मां शैलपुत्री

Chaitra Navratri Pratham Din (चैत्र नवरात्रि प्रथम दिन): आज चैत्र नवरात्रि का प्रथम दिन है, ज‍िसका व‍िशेष महत्‍व माना जाता है। ये पावन तिथि मां दुर्गा और उनके नौ स्वरूपों के पूजन की होती है। इस दिन घर और मंदि‍रों में घटस्थापना की जाती है और मां आदिशक्ति के पहले स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा होती है। ऐसे में चलिए जानते हैं चैत्र नवरात्रि प्रथम दिन और माता के पहले स्वरूप से जुड़ी मान्यता और महत्ता। नवरात्री प्रतिपदा ​मां शैलपुत्री​ भोग, देवी मंत्र, आरती, चालीसा, व्रत कथा और शुभ रंग इस पेज पर जानें सभी डिटेल्स
Chaitra Navratri Pratham Din (चैत्र नवरात्रि प्रथम दिन):नवरात्रि भारतवर्ष का सबसे प्राचीन और प्रमुख त्योहार माना जाता है। वैदिक पंचांग के अनुसार इस वर्ष चैत्र नवरात्रि की तिथि 30 मार्च, शन‍िवार से प्रारंभ हो रही है। नवरात्रि के पावन दिनों में भक्त मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की पूजा करते हैं और व्रत रखते हैं। इस दौरान प्रतिपदा तिथि को कलश स्थापना के साथ ही मां आदिशक्ति का आह्वान किया जाता है और माता के आगमन का उत्सव मनाया जाता है। चैत्र नवरात्रि के पहले द‍िन मां शैलपुत्री की पूजा और अर्चना की जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पर्वतराज हिमालय के यहां जन्म लेने के कारण माता का नाम शैलपुत्री पड़ा जिसका अर्थ है हिमालय की बेटी। मां शैलपुत्री के स्वरूप की बात करें तो, सफेद वस्त्रों से सुशोभित मां शैलपुत्री दाहिने हाथ में त्रिशूल लिए रहती हैं और बाएं हाथ में कमल का फूल। इनके मस्तक पर चंद्रमा विराजमान रहता है और इनकी सवारी नंदी की है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता शैलपुत्री का पूजन-अर्चन और व्रत करने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं सिद्ध होती हैं और उसे सुख, समृद्धि और यश की प्राप्ति होती है।

Maa Shailputri Katha (मां शैलपुत्री की कथा)

पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में प्रजापति दक्ष ने यज्ञ करवाने का फैसला किया था। इसके लिए उन्होंने सभी देवी-देवताओं को निमंत्रण भेज था, लेकिन भगवान शिव को नहीं। देवी सती जानती थी कि उनके प‍िता दक्ष उनके पास निमंत्रण भेजेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वो उस यज्ञ में जाने के लिए बेचैन थीं, लेकिन भगवान शिव ने उन्‍हें मना कर दिया। उन्होंने कहा कि यज्ञ में जाने के लिए उनके पास कोई भी निमंत्रण नहीं आया है और इस नाते वहां जाना उचित नहीं है। देवी सती नहीं मानीं और बार-बार यज्ञ में जाने का आग्रह करती रहीं। देवी सती के ना मानने की वजह से भगवान शंकर को उनकी बात माननी पड़ी और उन्‍होंने उन्‍हें अनुमति दे दी। देवी सती जब अपने पिता प्रजापत‍ि दक्ष के यहां पहुंची तो देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम के साथ बातचीत नहीं कर रहा है। सारे लोग मुंह फेरे हुए हैं और सिर्फ उनकी माता ने स्नेह से उन्हें गले लगाया। उनकी बाकी बहनें उनका उपहास उड़ा रहीं थीं और देव सती के पति भगवान शिव को भी तिरस्कृत कर रहीं थीं। स्वयं प्रजापत‍ि दक्ष ने भी अपमान करने का मौका नहीं छोड़ा। ऐसा व्यवहार देख देवी सती अत्‍यंत ही दुखी हुईं। अपना और अपने पति का अपमान उनसे सहन न हुआ और फिर उन्होंने यज्ञ की अग्नि में खुद को स्वाहा कर अपने प्राण त्याग दिए। भगवान शिव को जैसे ही इसके बारे ज्ञात हुआ तो उन्‍होंने अपनी पीड़ा और क्रोध की ज्वाला से प्रजापति दक्ष के यज्ञ का विनाश कर दिया। युगों के बाद देवी सती ने फिर पर्वतराज हिमालय के यहां जन्म लिया ज‍िससे इनका नाम शैलपुत्री पड़ गया।

Maa Shailputri Mantra (मां शैलपुत्री मंत्र)

  • नवरात्रि के प्रथम दिन आप मां शैलपुत्री के इन मंत्रों का जाप कर सकते हैं –
  • ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॐ शैलपुत्री देव्यै नमः
  • ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः
  • या देवी सर्वभूतेषु मां शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
  • वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्। वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्

Maa Shailputri Shubh Rang (मां शैलपुत्री शुभ रंग)

माता का हर रूप किसी न किसी रंग से जुड़ा माना जाता है। इस पावन पर्व में शुभ रंगों को धारण करने से व्यक्ति के जीवन में कई सकारात्मक परिवर्तन आ सकते हैं। ऐसे में नवरात्रि‍ के पहले द‍िन मां शैलपुत्री की पूजा के दौरान पीला रंग या सफेद रंग धारण करना शुभ माना जाता है। मान्‍यता है क‍ि इन रंगों के वस्त्र धारण करने व्यक्ति के घर-संसार को मां शैलपुत्री का आशीर्वाद मिलता है।

Maa Shailputri Ka Bhog (मां शैलपुत्री का भोग)

माता दुर्गा के पहले स्वरूप मां शैलपुत्री को सफेद रंग बहुत प्रिय है, इसलिए उन्हें सफेद चीजों का भोग लगाना शुभ माना जाता है। भक्‍त भोग में बर्फी,खीर, रबड़ी अर्पित कर सकते हैं। इन चीजों के भोग से माता शैलपुत्री बहुत प्रसन्न होती हैं।

Mata Shailputri Ki Aarti (माता शैलपुत्री की आरती)

॥ आरती माता शैलपुत्री जी की ॥
****शैलपुत्री माँ बैल असवार। करें देवता जय जय कार॥****
शिव-शंकर की प्रिय भवानी। तेरी महिमा किसी ने न जानी॥
****पार्वती तू उमा कहलावें। जो तुझे सुमिरे सो सुख पावें॥****
रिद्धि सिद्धि परवान करें तू। दया करें धनवान करें तू॥
****सोमवार को शिव संग प्यारी। आरती जिसने तेरी उतारी॥****
उसकी सगरी आस पुजा दो। सगरे दुःख तकलीफ मिटा दो॥
****घी का सुन्दर दीप जला के। गोला गरी का भोग लगा के॥****
श्रद्धा भाव से मन्त्र जपायें। प्रेम सहित फिर शीश झुकायें॥
****जय गिरराज किशोरी अम्बे। शिव मुख चन्द्र चकोरी अम्बे॥****
मनोकामना पूर्ण कर दो। चमन सदा सुख सम्पत्ति भर दो॥********

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