हरियाली को समर्पित उत्तराखंड का हरेला त्योहार क्यों है खास, जानें
उत्तराखंड के पहाड़ों में और पहाड़ी लोग जहां कहीं भी रहते हैं, वहां आज हरेला पर्व मना रहे हैं। आज यानी 16 जुलाई को हरेला के साथ ही उत्तराखंड में सावन का महीना शुरू हो गया है। हालांकि, हिंदू कैलेंडर के अनुसार सावन का महीना गुरु पूर्णिमा से शुरू होगा, लेकिन उत्तराखंड में यह पहले ही शुरू हो गया है। इस पर्व की उत्तराखंड में बड़ी मान्यता है। हरेला उत्तराखंड का लोकपर्व है, जो हरियाली को समर्पित है। जलिए इसके बारे में और जानते हैं।
उत्तराखंड में सावन पहले क्यों
आचार्यों के अनुसार उत्तराखंड में सूर्य के अनुसार महीने का चुनाव होता है और आज 16 जुलाई को सूर्य मिथुन राशि से निकलकर कर्क राशि में प्रवेश कर रहे हैं। इसलिए आज ही उत्तराखंड में सावन का महीना शुरू हो गया। हालांकि, हिंदू कैलेंडर के अनुसार सावन का महीना गुरु पूर्णिमा से शुरू होकर रक्षा बंधन तक चलता है। लेकिन उत्तराखंड में के पहाड़ों में सावन का आमद पहले ही हो जाती है।और पढ़ें
क्या है हरेला
सावन के महीने में आसमान से लगातार बारिश होती रहती है। इससे पहाड़ों पर हरियाली छा जाती है और खेतों में फल और सब्जियां प्रचुर मात्रा में होने लगती हैं। इस दौरान ऐसा लगता है जैसे प्रकृति श्रंगार करके तैयार हो गई है। हरियाली के इसी उत्सव को मनाने के लिए हरेला त्योहार मनाया जाता है।
साल में तीन बार हरेला
हरेला उत्तराखंड का लोकपर्व है और यह यहां के परिवेश व खेती से जुड़ा त्योहार है। साल में तीन बार चैत्र, श्रावण और आश्विन महीनों में हरेला का पर्व मनाया जाता है। हालांकि, श्रावण यानी सावन के महीने में आने वाले हरेला का उत्तराखंड के लोक जीवन में अधिक महत्व है।
सावन का हरेला खास क्यों
उत्तराखंड़ के पहाड़ों में शैव परंपरा के उपासक ज्यादा हैं और सावन का महीना शिव शंकर को भी बहुत प्यारा है। हरेला में जिन छोटे-छोटे पौधों की पूजा होती है, उन्हें 9 दिन पहले आषाढ़ में बोया जाता है और 10 दिन बाद सावन के पहले दिन काटकर इनकी पूजा होती है।
पौध रोपण की शुरुआत
उत्तराखंड का यह लोकपर्व सिर्फ सावन के आगमन का सूचक नहीं है, बल्कि इसी दिन से पौधरोपण अभियान भी शुरू होता है। सावन के महीने में बोए गए बीज को पानी देने की जरूरत नहीं होती है, प्रकृति उसे अपने आप अपने श्रंगार के रूप में सजा लेती है।
ऐसे मनाते हैं हरेला
घर के अंदर मंदिर या गांव के मंदिर में सतनाजा यानी सात अनाजों (गेहूं, जौ, मक्का, गहत (कुल्थी), सरसों, उड़द और भट्ट (पहाड़ी दाल) को एक टोकरी में बोया जाता है। टोकरी को सूर्य की रोशनी से दूर रखा जाता है। 9वें दिन एक स्थानीय जंगली पौधे पाती की टहनी से इसकी गुड़ाई की जाती है और 10वें दिन इसे काटकर, पूजा करके देवताओं को चढ़ाया जाता है। घर की बुजुर्ग महिलाएं सभी को हरेला लगाती हैं। पैर से शुरू करके, घुटने, कंधे पर छुआकर अंत में इसे सिर पर रखा जाता है।और पढ़ें
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