गेहूं-सरसों को छोड़ करने लगे मशरूम की खेती, अब कमा रहे हैं 180000 रुपये महीना

Mushroom Farming : ग्राउंड वाटर खारे होने की वजह से गेहूं, धान और सरसों की खेती के लिए समस्या पैदा हो गई। अनाज की पैदावार कम होने लगी। दक्षिण-पश्चिम दिल्ली के किसान इस समस्या से लगातार जूझ रहे हैं। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें। खेतों से उनकी आय धीरे-धीरे कम होती जा रही है। वे चिंता में डूबे रहते थे। इसी बीच इस इलाके के एक किसान ने आईसीएआर कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क किया और सलाह मांगी कि आखिर क्या करें?

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​कृषि वैज्ञानिकों ने दी मशरूम की खेती की सलाह

Mushroom Production: किसान तक के मुताबिक दक्षिण-पश्चिम दिल्ली के हसनपुर गांव के रहने वाले किसान पवन कुमार खारे पानी की वजह से उनकी फसल की पैदावार कम होने को लेकर आईसीएआर कृषि विज्ञान केंद्र दिल्ली पहुंचे। वहां उन्होंने वहां उन्होंने कृषि वैज्ञानिकों से सलाह मांगी। वैज्ञानिकों ने उनके इलाकों की मिट्टी का जायजा लिया। फिर मशरूम की खेती करने की सलाह दी। किसान तक के मुताबिक किसान पवन ने 2016 में आईसीएआर-केवीके परिसर में मशरूम की खेती की ट्रेनिंग ली। उसके बाद इस किसान की जिंदगी बदल गई।

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​व्यवसायिक तौर पर मशरूम की खेती का आया विचार​

कृषि वैज्ञानिकों की सलाह मानकर पवन कुमार ने व्यवसायिक तौर पर मशरूम की खेती करने का विचार किया। क्योंकि पारंपरिक खेती गेहूं,चावल, सरसों से आय नहीं बढ़ रही थी। मशरूम की खेती कैसे की जाए इसे लिए लगातार वैज्ञानिकों से सलाह लेते रहे है। उसके अनुसार काम करते रहे।

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​छोटे से एरिया में की मशरूम की खेती शुरुआत​

मशरूम की खेती की ट्रेनिंग लेने के बाद 2017 में कृषि वैज्ञानिकों की देखरेख में छोटे से एरिया में मशरूम की खेती की शुरुआत की। मशरूम की खेती लिए किस तरह का वातवरण, कितना पानी, कैसा खाद की जरुरत पड़ती है। इसको लेकर कृषि विज्ञान केंद्र से सारी तकनीकी और जानकारी हासिल की।

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​धीरे-धीरे मशरूम की खेती का दायरा बढ़ाया​

जब वह मशरूम की खेती करने में माहिर हो गए तब वर्ष 2022 में इसका दायरा बढ़ा। 900 वर्ग फीट से बढ़ाकर 5000 वर्ग फीट कर दिया। वह इसे आगे बढ़ाने के लिए कृषि वैज्ञानिकों से संपर्क में रहे। अब कॉन्‍ट्रैक्‍ट फार्मिंग भी कर रहे है।

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​अब हो रही है लाखों की कमाई​

पवन ने शुरुआत में लोकल बाजार में मशरूम बेचे। बाद में जब इन्होंने इसकी खेती का दायरा बढ़ाया तो उत्पादन भी बढ़ा। फिर इसे दिल्ली-एनसीआर के रेस्‍टोरेंट्स और मॉल में बेचना शुरु किया। सप्‍लाई के लिए बुकिंग पोर्टल भी बनाया। अब वह 54000 किलोग्राम मशरूम का उत्पादन करते हैं। इनसे उन्हें सालाना 21,60,000 रुपये की नेट प्रोफिट होती है।