World Braille Day: नेत्रहीनों के मसीहा कहलाए लुई ब्रेल, बचपन में गई आंखों की रोशनी, मरणोपरांत मिला सम्मान

Who is Louis Braille: लुई ब्रेल ये नाम फ्रांस के उस शिक्षाविद का है जिसकी बचपन में आंखों की रोशनी चली गई थी। बावजूद इसके उसने हार नहीं मानी और एक ऐसी लिपि तैयार की जो नेत्रहीनों के लिए वरदान साबिम हई।

World Braille Day: नेत्रहीनों के मसीहा कहलाए लुई ब्रेल, बचपन में गई आंखों की रोशनी, मरणोपरांत मिला सम्मान

Who is Louis Braille: संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 6 नवंबर 2018 को एक प्रस्ताव पारित किया गया था, जिसमें हर साल 4 जनवरी को ब्रेल लिपि के जनक लुई ब्रेल के जन्मदिन को 'विश्व ब्रेल दिवस' के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया था। पहली बार 4 जनवरी 2019 को विश्व ब्रेल दिवस मनाया गया। लुई ब्रेल ये नाम फ्रांस के उस शिक्षाविद का है जिसकी बचपन में आंखों की रोशनी चली गई थी। बावजूद इसके उसने हार नहीं मानी और एक ऐसी लिपि तैयार की जो नेत्रहीनों के लिए वरदान साबित हई।

ऐसे गई आंखों की रोशनी

लुई ब्रेल का जन्म 4 जनवरी 1809 में फ्रांस के छोटे से ग्राम कुप्रे में एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। इनके पिता साइमन रेले ब्रेल शाही घोडों के लिये काठी और जीन बनाने का कार्य किया करते थे। लुई जब तीन साल के थे तो वह घोड़ों के लिये काठी और जीन बनाने के औजारों से खेल रहे थे। एक दिन काठी के लिये इस्तेमाल किया जाने वाली चाकू अचानक उछल कर उनकी आंख में जा लगा जिससे काफी चोट आई। लापरवाही में इलाज नहीं मिला तो आठ वर्ष तक वह दृष्टि हीन हो गए।

बनाई ब्रेल लिपि

जब वह 10 साल के थे तो उन्हें रायल इन्स्टीट्यूट फार ब्लाइन्डस में दाखिला मिल गया। यहां उन्हें पता चला कि शाही सेना के सेवानिवृत कैप्टेन चार्लस बार्बर ने सेना के लिये ऐसी कूटलिपि का विकास किया है जिसकी सहायता से वे टटोलकर अंधेरे में भी संदेशों को पढ़ सकते है। उसने पादरीसे यह इच्छा प्रकट की कि वह कैप्टेन चार्लस बार्बर से मुलाकात करना चाहता है। अपनी मुलाकात के दौरान बालक ने कैप्टेन के द्वारा सुझायी गयी कूटलिपि में उन्होंने कुछ कुछ संशोधन प्रस्तावित किए। लुई ब्रेल ने आठ वर्षो के अथक परिश्रम से इस लिपि में अनेक संशोधन किये और अंततः 1829 में छह बिन्दुओं पर आधारित ऐसी लिपि बनाने में सफल हुये। उन्होंने सरकार से प्रार्थना की कि इसे दृष्ठिहीनों की भाषा के रूप में मान्यता प्रदान की जाए लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। 43 वर्ष की आयु में सन 1852 में उनका देहांत हो गया।

100 साल बाद निकाला गया शव

लुई के मरणोपरांत उनके द्वारा बनाई गई लिपि लोकप्रिय होती चली गई। इसके बाद सरकार ने इस लिपि को मान्यता देने पर विचार किया। लुई की मृत्यु के पूरे एक सौ वर्ष बाद फ्रांस में 20 जून 1952 का दिन उनके सम्मान का दिवस निर्धारित किया गया। इस दिन सौ वर्ष पूर्व दफनाये गये उनके पार्थिव शरीर के अवशेष पूरे राजकीय सम्मान के साथ बाहर निकाले गये। 4 जनवरी 2009 को उनके सम्मान में भारत सरकार ने भी डाक टिकट जारी किया था।

लुई के मरणोपरांत उनके द्वारा बनाई गई लिपि लोकप्रिय होती चली गई। इसके बाद सरकार ने इस लिपि को मान्यता देने पर विचार किया। लुई की मृत्यु के पूरे एक सौ वर्ष बाद फ्रांस में 20 जून 1952 का दिन उनके सम्मान का दिवस निर्धारित किया गया। इस दिन सौ वर्ष पूर्व दफनाये गये उनके पार्थिव शरीर के अवशेष पूरे राजकीय सम्मान के साथ बाहर निकाले गये। 4 जनवरी 2009 को उनके सम्मान में भारत सरकार ने भी डाक टिकट जारी किया था।

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कुलदीप राघव author

कुलदीप सिंह राघव 2017 से Timesnowhindi.com ऑनलाइन से जुड़े हैं।पॉटरी नगरी के नाम से मशहूर यूपी के बुलंदशहर जिले के छोटे से कस्बे खुर्जा का रहने वाला ह...और देखें

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