Sapinda Marriage: क्या है सपिंड विवाह, क्यों है ऐसी शादी की मनाही, जानिए क्या कहता है कानून और क्यों हो रही इसकी चर्चा
Sapinda Marriage: दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में एक महिला की शादी को अमान्य करार देते हुए कह है कि ये सपिंड विवाह है और इस कारण शादी को अवैध घोषित किया जाता है।
Sapinda Marriage: क्या है सपिंड विवाह जिसकी इन दिनों खूब हो रही चर्चा, जानिए कानून में क्यों अपराध है ऐसी शादी
Sapinda Marriage Explained: साल 1950 में जब हमारा संविधान लागू हुआ तो देश के हर नागरिक को कुछ मौलिक अधिकार दिये गए। इन मौलिक अधिकारों में से ही एक है शादी का अधिकार। संविधान के हिंदू मैरिज एक्ट 1955 (Hindu Marriage Act 1955) में साफ कहा गया है कि कोई भी वयस्क लड़का या लड़की अपनी मर्जी से किसी भी जाति या धर्म में शादी कर सकते हैं। हालांकि संविधान ने कुछ मामलों में शादी को असंवैधानिक बताया है। ऐसा ही एक मामला है सपिंड विवाह।
क्या है सपिंड विवाह (What Is Sapinda Marriage)सपिंड विवाह को सरल शब्दों में समझें तो यह उस विवाह को कहा जाता है जब एक ही पिंड के दो लोग आपस में शादी कर लें। सपिंड यानि एक ही कुल या खानदान के वे लोग जो एक ही पितरों का पिंडदान करते हैं। हिंदू मैरिज एक्ट 1955 की धारा 3(f)(ii) के मुताबिक, 'अगर दो लोगों में से एक दूसरे का सीधा पूर्वज हो और वो रिश्ता सपिंड रिश्ते की सीमा के अंदर आए, या फिर दोनों का कोई एक ऐसा पूर्वज हो जो दोनों के लिए सपिंड रिश्ते की सीमा के अंदर आए, तो दो लोगों के ऐसे विवाह को सपिंड विवाह कहा जाएगा।'
क्या कहता है Hindu Marriage Act 1955 हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के मुताबिक एक लड़का या लड़की अपनी मां की तरफ से तीन पीढ़ियों तक किसी से शादी नहीं कर सकता/सकती। मतलब अपने भाई-बहन (पहली पीढ़ी), अपने माता-पिता (दूसरी पीढ़ी), अपने दादा-दादी (तीसरी पीढ़ी) या किसी ऐसे व्यक्ति से शादी नहीं कर सकता है जो तीन पीढ़ियों के भीतर इस वंश को साझा करता हो।पिता की तरफ से ये पाबंदी पांच पीढ़ियों तक लागू होती है। यानी आप अपने दादा-परदादा आदि जैसे दूर के पूर्वजों के रिश्तेदारों से भी शादी नहीं कर सकते।
यहां सपिंड विवाह की छूटकर्नाटक और तमिलनाडु में, हिन्दू धर्म में ही कुछ समुदाय ऐसे भी हैं, जिनमें मामा-मौसी या चाचा-चाची से शादी करने का रिवाज है। इन समुदायों को एक्ट में छूट दी गई है जिससे उनकी शादी को मान्यता मिल सके। दरअसल हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 3(a) में कहा गया है कि अगर लड़के और लड़की दोनों के समुदाय में सपिंड शादी का रिवाज है, तो वो ऐसी शादी कर सकते हैं।
क्यों मना है सपिंड विवाह इस कानून के पीछे तर्क दिया जाता है कि एक ही पिंड के दो लोगों के बीच शारीरिक संबंध अनुचित हैं। ना सिर्फ अनुचित हैं बल्कि करीबी रिश्तेदारों के बीच शारीरिक और मानसिक संबंध कई तरह की समस्याओं को जन्म देता है।
सपिंड विवाह करने पर सजायदि कोई हिंदू मैरिज एक्ट 1955 की धारा 3(f)(ii) में परिभाषित किये गए सपिंड विवाह के बंधन में बंध जाता है तो वह सजा का हकदार होगा। उसे हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 18 के तहत 1 महीने तक की जेल या 1000 रुपये का जुर्माना या दोनों सजा हो सकती है।
इन दिनों क्यों चर्चा में है सपिंड विवाहदिल्ली हाईकोर्ट में एक महिला का अपने दूर के चचेरे भाई संग शादी की मान्यता को लेकर केस आया। महिला ने 1998 में अपने कजिन भाई से शादी की थी। दोनों के पिता एक दूसरे के कजिन लगते थे। साल 2007 में महिला के पति ने केस कर दिया कि उनकी शादी सपिंड विवाह है इसलिए इसे अमान्य करार दिया जाए। कोर्ट ने भी शादी को अवैध करार दिया। महिला ने दिल्ली हाई कोर्ट में दोबारा अपील करते हुए कहा कि हिन्दू मैरिज एक्ट की धारा 5(v) जिसके तहत सपिंड विवाहों पर रोक है, वो संविधान के आर्टिकल 14 का उल्लंघन है। कोर्ट ने महिला के खिलाफ फैसला सुनाया है।
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Suneet Singh author
मैं टाइम्स नाऊ नवभारत के साथ बतौर डिप्टी न्यूज़ एडिटर जुड़ा हूं। मूल रूप से उत्तर प्रदेश में बलिया क...और देखें
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