क्या था 1985 का शाह बानो मामला? हिल गई थी राजीव गांधी सरकार
सीआरपीसी की धारा-125 के तहत मुस्लिम महिला के भी अपने पति से गुजारा भत्ता की मांग की अनुमति संबंधी सुप्रीम कोर्ट के बुधवार के फैसले से 1985 के शाह बानो बेगम केस की यादें ताजा हो गई है। अदालत के नए फैसले ने 39 साल पुराने ऐतिहासिक फैसले की यादें ताजा कर दी हैं। आइए समझते हैं क्या था ये केस और कैसे इसने भारत की राजनीति को भी प्रभावित किया।
मुस्लिम महिलाएं भी गुजारा भत्ता पाने की हकदार
सीआरपीसी की धारा 125 के धर्मनिरपेक्ष प्रावधान के तहत मुस्लिम महिलाओं को भरण-पोषण का भत्ता देने का विवादास्पद मुद्दा 1985 में राजनीतिक विमर्श के केंद्र में आया था, जब मोहम्मद अहमद खान बनाम शाह बानो बेगम मामले में संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से यह फैसला सुनाया था कि मुस्लिम महिलाएं भी गुजारा भत्ता पाने की हकदार हैं।और पढ़ें
शाह बानो मामले से देश में मच गया था हंगामा
इस फैसले की वजह से मुस्लिम पति द्वारा अपनी तलाकशुदा पत्नी को विशेष रूप से इद्दत अवधि (तीन महीने) से परे, भरण-पोषण की राशि देने के वास्तविक दायित्व को लेकर विवाद पैदा हो गया था। इस फैसले से पूरे देश में हंगामा मच गया था।
उल्टा पड़ा राजीव का फैसला
राजीव गांधी के नेतृत्व वाली तत्कालीन केंद्र सरकार ने संसद में फैसले का बचाव करने के लिए तत्कालीन केंद्रीय मंत्री आरिफ मोहम्मद खान को मैदान में उतारा था। हालांकि, यह रणनीति उल्टी पड़ गई क्योंकि मुस्लिम धर्मगुरुओं और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने फैसले का कड़ा विरोध किया।
आरिफ मो. खान हुए नाराज
राजीव गांधी सरकार ने इसके बाद अपने रुख में बदलाव करते हुए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध करने के लिए एक और मंत्री जेड ए अंसारी को मैदान में उतारा। इससे आरिफ मो. खान नाराज हो गए और उन्होंने सरकार छोड़ दी। खान इस समय केरल के राज्यपाल हैं।
राजीव गांधी सरकार की कोशिशें
राजीव गांधी के नेतृत्व वाली तत्कालीन केंद्र सरकार स्थिति को स्पष्ट करने के प्रयास के तहत मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 लाई, जिसमें तलाक के समय ऐसी महिला के अधिकारों को स्पष्ट करने का प्रयास किया गया।
खूब मचा था हंगामा
इसे लेकर भारत में खूब सियासी हंगामा मचा था। तब भारतीय जनता पार्टी ने इसे कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टिकरण नीति करार दिया था। तब संसद ने सुप्रीम कोर्ट का फैसला ही पलट दिया था।
महिलाओं के लिए समान अधिकारों की नींव रखी
शाह बानो मामले में ऐतिहासिक फैसले में पर्सनल लॉ की व्याख्या की गई और लैंगिक समानता के मुद्दे के समाधान के लिए समान नागरिक संहिता (यूसीसी) की आवश्यकता का भी जिक्र किया गया। इसने विवाह और तलाक के मामलों में मुस्लिम महिलाओं के लिए समान अधिकारों की नींव रखी।
जिला अदालत से शुरू हुई लड़ाई सुप्रीम कोर्ट में खत्म हुई
बानो ने शुरुआत में अपने तलाकशुदा पति से भरण-पोषण राशि पाने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था। बानो के पति ने उन्हें तलाक दे दिया था। जिला अदालत में शुरू हुई यह कानूनी लड़ाई 1985 में शीर्ष अदालत की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के ऐतिहासिक फैसले के साथ समाप्त हुई।
तलाकशुदा पत्नी को भरण-पोषण राशि मांगने का अधिकार
हालिया फैसले में शीर्ष अदालत ने कहा कि शाह बानो मामले में दिए गए फैसले में यह भी कहा गया था कि यह मानते हुए भी कि तलाकशुदा पत्नी द्वारा मांगी जा रही भरण-पोषण राशि के संबंध में धर्मनिरपेक्ष और पर्सनल लॉ के प्रावधानों के बीच कोई टकराव है, तो भी सीआरपीसी की धारा 125 का प्रभाव सर्वोपरि होगा।
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