तो नहीं आ रही हैं। अगर ये लक्षण दिखें तो तुरंत समझ जाएं कि बच्चे को मेडिकल हेल्प की जरूरत है। ऐसे में पेरेंट्स को तुरंत किसी अच्छे मनोवैज्ञानिक, ऑकुपेशनल थेरेपिस्ट, स्पीच थेरेपिस्ट या दूसरे डॉक्टर्स से परामर्श लेना चाहिए। तमाम तरह के थेरपिस्ट एक ऐसी टीम की तरह काम करते हैं कि बच्चा जल्द से जल्द सामान्य हो जाए।
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मैं टाइम्स नाऊ नवभारत के साथ बतौर डिप्टी न्यूज़ एडिटर जुड़ा हूं। मूल रूप से उत्तर प्रदेश में बलिया के रहने वाला हूं और साहित्य, संगीत और फिल्मों में म...और देखें
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