सफलता की गारंटी हैं संस्कृत के ये श्लोक, रुकी जिंदगी को मिलेगी रॉकेट की रफ्तार

Sanskrit Motivational quotes for Success: सफल जीवन हर कोई चाहता है। हर कोई चाहता है कि वह जो भी काम करे उसे उसमें सफलता मिले और उसका जीवन सुखों के साथ बीते। लेकिन ऐसा हो नहीं पाता है। दरअसल सिर्फ सोचने मात्र से ना तो आपके कोई काम बनेंगे और ना ही किसी काम में सफलता मिलेगी। आपको जीवन में सफलता का स्वाद चखने के लिए कई जतन करने पड़ते हैं।

संस्कृत के श्लोक और सफलता
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संस्कृत के श्लोक और सफलता

हमारे वेदों पुराणों में सफलता के मूलमंत्र बताए गए हैं। संस्कृत के कई मंत्रों में छिपी है सफलता का गारंटी। संस्कृत के कई श्लोक हमें जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं। ना सिर्फ प्रेरणा देते हैं बल्कि कुछ कर गुजरने का जज्बा भी पैदा करते हैं। ये श्लोक हर किसी को एक ना एक बार जरूर पढ़ना चाहिए। आइए डालते हैं ऐसे ही कुछ संस्कृत के श्लोकों और उनके हिंदी भावार्थ पर एक नजर:और पढ़ें

प्रभूतंकार्यमल्पंवातन्नरः कर्तुमिच्छति।सर्वारंभेणतत्कार्यं सिंहादेकंप्रचक्षते॥
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प्रभूतंकार्यमल्पंवातन्नरः कर्तुमिच्छति।सर्वारंभेणतत्कार्यं सिंहादेकंप्रचक्षते॥

अर्थ: जैसे कोई शेर एकाग्रता के साथ झपट्टा मारकर पूरी ताकत से अपना शिकार करता है और उसकी सफलता निश्चित होती है। ठीक उसी प्रकार हमें अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए भी लक्ष्य पर ध्यान केंद्र‍ित कर पूरी मेहनत के साथ प्रयत्न करना चाहिए।

उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा।
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उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा:।

अर्थ: सिर्फ इच्छा करने से काम पूरे नहीं होते, बल्कि व्यक्ति के मेहनत करने से ही उसके काम पूरे होते हैं। जैसे सोये हुए शेर के मुंह में हिरण स्वयं नहीं आता, उसके लिए शेर को परिश्रम करना पड़ता है।

काक चेष्टा बको ध्यानं श्वान निद्रा तथैव च।अल्पहारी गृह त्यागी विद्यार्थी पंच लक्षणं ॥
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काक चेष्टा बको ध्यानं, श्वान निद्रा तथैव च।अल्पहारी गृह त्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणं ॥

अर्थ: एक विद्यार्थी मे यह पांच लक्षण होने चाहिए - कौवे की तरह जानने की चेष्टा करने वाला, बगुले की तरह ध्यान लगाने वाला यानि एकाग्र, कुत्ते की तरह निंद्रा लेने वाला जो हल्की सी आहट से जग जाता है, अल्पाहारी यानि कम खाने वाला और गृह-त्यागी।

योगस्थः कुरु कर्माणि संगं त्यक्त्वा धनंजय ।सिद्धयसिद्धयोः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ॥
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योगस्थः कुरु कर्माणि संगं त्यक्त्वा धनंजय ।सिद्धयसिद्धयोः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ॥

अर्थ: इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे धनंजय! तू आसक्ति को त्यागकर, सफलताओं और विफलताओं में समान भाव लेकर सारे कर्मों को कर। ऐसी समता ही योग कहलाती है।

अलसस्य कुतो विद्या अविद्यस्य कुतो धनम् ।अधनस्य कुतो मित्रममित्रस्य कुतः सुखम् ॥
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अलसस्य कुतो विद्या अविद्यस्य कुतो धनम् ।अधनस्य कुतो मित्रममित्रस्य कुतः सुखम् ॥

अर्थ: आलसी इन्सान को विद्या कहां, विद्याविहीन को धन कहां, धनविहीन को मित्र कहां और मित्रविहीन को सुख कहां! अथार्त जीवन में इंसान को कुछ प्राप्त करना है तो उसे सबसे पहले आलस वाली प्रवृति का त्याग करना होगा।

उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।क्षुरासन्नधारा निशिता दुरत्यद्दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति॥
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उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।क्षुरासन्नधारा निशिता दुरत्यद्दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति॥

अर्थ: उठो, जागो, और अपने लक्ष्य को प्राप्त करो। तेरे रास्ते कठिन हैं, और वे अत्यन्त दुर्गम भी हो सकते हैं, लेकिन विद्वानों का कहना हैं कि कठिन रास्तों पर चलकर ही सफलता प्राप्त होती है।

षड् दोषाः पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छतानिद्रा तद्रा भयं क्रोधः आलस्यं दीर्घसूत्रता
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षड् दोषाः पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता!निद्रा तद्रा भयं क्रोधः आलस्यं दीर्घसूत्रता !!

अर्थ: किसी व्यक्ति के बर्बाद करने के लिए ये 6 लक्षण काफी होते हैं – नींद, गुस्सा, भय, तन्द्रा, आलस्य और काम को टालने की आदत।

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