अगर बात बन जाती तो मनाली ही नहीं, मसूरी और नैनीताल भी हिमाचल में होते

आज उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश भले ही दो अलग राज्य हैं, लेकिन कभी इन दोनों क्षेत्रों के लोग एक राज्य बनाना चाहते थे। वह चाहते थे कि समूचा पहाड़ी क्षेत्र एक राज्य बने। यह कोशिशें हिमाचल प्रदेश को केंद्र शासित प्रदेश घोषित किए जाने के बाद भी होती रहीं। लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। चलिए जानते हैं क्या है ये पूरी कहानी -

दो क्षेत्र एक मकसद
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दो क्षेत्र एक मकसद

आज के हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड को देखें तो दोनों में बड़ी समानता है। हालांकि, हिमाचल प्रदेश बहुत पहले अलग प्रदेश बन चुका है और वह विकास के मामले में भी आगे है। लेकिन एक समय हिमाचल और उत्तराखंड के अलग-अलग क्षेत्रों में रहने वाले लोग एक हिमालयी राज्य के लिए साथ आए थे। अल्मोड़ा भी हिमाचल में होता

दो नेताओं का संघर्ष और मनमुटाव
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दो नेताओं का संघर्ष और मनमुटाव

वृहद हिमालयी राज्य के लिए यशवंत सिंह परमार और टिहरी के प्रमुख नेता परिपूर्णानंद पैन्युली ने बड़ी कोशिशें कीं। दोनों का मकसद एक था, दोनों चाहते थे कि पहाड़ों में बसे सभी नगर और क्षेत्र वृहद हिमालय का हिस्सा बनें। लेकिन दोनों के बीच मनमुटाव के चलते दोनों मिलकर संघर्ष नहीं कर पाए।

मनमुटाव का कारण
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मनमुटाव का कारण

1946 में ऑल इंडिया स्टेट पीपुल्स कॉन्फ्रेंस ने हिमालयन हिल स्टेट्स रीजनल काउंसिल का गठन किया। इसकी बैठकें दिल्ली में भी हुईं। 10 जून 1947 को काउंसिल के चुनाव हुए और इसमें दो गुट आमने-सामने थे। इस चुनाव में टिहरी प्रजामंडल के अध्यक्ष परिपूर्णानंद पैन्युली के गुट ने यशवंत सिंह परमार के गुट को हरा दिया। और पढ़ें

यशवंत सिंह परमार ने बनाया अलग गुट
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यशवंत सिंह परमार ने बनाया अलग गुट

पैन्युली गुट से हारने बाद में यशवंत सिंह परमार के गुट को तवज्जो नहीं मिली और उन्होंने शिमला हिल स्टेट्स सब रीजनल काउंसिल का गठन किया। इस काउंसिल में टिहरी प्रजामंडल को शामिल नहीं किया गया। इस गुट ने जन आंदोलन शुरू किए और कई रियासतों को अपने साथ जोड़ लिया। इस तरह से एक नए राज्य के गठन का काम शुरू हो गया। और पढ़ें

अलग राज्य लेने में सफल रहे यशवंत
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अलग राज्य लेने में सफल रहे यशवंत

26 जनवरी 1948 को नए प्रदेश का नाम हिमाचल प्रदेश रखने का प्रस्ताव आया और इस पर सबकी सहमति बनी। 2 मार्च 1948 को टिहरी और बिलासपुर को छोड़कर बाकी सभी रिसायतें भारतीय संघ की सी-श्रेणी में शामिल हो गईं। 8 मार्च 1948 को हिमाचल प्रदेश को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया। इसमें टिहरी को शामिल नहीं किया गया। 15 मार्च 1948 को हिमाचल केंद्र शासित प्रदेश के गठन के साथ ही हिमालयन हिल स्टेट्स रीजनल काउंसिल, प्रजामंडल ने अपनी प्रासंगिता खो दी। इस तरह पैन्युली गुट कमजोर पड़ गया। और पढ़ें

हिमाचल में शामिल होना चाहते थे टिहरी के लोग
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हिमाचल में शामिल होना चाहते थे टिहरी के लोग

पैन्युली सहित टिहरी की जनता भी नहीं चाहती थी कि वह संयुक्त प्रांत यानी आज के उत्तर प्रदेश का हिस्सा बनें। बल्कि वह चाहते थे कि इसे हिमाचल में मिलाया जाए। लेकिन सरकार नहीं मानीं और गोविंद बल्लभ पंत भी चाहते थे कि यह क्षेत्र संयुक्त प्रांत का हिस्सा बने। फिर 1 अगस्त 1949 को टिहरी का भारत में विलय हो गया और यह समूचा क्षेत्र संयुक्त प्रांत का हिस्सा बन गया। और पढ़ें

हिमाचल के मुख्यमंत्री बने परमार
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हिमाचल के मुख्यमंत्री बने परमार

यशवंत सिंह परमार हिमाचल प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने। पहले वह 8 मार्च 1952 से 31 अक्टूबर 1956 तक 'C' स्टेट के मुख्यमंत्री रहे। फिर 1963 से 1971 तक केंद्र शासित प्रदेश हिमाचल प्रदेश के सीएम रहे। बाद में जब हिमाचल को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला तो वह 1971 से 1977 तक भी राज्य के मुख्यमंत्री रहे।

इस बारे में घुघुती नाम के एक यूट्यूब चैनल ने विस्तार से जानकारी दी है।
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इस बारे में घुघुती नाम के एक यूट्यूब चैनल ने विस्तार से जानकारी दी है।​

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