बुलंदशहर की बेटी ने अमेरिकी चुनाव में गाड़ा झंडा, AMU से गोल्ड मेडल हासिल कर रचा था इतिहास

Meet Saba Haider who creates history in the America Election: अमेरिका के ड्यूपेज काउंटी बोर्ड के चुनाव में उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर की बेटी सबा हैदर ने रिपब्लिकन पार्टी की उम्मीदवार पैटी गुस्टिन को साढ़े आठ हजार वोट से हराकर जीत दर्ज की। सबा हैदर का परिवार गाजियाबाद में रहता है और उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से गोल्ड मेडल हासिल किया है।

कौन हैं सबा हैदर
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कौन हैं सबा हैदर

सबा हैदर, ये नाम इस समय खूब चर्चा में है। अमेरिका के ड्यूपेज काउंटी बोर्ड के चुनाव में सबा हैदर ने रिपब्लिकन पार्टी की उम्मीदवार पैटी गुस्टिन को साढ़े आठ हजार वोट से हराकर जीत दर्ज की। डेमोक्रेटिक पार्टी ने 2022 में भी उन्हें उम्मीदवार बनाया था, जिसमें उन्हें रिपब्लिकन पार्टी की उम्मीदवार से करीब एक हजार वोट से हार का सामना करना पड़ा था लेकिन इस बार उन्होंने जीत दर्ज की है। और पढ़ें

गाजियाबाद और बुलंदशहर से ताल्लुक
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गाजियाबाद और बुलंदशहर से ताल्लुक

सबा हैदर यूपी के गाजियाबाद के चित्रगुप्त विहार में रहने वाले जल निगम के रिटायर्ड वरिष्ठ अभियंता अली हैदर की बेटी हैं। उनकी मां एक स्कूल चलाती हैं। वह मूलरूप से बुलंदशहर के औरंगाबाद की रहने वाली हैं।

किस स्कूल से पास आउट हैं
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किस स्कूल से पास आउट हैं

सबा हैदर ने गाजियाबाद के होली चाइल्ड से 12वीं तक शिक्षा ली है। इसके बाद रामचमेली चड्ढा विश्वास गर्ल्स कॉलेज से बीएससी में टाप किया। सबा हैदर की एजुकेशन भारत में ही हुई है।

AMU से गोल्ड मेडलिस्ट
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AMU से गोल्ड मेडलिस्ट

सबा बचपन से ही बहुत मेहनती और पढ़ने में टॉप रही है। वह अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से वाइल्ड लाइफ में एमएससी में गोल्ड मेडलिस्ट रही हैं।

शादी के बाद अमेरिका
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शादी के बाद अमेरिका

सबा हैदर की शादी 2005 में हुई। उनके पति बैंक ऑफ अमेरिका में एक बड़े पद पर हैं। वह 2007 में उनके साथ अमेरिका चली गईं। सबा शादी के बाद पति के साथ शिकागो में बस गईं।

क्या करती हैं सबा
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क्या करती हैं सबा

सबा पिछले 15 साल से अमेरिका में योग सिखा रही हैं और सामाजिक कार्यों में लगी हुई हैं। वह स्वास्थ्य, शिक्षा, पर्यावरण और नशा विरोधी जागरूकता अभियान के प्रति लोगों को जागरूक कर रही हैं।

नहीं हारी हिम्मत
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नहीं हारी हिम्मत

सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर बेहद मजबूत छवि वाली सबा हैदर ने चुनाव लड़ने का फैसला किया। पहली बार असफल होने के बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।

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