Waseem Barelvi Shayari: जहां रहेगा वहीं रौशनी लुटाएगा.., किसी और ही दुनिया में ले जाती है वसीम बरलवी की शायरी, देखें उनके 20+ चुनिंदा शेर
Waseem Barelvi shayari, Ghazal, Poetry in Hindi: देश के महबूब शायर वसीम बरेलवी 84 साल के हो चुके हैं लेकिन उन्होंने अभी लिखना नहीं छोड़ा है। आज भी उनकी कलम चल रही है, बस रफ्तार थोड़ी धीमी हो गई है। उर्दू और हिंदी की चाशनी को जिस तरह से वसीम साहब ने लोगों के सामने परोसा वो उनके दिलों में हमेशा के लिए घर कर गया। इरशाद में आज देखते हैं वसीम बरलेवी के कुछ मशहूर शेर:
Waseem Barelvi Shayari, Ghazal. Poetry in Urdu Hindi
Waseem Barelvi Shayari in Hindi, Urdu Poetry: वसीम बरेलवी उर्दू के मशहूर शायर हैं। उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कोई भी मुशायरा उनकी शायरी के बगैर पूरा नहीं होता। वसीम बरेलवी ने लगभघ हर विषय पर शेर लिखे हैं। तभी तो आम से लेकर ख़ास तक सभी उनके शेर का सहारा अपनी बात कहने के लिए लेते हैं। अपनी शायरी में उर्दू का जिस खूबसूरती उन्होंने इस्तेमाल किया उतना शायद ही इस दौर के किसी ने किया होगा। अपनी शायरी के दम पर वह करोड़ों लोगों के दिलों पर राज करते हैं। आइए नजर डालते हैं उनके लिखे चंद मशहूर शायरियों पर एक नजर:
ग़म और होता सुन के गर आते न वो 'वसीम'
अच्छा है मेरे हाल की उन को ख़बर नहीं
कुछ है कि जो घर दे नहीं पाता है किसी को
वर्ना कोई ऐसे तो सफ़र में नहीं रहता
उसी को जीने का हक़ है जो इस ज़माने में
इधर का लगता रहे और उधर का हो जाए
जहाँ रहेगा वहीं रौशनी लुटाएगा
किसी चराग़ का अपना मकाँ नहीं होता
जो मुझ में तुझ में चला आ रहा है बरसों से
कहीं हयात इसी फ़ासले का नाम न हो
आसमाँ इतनी बुलंदी पे जो इतराता है
भूल जाता है ज़मीं से ही नज़र आता है
ऐसे रिश्ते का भरम रखना कोई खेल नहीं
तेरा होना भी नहीं और तेरा कहलाना भी
किसी ने रख दिए ममता-भरे दो हाथ क्या सर पर
मेरे अंदर कोई बच्चा बिलक कर रोने लगता है
किसी से कोई भी उम्मीद रखना छोड़ कर देखो
तो ये रिश्ता निभाना किस क़दर आसान हो जाए
कुछ है कि जो घर दे नहीं पाता है किसी को
वर्ना कोई ऐसे तो सफ़र में नहीं रहता
उसी को जीने का हक़ है जो इस ज़माने में
इधर का लगता रहे और उधर का हो जाए
बहुत से ख़्वाब देखोगे तो आँखें
तुम्हारा साथ देना छोड़ देंगी
वैसे तो इक आँसू ही बहा कर मुझे ले जाए
ऐसे कोई तूफ़ान हिला भी नहीं सकता
वो मेरे सामने ही गया और मैं
रास्ते की तरह देखता रह गया
अपने अंदाज़ का अकेला था
इसलिए मैं बड़ा अकेला था
दुख अपना अगर हम को बताना नहीं आता
तुम को भी तो अंदाज़ा लगाना नहीं आता
न पाने से किसी के है न कुछ खोने से मतलब है
ये दुनिया है इसे तो कुछ न कुछ होने से मतलब है
तुझे पाने की कोशिश में कुछ इतना खो चुका हूँ मैं
कि तू मिल भी अगर जाए तो अब मिलने का ग़म होगा
हर शख़्स दौड़ता है यहाँ भीड़ की तरफ़
फिर ये भी चाहता है उसे रास्ता मिले
रात तो वक़्त की पाबंद है ढल जाएग
देखना ये है चराग़ों का सफ़र कितना है
शराफ़तों की यहाँ कोई अहमियत ही नहीं
किसी का कुछ न बिगाड़ो तो कौन डरता है
हादसों की ज़द पे हैं तो मुस्कुराना छोड़ दें
ज़लज़लों के ख़ौफ़ से क्या घर बनाना छोड़ दें
84 साल के हो चुके वसीम बरेलवी ने अभी लिखना नहीं छोड़ा है। आज भी उनकी कलम चल रही है, बस रफ्तार थोड़ी धीमी हो गई है।बता दें कि 8 फरवरी 1940 को उत्तर प्रदेश के बरेली में जन्मे वसीम बरेलवी को उनकी शायरी के लिए फिराक इंटरनेशनल अवॉर्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है।
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मैं टाइम्स नाऊ नवभारत के साथ बतौर डिप्टी न्यूज़ एडिटर जुड़ा हूं। मूल रूप से उत्तर प्रदेश में बलिया क...और देखें
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