पहली बार अमेरिका का B1 Bomber भारतीय वायुसेना के साथ, अकेला सब पर भारी

B1 Bombers: पहली बार अमेरिकी वायु सेना के दो बी1 भारी बमवर्षक जेट भारत-अमेरिका मेगा हवाई अभ्यास का हिस्सा ले रहे हैं। तेजी से बदल रहे क्षेत्रीय सुरक्षा परिदृश्य और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती सैन्य ताकत के बीच सोमवार को हवाई अभ्यास शुरू हुआ। कलाईकुंडा से शुरू हुए अभ्यास 'कोप इंडिया' में अमेरिकी प्लेटफॉर्म में F-15E फाइटर जेट्स, C-130 और C-17 ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट का बेड़ा भी शामिल होगा। इस हवाई अभ्यास का सबसे बड़ा आकर्षण होगा बी1 बॉम्बर जो अपनी ताकत से किसी भी दुश्मन को दहलाने की कूवत रखता है। अमेरिकी प्रशांत वायु सेना के कमांडर जनरल केनेथ एस विल्सबैक ने बताया कि बी1 बमवर्षक और एफ-15ई लड़ाकू इस सप्ताह के अंत में अभ्यास में शामिल होंगे। दो बी1 बमवर्षक फरवरी में बेंगलुरु में एयरो इंडिया में अमेरिकी प्रदर्शनी में शामिल हुए थे लेकिन यह पहली बार होगा जब विमान भारत में किसी हवाई अभ्यास का हिस्सा होगा। "द बोन" नाम से चर्चित बी 1 बॉम्बर एक लंबी दूरी की, मल्टी मिशन, पारंपरिक बमवर्षक है जो अमेरिका में अपने ठिकानों के साथ-साथ दुनिया भर में मिशन को पूरा करने में सक्षम है। क्या-क्या खासियतें हैं इसकी बता रहे हैं।

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अधिकतम गति

B1 बॉम्बर एक अहम विमान है जो अधिकतम 2.2 मैक की गति से उड़ान भर सकता है। यह दुनिया के सबसे तेज बमवर्षक विमानों में से एक है और यही गति इसे दुनिया के किसी भी कोने में तेजी से पहुंचने में सक्षम बनाती है।

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रेंज

17,000 किलोग्राम तक के वजन के साथ B1 बॉम्बर जेट बिना ईंधन भरे 7,400 किमी तक उड़ सकता है। यह लंबी दूरी की क्षमता रणनीतिक बमबारी मिशनों सहित लंबी दूरी के मिशनों के लिए एक आदर्श फाइटर विमान है।

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पेलोड

B1 बॉम्बर जेट में काफी पेलोड क्षमता होती है, जो इसे पारंपरिक और परमाणु बमों सहित विभिन्न प्रकार के हथियारों को ले जाने में सक्षम बनाती है। यह 24 परमाणु बम तक ले जा सकता है और उन्हें सटीक रूप से अपने लक्ष्य तक पहुंचा सकता है।

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ऊंचाई पर उड़ान

यह 40,000 फीट की ऊंचाई पर 1,300 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से उड़कर दुनिया के किसी भी कोने में पहुंच सकता है। यह ऊंचाई विमान को दुश्मन के राडार सिस्टम द्वारा इसका पता लगाने से बचने में मदद देता है, जिससे यह स्टील्थ मिशन के लिए एक उत्कृष्ट विमान बन जाता है।

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चीन को कड़ा संदेश

विशेषज्ञों का मानना ​​है कि इस अभ्यास से चीन को कड़ा संदेश जाएगा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय दक्षिण चीन सागर में उसकी आक्रामकता और उसके खिलाफ अभियान में शामिल होने के खिलाफ एकजुट है।