ऐसे बरसता था मुगलों पर पैसा, जानें जनता कैसे करती थी दाल-रोटी का इंतजाम

भारत में मुगलों की हुकूमत 1526 से 1857 तक रही। मुगलों के पास एक बड़ा खजाना था। मगर ये खजाना कैसे भरता था और उस समय लोग कैसे कमाई करते थे, ये शायद आपने कभी नहीं सोचा होगा। आइए जानते हैं इस बारे में।

जनता पर टैक्स
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​जनता पर टैक्स​

जहां तक मुगल बादशाहों की बात है तो वे कमाई के लिए जनता पर टैक्स लगाते थे। इनमें किसानों से फसल पर पैदावार के हिसाब से टैक्स लिया जाता था।

लैंड रेवेन्यू टैक्स
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​लैंड रेवेन्यू टैक्स ​

मुगल लैंड रेवेन्यू टैक्स भी लेते थे, जो 25% तक था। इस टैक्स को जिहत और सरजिहत, फुरुअत और अबवाब कहा जाता था। मुगल लोगों पर इम्पोर्ट टैक्स भी लगाते थे, जो दूसरे देशों से आने वाली चीजों पर 2.5 से 10 फीसदी तक हुआ करता था।

जजिया टैक्स और जकात टैक्स
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​जजिया टैक्स और जकात टैक्स​

मुगलों की हुकूमत के दौरान गैर-मुस्लिमों से जजिया टैक्स और मुस्लिमों से जकात टैक्स भी लिया जाता था। ये धार्मिक टैक्स थे।

कटरापार्चा टैक्स
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​कटरापार्चा टैक्स​

इतना ही नहीं घरेलू और विदेशी कारोबार के लिए जो सफर सड़क या नदी के जरिए किए जाते थे, उन पर राहदारी टैक्स लिया जाता था। इसी तरह बाजार शुल्क के अलावा व्यापारियों और कारीगरों से रेशम जैसे उत्पादों पर कटरापार्चा टैक्स लिया जाता था।

गेहूँ और चावल उगाते
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​गेहूँ और चावल उगाते​

अब बात करते हैं जनता की कमाई की। मुगलों के दौर में अधिकतर लोग ग्रामीण इलाकों में रहते थे और खेती करते थे। ज्यादातर लोग तंबाकू और कपास उगाते थे। वहीं खाने के लिए गेहूँ और चावल भी उगाते थे। मुगल बादशाह कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए टैक्स इंसेंटिव भी दिया करते थे।

क्लर्क और कुशल कारीगर
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​क्लर्क और कुशल कारीगर ​

मुगलों के दौर में कपड़े समेत कई चीजों की मैन्युफैक्चरिंग, ट्रे़डिंग, इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट, मजदूरी और घुड़सवार सैनिक, क्लर्क और कुशल कारीगर हुआ करते थे।

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