मां स्कंदमाता

Chaitra Navratri Pancham Din (चैत्र नवरात्रि पंचम दिन): आज चैत्र नवरात्रि का पांचवा दिन है। इस दिन मां स्कंदमाता की उपासना की जाती है। मां स्कंदमाता, भगवान कार्तिकेय की माता हैं और इन्हें शक्ति, ममता और सौम्यता का प्रतीक माना जाता है। ये दिन भक्‍तों के लिए ज्ञान, शांति और आध्यात्मिक जागृति को पाने का होता है। भक्त इस दिन व्रत रखकर माता रानी के इस स्‍वरूप की पूजा-अर्चना करते हैं और उनसे सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।
Chaitra Navratri Pancham Din (चैत्र नवरात्रि पंचम दिन): चैत्र नवरात्रि‍ के पांचवें दिन मां दुर्गा के स्कंदमाता रूप की पूजा-अर्चना की जाती है। शक्ति, मातृत्व और करुणा की प्रतीक मां स्कंदमाता को भगवान कार्तिकेय यानी क‍ि स्कंद कुमार की माता कहा जाता है, ज‍िस नाते इन्हें स्कंदमाता कहा जाता है। इनका स्वरूप अत्यंत ही दिव्य और तेजस्वी है। माता कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं, इसलिए इन्हें 'पद्मासना' भी कहा जाता है। माता की चार भुजाएं हैं जिनमें से दो हाथों में कमल का फूल है तथा उनकी एक भुजा ऊपर की ओर उठी हुई है जिससे वो भक्तों को अभय तथा वरद मुद्रा में आशीर्वाद देती हैं और एक हाथ से उन्होंने गोद में बैठे अपने पुत्र कार्तिकेय को पकड़ा हुआ है। मां स्कंदमाता की पूजा से साधक को शांति, सौभाग्य और मोक्ष की प्राप्ति होती है। ऐसा माना जाता है कि इनकी कृपा से भक्तों की सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में सुख-शांत‍ि बनी रहती है। इनकी उपासना से विशेष रूप से ज्ञान और बुद्धि का विकास होता है, जिससे मनुष्‍य हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकता है।

Maa Skandamata Katha (मां स्कंदमाता की कथा)

पौराणिक मान्यता के अनुसार, माता सती द्वारा अपना देह त्यागने के बाद, भगवान शिव ने स्वयं को सांसारिक बंधनों से दूर कर लिया था और एक तपस्वी के रूप में तपस्या करने चले गए थे। इसी दौरान, तारकासुर और सुरपद्मन नाम के दो राक्षसों ने देवताओं पर हमला कर दिया। उस समय, देवताओं की मदद करने के लिए कोई नहीं था। तारकासुर और सुरपद्मन नाम के दोनों राक्षसों को भगवान ब्रह्मा द्वारा ये वरदान प्राप्त था, कि उन्हें मारने के लिए भगवान शिव की संतान को ही आना होगा। उन राक्षसों ने हर किसी को परेशान करके रखा था। इन दोनों राक्षसों के अत्याचारों को देख, देवता गण भी चिंतित थे। तब सभी देवता गण भगवान विष्णु के पास गए और उन्हें अपना दुख सुनाया। परंतु भगवान विष्णु ने उनकी कोई मदद नहीं की। भगवान विष्णु से मदद न मिलने पर, देवताओं ने नारद मुनि के पास जाने का सोचा। उन्होंने नारद मुन‍ि से कहा, कि यदि वो माता पार्वती से भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए तपस्या करने को कहेंगे, तब शायद भगवान शिव उनसे व‍िवाह कर लें और उनके मिलन से महादेव की संतान जन्म ले, जो उन राक्षसों का वध कर सके। इसलिए नारद मुनि के कहे अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की और उनकी भक्ति से खुश होकर, भगवान शिव ने उनसे विवाह करने का निर्णय लिया। विवाह के पश्चात, माता पार्वती और भगवान शिव की ऊर्जा से एक बीज का जन्म हुआ। बीज के अत्यधिक गर्म होने के कारण, उसे अग्नि देव को सर्वाना नदी में सुरक्षित रखने के लिए सौंपा दिया गया। अग्निदेव भी उसकी गर्मी सह नहीं पाए, इसलिए उन्होंने उस बीज को गंगा को सौंप दिया, जो उसे आखिर में सर्वाना झील में ले गईं, जहां माता पार्वती पहले से ही पानी के रूप में मौजूद थीं और उस बीज को धारण करते ही, वो गर्भवती हो गईं। कुछ समय पश्चात, भगवान कार्तिकेय ने अपने छह मुखों के साथ जन्म लिया। भगवान कार्तिकेय के जन्म के बाद, उन्हें तारकासुर और सुरपद्मन का विनाश करने के लिए तैयार किया गया। सभी देवताओं ने मिलकर, उन्हें अलग-अलग तरीके का ज्ञान दिया और राक्षसों से लड़ने के लिए, उन्हें महत्वपूर्ण शस्त्र भी दिए। आखिर में भगवान कार्तिकेय ने सभी राक्षसों का वध कर दिया। इसी कारण मां दुर्गा को स्कंदमाता यानी कार्तिकेय की माता के रूप में जाना जाता है।

Maa Skandamata Mantra (मां स्कंदमाता मंत्र)

  • चैत्र नवरात्रि‍ के पांचवें दिन आप मां स्कंदमाता के इस सिद्ध मंत्रों का जाप कर सकते हैं –
  • ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम:
  • ॐ ऐं ह्रीं क्लीं स्कन्दमातायै नम:
  • या देवी सर्वभू‍तेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

Maa Skandamata Shubh Rang (मां स्कंदमाता शुभ रंग)

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां स्कंदमाता की पूजा के दौरान सफेद और पीले रंग के वस्त्र धारण करना उच‍ित माना जाता है। सफेद और पीला रंग मां स्कंदमाता को प्रिय है। इन रंगों के वस्त्र धारण करने से माता प्रसन्न होती हैं।

Maa Skandamata Ka Bhog (मां स्कंदमाता का भोग)

मां स्कंदमाता को केले और केले से बनी चीजों का भोग लगाया जाता है। केले के अलावा माता को खीर-पूड़ी, हलवा-पूड़ी, पीले रंग की मिठाइयां, केसर की खीर का भोग भी लगाया जा सकता है।

Mata Skandamata Ki Aarti (माता स्कंदमाता की आरती)

॥ आरती देवी स्कन्दमाता जी की ॥
जय तेरी हो स्कन्द माता। पांचवां नाम तुम्हारा आता॥
सबके मन की जानन हारी। जग जननी सबकी महतारी॥
तेरी जोत जलाता रहूं मैं। हरदम तुझे ध्याता रहूं मै॥
कई नामों से तुझे पुकारा। मुझे एक है तेरा सहारा॥
कही पहाड़ों पर है डेरा। कई शहरों में तेरा बसेरा॥
हर मन्दिर में तेरे नजारे। गुण गाए तेरे भक्त प्यारे॥
भक्ति अपनी मुझे दिला दो। शक्ति मेरी बिगड़ी बना दो॥
इन्द्र आदि देवता मिल सारे। करे पुकार तुम्हारे द्वारे॥
दुष्ट दैत्य जब चढ़ कर आए। तू ही खण्ड हाथ उठाए॥
दासों को सदा बचाने आयी। भक्त की आस पुजाने आयी॥

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