पनीर विलेज के नाम से मशहूर है उत्तराखंड का ये गांव, जानें क्या है इसकी वजह

देव भूमि के नाम से प्रसिद्ध उत्तराखंड में कुल 13 जिले हैं, जिनमें 16,674 से अधिक गांव स्थित है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इनमें से किस गांव को उत्तराखंड के पनीर विलेज के नाम से जाना जाता है। आइए आपको बताएं -

उत्तराखंड भारत के सबसे खूबसूरत राज्यों में से एक है। इस राज्य को देव भूमि के नाम से भी जाना जाता है। अपनी खूबसूरत वादियों और प्राकृतिक दृश्य के साथ राज्य हरिद्वार केदारनाथ बदरीनाथ पंच केदार व अन्य कई प्राचीन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। यहां हर साल लाखों लोग आते हैं। यहां कई गांव हैं जिन्हें उनकी खासियत के आधार पर जाना जाता है।
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उत्तराखंड भारत के सबसे खूबसूरत राज्यों में से एक है। इस राज्य को देव भूमि के नाम से भी जाना जाता है। अपनी खूबसूरत वादियों और प्राकृतिक दृश्य के साथ राज्य हरिद्वार, केदारनाथ, बदरीनाथ, पंच केदार व अन्य कई प्राचीन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। यहां हर साल लाखों लोग आते हैं। यहां कई गांव हैं, जिन्हें उनकी खासियत के आधार पर जाना जाता है।

आज हम आपको ऐसे ही एक गांव के बारे में बताने जा रहे हैं। उत्तराखंड में एक ऐसा गांव है जिसे पनीर विलेज के नाम से जाना जाता है। बहुत कम लोग हैं जो इस गांव के बारे में जानते हैं। तो चलिए आज आपको उत्तराखंड के पनीर विलेज और इस नाम के पीछे की वजह के बारे में बताएं -
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आज हम आपको ऐसे ही एक गांव के बारे में बताने जा रहे हैं। उत्तराखंड में एक ऐसा गांव है, जिसे पनीर विलेज के नाम से जाना जाता है। बहुत कम लोग हैं, जो इस गांव के बारे में जानते हैं। तो चलिए आज आपको उत्तराखंड के पनीर विलेज और इस नाम के पीछे की वजह के बारे में बताएं -

उत्तराखंड के रौतू की बेली गांव को पनीर विलेज के नाम से जाना जाता है। ये विलेज टिहरी जिले में स्थित है।
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उत्तराखंड के 'रौतू की बेली गांव' को 'पनीर विलेज' के नाम से जाना जाता है। ये विलेज टिहरी जिले में स्थित है।

इस गांव को पनीर विलेज इसलिए कहा जाता है क्योंकि यहां रहने वाले करीब 250 परिवार पारंपरिक तरीके से घर में पनीर बनाने का काम करते हैं।
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इस गांव को पनीर विलेज इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यहां रहने वाले करीब 250 परिवार पारंपरिक तरीके से घर में पनीर बनाने का काम करते हैं।

शुरुआती समय में गांव में केवल 35 से 40 लोग थे जो पनीर बनाते थे लेकिन अब ये संख्या बढ़कर 250 हो गई है। इन लोगों की मुख्य आजीविका ही पनीर बनाकर बेचना है।
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शुरुआती समय में गांव में केवल 35 से 40 लोग थे, जो पनीर बनाते थे, लेकिन अब ये संख्या बढ़कर 250 हो गई है। इन लोगों की मुख्य आजीविका ही पनीर बनाकर बेचना है।

दैनिक भास्कर और न्यूज18 लोकल की खबर के अनुसार इस गांव में 1980 में सबसे पहले पनीर बनाने का काम किया गया था
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दैनिक भास्कर और न्यूज18 लोकल की खबर के अनुसार, इस गांव में 1980 में सबसे पहले पनीर बनाने का काम किया गया था

रौतू की बेली गांव के पनीर की मांग टिहरी उत्तरकाशी देहरादून मसूरी और दिल्ली तक है। पनीर की शुद्धता और गुणवत्ता के कारण इस गांव के पनीर की डिमांड दूर-दूर तक है।
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रौतू की बेली गांव के पनीर की मांग टिहरी, उत्तरकाशी, देहरादून, मसूरी और दिल्ली तक है। पनीर की शुद्धता और गुणवत्ता के कारण इस गांव के पनीर की डिमांड दूर-दूर तक है।

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