सुनी होगी अंधेर नगरी चौपट राजा कहावत, चलिए जानते हैं कहां है उस राजा का उल्टा किला
अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी टके शेर खाजा... की कहावत तो आपने सुनी होगी। भारतेंदु हरिश्चंद के नाटक 'अंधेर नगरी' से यह कहावत ली गई है। इस नाटक का राजा अन्यायी शासन व्यवस्था का प्रतीक है, इसलिए उसे चौपट राजा और उसकी नगरी को अंधेर नगरी कहा गया है। चलिए जानते हैं उस राजा और उसके उल्टा किला के बारे में

मूर्ख मुखिया के बारे में कहावत
भारतेंदु के नाटक में सामाजिक और राजनीतिक परिवेश पर तीखे कटाक्ष किए गए हैं। अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा का मतलब यही है कि जहां का राजा या मुखिया ही मूर्ख हो, वहां अन्याय होता रहेगा और किसी भी चीज का कोई मूल्य नहीं रह जाता।

उल्टी हरकतों से उल्टा हुआ किला
अंधेर नगरी के चौपट राजा का एक उल्टा किला भी था। कहा जाता है कि उसका किला हमेशा से उल्टा नहीं था, बल्कि उसने काम ही कुछ ऐसे किए जिसके बाद उसका किला उल्टा हो गया। तब से आज तक उस जगह को उल्टा किला के नाम से ही जाना जाता है।

इस शहर में है उल्टा किला
अंधेर नगरी कहीं और नहीं, बल्कि संगमनगरी प्रयागराज के झूंसी इलाके में थी। जी हां उसी प्रयागराज में, जहां जल्द महाकुम्भ मेला लगने वाला है। यहीं पर उल्टा किला मौजूद है। माना जाता है कि यहां पर एक मूर्ख राजा हरिबूम का शासन हुआ करता था। जिसकी मूर्खता की कई कहानियां प्रचलित हैं।

कैसे पहुंचें झूंसी
प्रयागराज शहर से पूर्व की ओर गंगा के दूसरे तट झूंसी इलाका है। शास्त्री पुल को पार करते ही दाईं ओर कई टीले दिखते हैं। कहा जाता है कि इन टीलों के नीचे तमाम निर्माण दबे हुए हैं। इसी इलाके को ही उल्टा किला कहा जाता है।

अंधेर नगरी का असली नाम
कहा जाता है कि प्राचीन काल में आज के झूंसी इलाके में ही प्रतिष्ठानपुर नगर था। यह नगर चंद्रवंशी राजाओं की राजधानी था। हरिबूम का शासन बहुत ही अराजक था, जिसकी वजह से उसकी नगरी को अंधेर नगरी कहा जाता था। आगे उन कहानियों के बारे में जानते हैं, जिनके कारण यह इलाका उल्टा किला बना।

भूकंप से उलट गई नगरी
कहा जाता है कि हरिबूम के शासन में प्रजा पर बहुत अत्याचार होता था, उसका शासन अराजक था। इसी बीच एक दौरान कोई भूकंप सा आया और जिससे उसकी नगरी ही उलट गया।

गुरु गोरखनाथ से जुड़ी कहानी
एक अन्य कहानी के अनुसार गुरु गोरखनाथ और मत्सेंद्र नाथ संगम में स्नान के लिए आए। राजा ने संतों को सम्मान नहीं दिया। अपमान से नाराज संतों ने राजा को श्राप दे दिया। कहा जाता है कि श्राप के प्रभाव से यहां वज्रपात हुआ और पूरी नगरी झुलस गई और किला उलट गया। संभवत: झूंसी नाम भी झुलसने से ही आया हो।

फकीर की कहानी
कहा जाता है कि 1359 के आसपास मध्य एशिया से अली मुर्तजा नाम के एक फकीर यहां आए। फकीर हमेशा इबादत में लीन रहते थे और राजा हरिबूम को वह बिल्कुल पसंद नहीं थे। इसके बावजूद एक बार राजा ने फकीर को अपने यहां खाने पर बुलाया, लेकिन गलत पकवान परोस दिए।

फकीर की बद-दुआ का असर
कहते हैं कि फकीर ने उस पकवान को हवा में उछाल दिया। उस पकवान के टुकड़े हुए और उनसे पूरा किला झुलस गया। इस तरह किला खंडहर बन गया और समय बीतने पर इसे उल्टा किला कहा जाने लगा।

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