पत्थर के गोश्त का शौकीन था ये निज़ाम, पकाने में छूट जाते बावर्चियों के पसीने, यूं होता था तैयार
Pathar Ka Gosht: भारत के इतिहास में एक से बढ़कर एक राजा, महाराजा और नवाब हुए। कुछ अपनी भव्यता के लिए जाने गए तो कुछ अपने विचित्र शौक के लिए। कुछ राजाओं की अय्याशियां इतिहास के पन्नों में दर्ज है तो कुछ की वीरता के किस्से। हैदराबाद रियासत के एक निज़ाम ऐसे भी हुए जो पत्थर का गोश्त खाने के लिए मशहूर थे।
निज़ाम और पत्थर का गोश्त
Nizam Mehboob Ali Khan: हैदराबाद रियासत के निज़ाम हमेशा किसी ना किसी कारण से चर्चा में रहा करते थे। 1866 से 1911 तक इस रियासत के निजाम थे मीर महबूब अली खान। मीर महबूब अली खान को शिकार का बड़ा शौक था। उनके इसी शौक ने उन्हें पत्थर के गोश्त का दीवाना बना दिया था। उनकी रसोई से निकली पत्थर के गोश्त की रेसिपी आज भी खूब इस्तेमाल की जाती है।
शिकार के शौकीन थे निजाम
मीर महबूब अली खान अकसर शिकार किये हुए जानवरों का गोश्त खाते भी थे। शिकार पर उनके साथ उनके शाही रसोइयों भी जाते थे। उनके लिए खाने में यूं तो एक से बढ़कर एक पकवान बनते थे लेकिन उनका पसंदीदा था पत्थर का गोश्त।
शिकार पर बनवाते थे गोश्त
इतिहास की किताबों में उपलब्ध जानकारियों के मुताबिक एक बार मीर महबूब अली खान ने एक मेमने का शिकार किया और रसोइयों से उसे पकाने को कहा। लेकिन उनके साथ गए रसोइयों के पास मेमना पकाने के लिए उचित उपकरण नहीं थे।
यूं तैयार हुआ था पत्थर का गोश्त
निज़ाम के शाही रसोइयों ने मेमना का मांस पकाने के लिए एक तरकीब निकाली। उन्होंने पहले तो मेमने के मीट को मैरिनेट किया। फिर ग्रेनाइट का स्लैब लिया और उसे चारकोल पर गर्म कर दिया। उस गर्म स्लैब पर मेमने को धीरे-धीरे पकाया गया। पत्थर पर बनने के कारण उसे नाम दिया गया पत्थर का गोश्त।
पत्थर के गोश्त के बढ़ते गए दीवाने
इस तरह से मजबूरी में ईजाद हुआ था पत्थर का गोश्त। निज़ाम को पत्थर का गोश्त इतना स्वादिष्ट लगा कि उन्होंने इसे अपने भोजन का अहम हिस्सा बना लिया। आगे चलकर यह रेसिपी खूप पॉपुलर हुई और आज भी कई जगह पत्थर का गोश्त चाव से खाया और खिलाया जाता है।
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