पानीपत की तीसरी लड़ाई किस​के बीच हुई, कौन जीता, कैसे कहलाया 18वी सदी का सबसे बड़ा युद्ध

पानीपत का तीसरा युद्ध 14 जनवरी 1761 को अहमद शाह अब्दाली (जिसे अहमद शाह दुर्रानी भी कहा जाता है) और मराठों के बीच लड़ा गया। यह युद्ध 18वी सदी का सबसे बड़ा युद्ध माना गया है। पानीपत दिल्ली से लगभग 60 मील (95.5 किमी) उत्तर में है। इस युद्ध में दोआब के 'रोहिला अफगान' और अवध के नवाब 'शुजा-उद-दौला' ने अहमद शाह अब्दाली का साथ दिया। सैन्य रूप से, इस लड़ाई में मराठों की फ्रांसीसी तोपें और घुड़सवार सेना का मुकाबला अफगानों और रोहिल्लाओं की भारी घुड़सवार सेना और तोपखाने से हुआ, जिसका नेतृत्व अहमद शाह दुर्रानी और नजीब-उद-दौला कर रहे थे, दोनों ही जातीय पश्तून (पूर्व को अहमद शाह अब्दाली के नाम से भी जाना जाता है) थे।

पानीपत की तीसरी लड़ाई किसने जीती
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पानीपत की तीसरी लड़ाई किसने जीती

सैन्य दृष्टि से अफगान और रोहिलों की भारी घुड़सवार सेना व तोपखानों का बोलबाला रहा, जिसका नेतृत्व अहमद दुर्रानी और नजीब-उद-दौला कर रहा था, इस युद्ध में मराठों की फ्रांसीसी आपूर्ति वाली तोपखाने व घुड़सवार सेना को हार का सामना करना पड़ा। 18वीं सदी में हुए युद्धों में इसे सबसे बड़ा युद्ध माना जाता है जिसमें दो सेनाओं के बीच युद्ध में एक ही दिन में सबसे बड़ी संख्या में मौतें हुई थी।और पढ़ें

पेशवा बाजीराव के बढ़ते कदम
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पेशवा बाजीराव के बढ़ते कदम

इसके बाद पेशवा बाजीराव ने गुजरात और मालवा पर नियंत्रण कायम कर लिया था। आखिरकार वर्ष 1737 में बाजीराव ने दिल्ली के बाहरी इलाके में मुगलों को हरा दिया और मराठा नियंत्रण के तहत दक्षिण के पूर्व मुगल प्रदेशों का अधिकांश भाग अपने कब्जे में कर लिया।

शुजा-उद-दौला की भूमिका
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शुजा-उद-दौला की भूमिका

मराठों के साथ-साथ अफगानों ने भी अवध के नवाब शुजा-उद-दौला को अपने शिविर में शामिल करने की कोशिश की। लेकिन शुजा-उद-दौला ने अफगान-रोहिल्ला गठबंधन में शामिल होने का फैसला लिया। मराठाओं के लिए यह रणनीतिक रूप से एक बड़ा नुकसान था।

कौन जीता पानीपत का तीसरा युद्ध
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कौन जीता पानीपत का तीसरा युद्ध

आखिरकार अगस्त, 1760 में मराठा शिविर दिल्ली पहुंचा और उसने शहर पर धावा बोल दिया। इसके बाद यमुना नदी के किनारे एक मुठभेड़ और कुंजपुरा में एक युद्ध हुआ, जिसमें मराठों ने लगभग 15,000 की अफगान सेना को हराकर युद्ध जीत लिया। इसके बाद पानीपत शहर में मराठों के खिलाफ अब्दाली के नेतृत्व में दो महीने की लंबी घेराबंदी हुई, जिसके फलस्वरूप मराठा शिविर में लंबे समय बाद भोजन समाप्त हो गया और लोग मारे जाने लगे।और पढ़ें

सेनानायक सदाशिव राव भाउ की हार
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सेनानायक सदाशिव राव भाउ की हार

मराठा प्रमुखों ने अपने सेनानायक सदाशिव राव भाउ (Sadashiv Rao Bhau) से आग्रह किया कि उन्हें भूख से मरने के बजाय युद्ध में मरने की इजाजत दी जाए। आखिरकार अहमद शाह दुर्रानी के नेतृत्व वाली सेना को जीत मिली।

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