ऐस्टेट या इंडिका नहीं.. ये थी पहली TATA कार, 40 के दशक में थी सेना की शान

टाटा मोटर्स का नाम आते ही दिमाग में इसकी पहली कार का नाम एस्टेट या इंडिका आता है। लेकिन इस ब्रांड की गाड़ी ने 1940 के दशक में सड़क के साथ युद्ध के मैदान में भी अपना जलवा बिखेरा था। यहां हम आपको टाटानगर नाम से मशहूर टाटा के सहयोग से बनी बुलेटप्रूफ कार के बारे में बता रहे हैं। इसका उत्पादन जमशेदपुर में किया गया था जिस वजह से इसका नाम टाटानगर पड़ा।

टाटा का टाटानगर वाहन
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टाटा का टाटानगर वाहन

टाटानगर का उत्पादन 1940 से 1944 के बीच किया गया था और ये एक आर्मर्ड कैरियर व्हील्ड वाहन था। इस गाड़ी का इस्तेमाल भारतीय यूनिट द्वारा दिव्तीय विश्वयुद्ध में पेट्रोलिंग और दुश्मनों को खत्म करने के लिए किया जाता था।

बहुत नायाब हुआ वाहन
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बहुत नायाब हुआ वाहन

सीमित समय के भीतर इस बख्तरबंद 4-व्हील गाड़ी की 4,600 से ज्यादा यूनिट बनाई गईं। इनका इस्तेमाल दुनिया भर में कई जगहों पर किया गया है। ये गाड़ी मॉन्टे कसीनो से लेकर इजिप्ट, बर्ना जैसे कई अन्य देशों में इस आर्मर्ड ने अपना जलवा बिखेरा है।

किसने बनाया टाटानगर
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किसने बनाया टाटानगर

टाटानगर आर्मर्ड व्हीकल को जमशेदपुर स्थित ईस्टर्न इंडिया लोकोमोटिव प्लांट में असेंबल किया गया था। इसका नाम 1945 में बदलकर टाटा इंजीनियरिंग एंड लोकोमोटिव कंपनी यानी टीईएलसीओ बना। इसके लिए टाटा स्टील का स्टील इस्तेमाल किया गया।

टाटा स्टील का कमाल
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टाटा स्टील का कमाल

टाटा स्टील ने इस कार को बहुत मजबूत अर्मर्ड व्हीकल बनाकर सेना की मदद की थी। इसकी छत पर एक हेवी मशीन गन लगाई गई थी, उस समय गाड़ियों पर लगी ऐसी बंदूकें बड़ा नुकसान दुश्मन को पहुंचा सकती है। ये सैनिकों की जान बचाया करती थी।

बहुत दमदार था इंजन
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बहुत दमदार था इंजन

टाटानगर के साथ बहुत दमदार 3.0-लीटर डीजल इंजन दिया गया है। इसका वजन 2.5 टन है और इतने वजन के अलावा 3 से 4 लोगों का भार ये इंजन आसानी से उठा लेता था। इसकी टॉप स्पीड 80 से 90 किमी/घंटा तक थी। अब दुनिया भर में ये बहुत कम बचे हैं।

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