कभी भारत में हुआ करता था तीन टाइम जोन, फिर सरदार पटेल की हुई एंट्री और मिल गया मानक समय

सरदार पटेल ने सिर्फ देश को ही एक नहीं किया था, बल्कि भारत को अपना मानक समय भी दिलाने का श्रेय भी उन्हीं को जाता है। आजादी से पहले तक भारत में तीन टाइम जोन थे, कलकत्ता, बॉम्बे और मद्रास। मतलब देश एक और टाइम जोन तीन। देश को जब आजादी मिली तो एक टाइम जोन की जरूरत हुई। कोलकत्ता और बॉम्बे के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी थी। आजादी के कुछ सालों के अंदर यह समस्या भी खत्म हो गई और भारत को अपना एक मानक समय यानि कि टाइम जोन मिल गया।

बॉम्बे टाइम जोन
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बॉम्बे टाइम जोन

अंग्रेज़ों ने 1884 में इस टाइम ज़ोन को तब तय किया जब अमेरिका में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर टाइम ज़ोन तय किए जाने की बैठक हुई। ग्रीनविच मीनटाइम यानी जीएमटी से चार घंटे 51 मिनट आगे का टाइम ज़ोन था बॉम्बे टाइम। 1906 में जब आईएसटी का प्रस्ताव ब्रिटिश राज में आया, तब बॉम्बे टाइम की व्यवस्था बचाने के लिए फिरोज़शाह मेहता ने पुरज़ोर वकालत की और बॉम्बे टाइम बच गया!और पढ़ें

कलकत्ता टाइम जोन
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कलकत्ता टाइम जोन

दूसरा था कलकत्ता टाइम ज़ोन। साल 1884 वाली बैठक में ही भारत में दूसरा टाइम जोन था कलकत्ता टाइम। जीएमटी से 5 घंटे 30 मिनट 21 सेकंड आगे के टाइम ज़ोन को कलकत्ता टाइम माना गया। 1906 में आईएसटी प्रस्ताव नाकाम रहा, तो कलकत्ता टाइम भी चलता रहा।

आजादी के समय भारत का टाइम जोन
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आजादी के समय भारत का टाइम जोन

आजादी के 16 दिन बाद यानि 1 सितंबर 1947 को देश का समय एक हो गया। उत्तर से दक्षिण, पूर्व से पश्चिम हम समय के एक सूत्र में बंध गए। भारत को अपना मानक समय मिल गया। विविधता पूर्ण देश की भारतीय मानक समय की परिकल्पना भी अद्भुत थी। इसका क्रेडिट भी काफी हद तक भारत के लौह पुरुष यानि वल्लभ भाई पटेल को जाता है।

हुई थी जमकर बहस
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हुई थी जमकर बहस

इंडियन स्टैंडर्ड टाइम को दुनिया के कॉर्डिनेटेड समय (यानी यूटीसी) से साढ़े पांच घंटे आगे वाला टाइम ज़ोन माना गया। इससे पहले समस्या तो थी और वो भी गंभीर! आखिर विविधता पूर्ण देश को कैसे एक समय में बांध दिया जाए। समय और भारतीय स्टैंडर्ड टाइम को लेकर बहस हुईं क्योंकि बॉम्बे और कलकत्ता (कोलकाता) का अपना टाइम जोन था।और पढ़ें

सरदार पटेल की भूमिका
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सरदार पटेल की भूमिका

जुलाई 1947 में, स्वतंत्रता से ठीक पहले, सरदार वल्लभभाई पटेल से बंगाल के समय को समाप्त करने का अनुरोध किया गया। कहा गया- जब पूरे भारत में, विशेष रूप से बंगाल में, एक बहुत ही महत्वपूर्ण और आवश्यक मामले को संबंधित अधिकारियों द्वारा अनदेखा किया जा रहा है, यानि बंगाल का समय जो भारतीय मानक समय से एक घंटा आगे है और केवल बंगाल में ही इसका पालन किया जाता है जो नागरिकों के हितों के लिए हानिकारक है... हम बंगाली समय के एक रूप यानी भारतीय मानक समय का पालन करना चाहते हैं जिसका पालन अन्य सभी प्रांतों में किया जाता है।" बंबई के संबंध में भी ऐसा ही अनुरोध किया गया था।और पढ़ें

जब मिला एक मानक समय
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जब मिला एक मानक समय

गृह विभाग ने सुझाव दिया कि इस मामले पर संबंधित राज्य सरकार विचार करें। अंततः दोनों शहर सहमत हो गए, कलकत्ता ने लगभग तुरंत और बॉम्बे ने ढाई साल बाद इसे स्वीकार कर लिया। कलकत्ता और पश्चिम बंगाल प्रांत ने 31 अगस्त/1 सितंबर 1947 की मध्यरात्रि को IST को अपना लिया।

कहां है केंद्रीय वेधशाला
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कहां है केंद्रीय वेधशाला

केंद्रीय वेधशाला को मद्रास से इलाहाबाद जिले के शंकरगढ़ किले में स्थानांतरित कर दिया गया, ताकि यह UTC+05:30 के जितना संभव हो सके उतना करीब हो सके। डेलाइट सेविंग टाइम (DST) का इस्तेमाल 1962 के चीन-भारत युद्ध और 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्धों के दौरान कुछ समय के लिए किया गया था।

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