जज और मजिस्ट्रेट में क्या अंतर होता है, जानें दोनों में किस पोस्ट की पावर होती है ज्यादा

What is the Difference Between Judge and Magistrate: भारत की न्‍यायिक व्‍यवस्‍था में जिला स्‍तर पर जज और मजिस्ट्रेट कार्य करते हैं। कई लोग इन दोनों को एक ही मानते हैं लेकिन असल में जज और मजिस्ट्रेट, दोनों अलग अलग होते हैं। आइये जानते हैं जज और मजिस्ट्रेट में क्या होता है अंतर और दोनों में किसकी पावर ज्यादा होती है।

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मजिस्ट्रेट

मजिस्ट्रेट के लेवल में भी कई स्तर होते हैं। इनमें जो सबसे ऊपर का पद होता है, वो होता है सीजेएम यानी चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट। एक जिले में एक सीजेएम होता है। जिला मजिस्ट्रेट का मुख्य कार्य सामान्य प्रशासन का निरीक्षण करना, भूमि राजस्व वसूलना और जिले में कानून-व्यवस्था को बनाए रखना है।

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मजिस्ट्रेट के काम

मजिस्ट्रेट राजस्व संगठनों का प्रमुख होता है। यह भूमि के पंजीकरण, जोते गाए खेतों के विभाजन ,विवादों के निपटारे, दिवालिया, जागीरों के प्रबंधन, कृषकों को ऋण देने और सूखा राहत के लिए भी जिम्मेदार होता है।

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मजिस्ट्रेट के अधिकार

कोई भी मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट मृत्यु दंड और आजीवन कारावास नहीं दे सकता। ये ऐसा दंड नहीं दे सकते जो 7 साल से ज्यादा की कारावास की अवधि का है।

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कौन होते हैं जज

जिले के जज, उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त किए जाते हैं। ये हत्या, चोरी, डकैती, पिक-पॉकेटिंग और ऐसे अन्य मामलों से संबंधित मामलों की सुनवाई कर सकते हैं। सत्र न्यायाधीश या अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश कानून द्वारा अधिकृत किसी भी सजा को पारित कर सकते हैं।

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कैसे बनते हैं जज

जिला जज की नियुक्ति उच्च न्यायालय द्वारा की जाती है। संविधान के अनुसार भारतीय न्याय व्यवस्था में थ्री लेयर कोर्ट सिस्टम है। जिला जज बनने के लिये आपके पास लॉ में स्नातक की डिग्री होनी आवश्यक है।

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कितना होता है वेतन

जज की 56100 रुपये शुरुआती सैलरी है। 9537 रुपये महंगाई भत्ता 70000 रुपये सकल वेतन सिविल जज का वार्षिक वेतन 65000 रुपये है।

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मुख्य अंतर

मुख्य अंतर उनकी भूमिका, अधिकार क्षेत्र और अधिकार में है। मजिस्ट्रेट छोटे-मोटे मामलों और प्रारंभिक सुनवाई को संभालते हैं, जबकि जज गंभीर मामलों को संभालते हैं।