न मंडी, न बाजार, फिर भी कैसे नाम पड़ा मंडी हाउस?

देश में कुछ ऐसी जगहें हैं, जो अपने नाम से बिल्कुल भी मेल नहीं खाती है। आपने अक्सर देखा होगा कि किसी काम की वजह से उस जगह की पहचान होने लगती है, लेकिन कई ऐसे स्थान हैं, जिसका जो नाम होता है, उससे उसकी वास्तविकता नहीं जुड़ी होती है, बल्कि इसके पीछे की कहानी कुछ और होती है। ऐसे ही स्थानों में शामिल है दिल्ली में स्थित मंडी हाउस। मंडी हाउस की कहानी भी कुछ ऐसी ही है, जहां न तो कोई मंडी है, न ही कोई बाजार लगता है, फिर भी उसका नाम मंडी हाउस क्यों पड़ा।

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मंडी हाउस

दिल्ली में स्थित मंडी हाउस से जब भी आप गुजरते होंगे तो आपने मन में एक सवाल तो जरूर आता होगा कि आखिर इस जगह का नाम मंडी हाउस क्यों पड़ा। क्या यहां ऐसा कोई मंडी है, जिस वजह से इसका नाम मंडी हाउस पड़ा, तो चलिए इसका जवाब देते हैं।

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इंटरचेंजिंग स्टेशन है मंडी हाउस

मंडी हाउस आज के टाइम पर दिल्ली का काफी मशहूर जगह बन चुका है। मंडी हाउस में मेट्रो स्टेशन है, जहां दो-दो मेट्रो लाइन उपलब्ध हैं। मंडी हाउस में ब्लू लाइन और वायलेट लाइन मौजूद हैं। यह काफी भीड़भाड़ वाले इंटरचेंजिंग स्टेशन बन चुका है।

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रंगमंच कलाकारों की दुनिया

मंडी हाउस में न तो कोई बाजार लगता है और न ही यहां कोई ऐसा मार्केट उपलब्ध है, जो इस जगह के नाम को डेडिकेट करता हो। मंडी हाउस रंगमंच कलाकारों का पसंदीदा स्थान हैं। यहां दुनियाभर में चर्चित राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) है, जो रंगमंच कलाकारों के लिए जाना जाता है। यहां हमेशा कोई न कोई शो होता रहता है।

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कैसे नाम पड़ा मंडी हाउस?

दरअसल, इस जगह का नाम मंडी हाउस रखने का इतिहास काफी पुराना है। इसका संबंध हिमाचल प्रदेश के मंडी से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि पहले यह स्थान मंडी के 18वें राजा जोगिंदर सेन बहादुर का पसंदीदा हुआ करता था। वह यहां समय बिताने के लिए आया करते थे, जिस वजह से इसका नाम मंडी हाउस पड़ गया और आज भी इसी नाम से जाना जाता है।

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आज कैसा दिखता है मंडी हाउस?

वर्तमान में मंडी हाउस में राजशाही जैसा कुछ नहीं है। मंडी हाउस पूरी तरह से बदल चुका है। जो मंडी हाउस कभी राजा का समय बिताने के लिए जाना जाता था, वह आज रंगमंच कलाकारों की दुनिया बन चुकी है। साथ ही यहां खाने पीने के लिए कई सारे स्टॉल्स उपलब्ध हैं। यहां पर भारत सरकार के कई दफ्तर और विभिन्न देशों के दूतावास मौजूद हैं।