नालंदा विश्वविद्यालय को किसने जलाया था, तीन महीने तक धधकती रही आग

आज देश के लाखों युवा पढ़ने के लिए ऑक्सफोर्ड या कैम्ब्रिज जाना चाहते हैं। हालांकि, एक समय ऐसा भी था जब दुनियाभर के लोग भारत के नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालयों में पढ़ने आते थे। लेकिन फिर ऐसा क्या हुआ कि दुनिया का सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय नालंदा गुमनामी में डूब गया।

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नालंदा विश्वविद्यालय

आज देश के लाखों युवा पढ़ने के लिए ऑक्सफोर्ड या कैम्ब्रिज जाना चाहते हैं। हालांकि, एक समय ऐसा भी था जब दुनियाभर के लोग भारत के नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालयों में पढ़ने आते थे। लेकिन फिर ऐसा क्या हुआ कि दुनिया का सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय नालंदा गुमनामी में डूब गया।

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कब हुई स्थापना

इतिहासकारों की मानें तो नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 5वीं सदी में गुप्त काल के दौरान की गई थी। माना जाता है कि उस समय यहां तकरीबन 10,000 विद्यार्थी और लगभग 2,000 अध्यापक थे।

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तीन बार हुआ हमला

नालंदा की लाइब्रेरी में करीब 90 लाख किताबों का संग्रह था, जहां छात्र मेडिसिन, तर्कशास्त्र, गणित और बौद्ध सिद्धांतों के बारे में पढ़ते थे। नालंदा विश्वविद्यालय को आक्रमणकारियों ने तीन बार नष्ट किया था, लेकिन केवल दो बार ही इसको पुनर्निर्मित किया गया।

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पहला और दूसरा हमला

नालंदा विश्वविद्यालय पर पहला आक्रमण 5वीं शताब्दी में मिहिरकुल के नेतृत्व में हूणों द्वारा किया गया था। वहीं, इस पर दूसरा आक्रमण 7वीं शताब्दी में हुआ, जिसकी योजना बंगाल के गौड़ सम्राटों ने बनाई थी।

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तीन महीने तक धधकती रही आग

फिर 1199 में तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने इस पर हमला किया और विश्वविद्यालय को नष्ट कर दिया था। कहा जाता है कि विश्वविद्यालय में इतनी किताबें थी की पूरे तीन महीने तक यहां आग धधकती रही।