1947 के बंटवारे में इस किताब के भी हुए दो टुकड़े, एक पाकिस्तान ले गया तो दूसरा भारत में, जानिए आखिर क्या था उस किताब में
बंटवारे के वक्त यह किताब भारत के पास थी। पाकिस्तान हर हाल में वह किताब लेना चाहता था। वहीं भारत भी चाहता था कि वह किताब उसके पास ही रहे। पंडित जवाहर लाल नेहरू और मोहम्मद अली जिन्ना, दोनों उस किताब के स्वामित्व के लिए भिड़ रहे थे। तब विभाजन परिषद के अध्यक्ष लॉर्ड माउंटबेटन को एक रास्ता सूझा।
1947 में इस किताब का भी हुआ था बंटवारा
बंटवारा सिर्फ घर या जमीन का नहीं होता है। बंटवारा लोगों की भावनाओं का भी होता है। बंटवारे का दर्द बयां तो किया जा सकता है लेकिन इसका दर्द वो ही अच्छी तरह जानते हैं, जिन्होंने प्रत्यक्ष रूप से इसको सहा है। हमारे देश के लोगों ने भी विभाजन का दंश झेला है और बंटवारे का कभी ना भूलने वाला दर्द सहा है। 1947 में हमें जहां अंग्रेजों से आजादी मिली वहीं भारत ने अपनी जमीन का एक बड़ा हिस्सा बंटवारे के साथ खो दिया। 1947 में भारत के दो टुकड़े कर दिये गए थे। हिंदुस्तान की सरजमीं से कटकर पाकिस्तान नाम का एक अलग देश दुनिया के नक्शे पर उभरा। इस बंटवारे ने दोनों देशों की धरती को खून से लाल कर दिया था। वो मुल्क जो अपनी गंगा जमुनी तहजीब के जरिए पूरी दुनिया को रास्ता दिखाता था वही देश हिंदू मुसलमान के नाम पर बांट दिया गया।
हिंदुस्तान का भारत और पाकिस्तान में बंटवारा
77 साल पहले अंग्रेजी हुकूमत ने जब हिंदुस्तान को दो हिस्सों में बांटा था, तब भारत और पाकिस्तान के बीच जमीन का बंटवारा बस नक्शे पर एक लकीर खींचने जैसा था। दोनों देशों के बीच जैसे तैसे भौगोलिक बंटवारा तो हो गया। लेकिन इस विभाजन में भूखंड के अलावा भी और बहुत कुछ था जिसका बंटवारा होना था। इस बंटवारे में लाखों लोगों की खुशी और उनकी जिंदगियां बंट गईं। इसके साथ ही बांट दिए गए कॉपी-किताब, मेज-कुर्सी, पेन - पेंसिल, टाइपराइटर, पगड़ी, बल्ब, लाठी, बांसुरी, रायफल जैसी ना जाने कितनी ही छोटी-छोटी चीजें।
माउंटबेटन की अध्यक्षता में हुआ बंटवारा
संपत्तियों के बंटवारे के लिए लॉर्ड माउंटबेटन की अध्यक्षता में एक विभाजन परिषद का गठन किया गया। विभाजन के कुछ हिस्से ठीक से बंट गए जिसमें रक्षा, मुद्रा और सार्वजनिक वित्त समझौते शामिल थे। लेकिन भारत-पाकिस्तान के बीच रुपये-पैसे से लेकर तमाम चल-अचल संपत्तियों को लेकर खूब झगड़ा हुआ। कई चीजों का बंटवारा सिक्का उछाल कर किया गया। इन चीजों के बंटवारे इस तरह हुए कि इतिहास के पन्नों को पलटा जाए तो आज किसी की भी हंसी छूट जाए। जब इन चीजों का बंटवारा हो रहा था तो उसके साथ ही एक किताब का भी बंटवारा होना था। लेकिन एक किताब को दो लोगों में कैसे बांटा जा सकता है ये बड़ा सवाल था। उस किताब को लेकर दोनों देश ऐसे भिड़े कि उसे बीच से फाड़ दिया गया। एक हिस्सा पाकिस्तान गया तो एक हिस्सा भारत के पास रहा।
जब किताब फाड़कर हुआ बंटवारा
इस किताब के दो टुकड़े होने का जिक्र विजयलक्ष्मी बालाकृष्णनन ने अपनी किताब 'Growing Up and Away: Narratives of Indian Childhoods: Memory, History, Identity' में भी किया है। इस किताब का नाम था एनसायक्लोपीडिया ऑफ ब्रिटेनिका (Encyclopedia of Britanicca)। बंटवारे के वक्त यह किताब भारत के पास थी। पाकिस्तान हर हाल में वह किताब लेना चाहता था। वहीं भारत भी चाहता था कि वह किताब उसके पास ही रहे। पंडित जवाहर लाल नेहरू और मोहम्मद अली जिन्ना, दोनों उस किताब के स्वामित्व के लिए भिड़ रहे थे। तब विभाजन परिषद के अध्यक्ष लॉर्ड माउंटबेटन को एक रास्ता सूझा। उन्होंने दोनों नेताओं से कहा कि एक ही किताब दो लोगों के पास एक ही सूरत में रह सकती है। अगर उस किताब के दो हिस्से कर दिये जाए। उन दिनों दोनों देशों के बीच और खासतौर पर नेहरू और जिन्ना के बीच ऐसी तल्खी थी कि दोनों इस समाधान पर भी राजी हो गए। माउंटबेटन ने उस किताब के दो टुकड़े करवाए। एक हिस्सा पाकिस्तान ले गया तो दूसरा भारत रह गया।
क्या है एनसायक्लोपीडिया ऑफ ब्रिटेनिका
एनसाइक्लोपीडिया ऑफ ब्रिटानिका नाम की यह किताब अंग्रेज़ी भाषा का एक विश्वकोश है। इस किताब के नाम दुनिया के सबसे पुराने और लगातार प्रकाशित होने वाला विश्वकोश का रिकॉर्ड दर्ज है। इस किताब की शुरुआत साल 1768 में स्कॉटलैंड के एडिनबर्ग से हुई थी। यह बुक ब्रिटानिका नाम की पब्लिशिंग कंपनी प्रकाशित करती है। यह सिर्फ विश्वकोश ही नहीं बल्कि इसे ब्रिटेन के ज्ञानकोश के नाम से भी जाना जाता है। इस विश्वकोश को दुनिया भर के विशेषज्ञ लेखकों द्वारा लिखा जाता है जिसके कारण यह
यह विश्वकोश विश्वसनीय और सटीक जानकारी देता है। आज यह विश्वकोश ऑनलाइन और डिजिटल दोनों रूपों में उपलब्ध है।
डिक्शनरी के भी हुए दो टुकड़े
सिर्फ इस किताब के ही नहीं सरकारी लाइब्रेरी में रखी एक डिक्शनरी को लेकर भी दोनों देश अड़ गए थे। उस डिक्शनरी को भी दो हिस्सों में फाड़ दिया गया। विजयलक्ष्मी बालाकृष्णनन ने लिखा है कि ए से के तक डिक्शनरी का हिस्सा भारत को मिला और बाकी का हिस्सा पाकिस्तान ले गया। आज ऐसे बंटवारे पर हमें हंसी आएगी लेकिन उन दिनों हालात ही कुछ ऐसे थे कि और किसी के सामने कोई दूसरा रास्ता ना था।
भारत पाकिस्तान बंटवारे को लेकर लिखी गई सबसे ऑथेंटिक किताब फ्रीडम ऐट मिडनाइट में इस पूरे बंटवारे के हर पहलू को बताया गया है। अपनी किताब में बंटवारे के एक किस्से का जिक्र करते हुए लैरी कॉलिन्स और डोमिनिक लैपियर ने एक दिलचस्प किस्सा भी बताया है। पेश है किताब से उस किस्सा का अंश:
"उन विभाजनों से कभी-कभी जो भावना और संकीर्णता पैदा होती थी, वह चौंका देने वाली थी। लाहौर में, पुलिस अधीक्षक पैट्रिक रिच ने अपने उपकरण एक मुस्लिम और एक हिंदू डिप्टी के बीच बांट दिए। उसने सब कुछ बांट दिया: लेगिंग, पगड़ी, राइफल, लाठी। आखिरी लॉट में पुलिस बैंड के उपकरण शामिल थे। रिच ने उन्हें अलग कर दिया, पाकिस्तान के लिए एक बांसुरी, भारत के लिए एक ढोल, पाकिस्तान के लिए एक तुरही, भारत के लिए झांझ की एक जोड़ी, जब तक कि एक वाद्य यंत्र, एक ट्रॉम्बोन नहीं रह गया। उसकी अविश्वासी आंखों के सामने उसके दो डिप्टी, जो वर्षों से कॉमरेड थे, उस आखिरी ट्रॉम्बोन को लेकर आपस में भिड़ गए कि वह आखिरी ट्रॉम्बोन किस प्रभुत्व को मिलेगा।"
सिर्फ एक चीज का नहीं हुआ बंटवारा
कुर्सी-टेबल, बल्ब से लेकर घोड़ागाड़ी तक के बराबर बंटवारे के लिए एक इंच पीछे ना हटने वाले दोनों देशों के बीच सिर्फ एक चीज का बंटवारा नहीं हुआ। वह थे शराब के बैरल्स। अंग्रेजी सत्ता के टाइम से कई गैलन शराब का स्टॉक भारत के पास था। पाकिस्तान ने शराब के बंटवारे से खुद को पीछे कर लिया। दरअसल शराब को इस्लाम में हराम बताया गया है। मजहब के नाम पर भारत से अलग हो रहे पाकिस्तान ने साफ कह दिया कि हमें इसका बंटवारा नहीं करना है। भारत चाहे तो सारी शराब अपने पास रख ले।
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Suneet Singh author
मैं टाइम्स नाऊ नवभारत के साथ बतौर डिप्टी न्यूज़ एडिटर जुड़ा हूं। मूल रूप से उत्तर प्रदेश में बलिया क...और देखें
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