भारत का वो गांव जहां हर मर्द है बावर्ची, खाना भी बनाते हैं लजीज जैसे Expert Cook

भारतीय तो शानदार और स्वाद वाले खाने के दीवाने हमेशा से रहे हैं, बता दें कि तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में एक गांव है, जिसका नाम कलायूर (kalayur village Ramanathapuram Tamil Nadu) है, बताते हैं कि इस गांव की महिलाएं खाना बनाने की कला में निपुण हों या न हों पर यहां हर पुरुष खाना बनाने में एक्सपर्ट (every man is an expert cook) है, उनके बनाए खाने इतने लजीज होते हैं जिनकी बहुत ज्यादा चर्चा है, इस गांव में प्रवेश करते ही आपको यहां की फिजा में बेहतरीन खाने और उसमें काम आने वाले मसालों का खूशबू दूर से ही आने लगती है यानी आप बावर्चियों के गांव (village of cooks) में आ चुके हैं।

खाने खिलाने की बात होती है तो लजीज खाने का जिक्र आता है
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खाने खिलाने की बात होती है तो लजीज खाने का जिक्र आता है

भारत में खाने खिलाने की बात होती है तो लजीज खाने का जिक्र आता है, आमतौर पर खाना बनाने की बात आए तो दिमाग में किचेन में काम कर रही महिलाओं की छवि दिमाग में आती है जहां वो अपने परिवार के लिए खाना बनाने में जुटी होती है पर हम यहां बात कर रहे हैं भारत के एक अनोखे गांव की जिसे बावर्चियों का गांव (village of cooks) कहते हैं, यहां यहां हर पुरुष खाना बनाने में एक्सपर्ट है, ये गांव तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले का कलायूर (Kalayur village of cooks) है जहां हर घर में एक पुरूष बावर्ची मिलेगा और वो भी शानदार खाना बनाने वाला, उनकी चर्चा दूरों-दूर तक है यानी कलायूर गांव खाने के मामले में जन्नत की तरह माना जाता है और यहां खाने का स्वाद लोगों को बहुत पसंद आता है, यहां के मेल बावर्चियों की खासी चर्चाएं होती हैं। जैसे ही कोई इस गांव की सीमा में आता है तो उसे हवा में ही खाने की खूशबू आने लगती है।और पढ़ें

बावर्चियों वाला गांव कलायूर अपने नाम को सार्थक कर रहा है
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बावर्चियों वाला गांव कलायूर अपने नाम को सार्थक कर रहा है

कलई का अर्थ है 'कला' और युर का अर्थ है 'गांव' यानी ये कहा जाए कि अपने नाम के अनुरूप तमिलनाडु के इस बावर्चियों वाला गांव कलायूर अपने नाम को सार्थक कर रहा है, क्योंकि यहां हर एक पुरुष ने पाक कला में महारत हासिल कर रखी है।

इस गांव के बारे में जो भी सुनता है वो चौंक जाता है
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इस गांव के बारे में जो भी सुनता है वो चौंक जाता है

कलायूर नामक इस गांव के बारे में जो भी सुनता है वो चौंक जाता है क्या सही में इस गांव में करीब-करीब हर मर्द बावर्ची है, वहीं बता दें कि वो इतना लजीज खाना बनाते हैं कि जो खा ले उसे आनंद ही आ जाता है।

कैसे बना ये रसोइयों का गांव
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कैसे बना ये रसोइयों का गांव?

रिपोर्टों के मुताबिक ये सिलसिला करीब 500 साल पहले शुरु हुआ तब मछली पकड़ने से ज़्यादा मुनाफा नहीं होता था और पुरुषों के पास कोई दूसरी कोई योग्यता नहीं थी तो पुरुषों ने पाक कला को ही अपनी पहचान बना लिया

गांव में देश के कई सारे सर्वश्रेष्ठ कुक मिलते हैं
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गांव में देश के कई सारे सर्वश्रेष्ठ कुक मिलते हैं

रिपोर्ट के अनुसार इस गांव में देश के कई सारे सर्वश्रेष्ठ कुक मिलते हैं और इस गांव के रसोइये देशभर के नामी-गिरामी होटल और रेस्टोरेंट में बतौर शेफ काम कर रहे हैं और उनके बनाए खाने की काफी तारीफ होती है।

आसान नहीं है इसमें महारत हासिल करना होती है कड़ी ट्रेनिंग
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आसान नहीं है इसमें महारत हासिल करना होती है कड़ी ट्रेनिंग

कलायूर में बावर्ची बनने की ट्रेनिंग बचपन से शुरू कर दी जाती है, जैसे-जैसे वो इस कला को सीखते हैं, वैसे-वैसे उन्हें नई तरह की डिशेज बनाना सिखाया जाता है, बच्चे बुज़ुर्गों की निगरानी में ट्रेनिंग लेते हैं, कई सालों तक ये सिलसिला चलता है फिर वो अपनी पूरी टीम बना लेते हैं।

कलायूर गांव के रसोइयों की बेहद ज्यादा डिमांड
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कलायूर गांव के रसोइयों की बेहद ज्यादा डिमांड

कलायूर गांव के रसोइए शादी, जन्मदिन और अन्य जलसों आदि कार्यक्रमों में खाना बनाते हैं बताते हैं कि जो भी इनके हाथ के बनाए खाने को खा लेता है वो मुरीद हो जाता है, दावा तो यहां तक है कि ये कुक महज 3 घंटे में 1000 लोगों का भी खाना बना सकते हैं, वहीं तिरुपति मंदिर, मदुरै के मंदिर में कलायूर के ही शेफ़ प्रसाद और भोग बनाते हैं ऐसा कहा जाता है।और पढ़ें

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