1906 से अब तक कितना बदला तिरंगा, कौन थे डिजाइनर; तस्वीरों में देखें बदलता रूप
भारत का राष्ट्रीय ध्वज का स्वरूप 1906 से अब तक कई बार बदल चुका है। इसको अलग-अलग लोगों ने डिजाइन किया। लेकिन क्या आप वर्तमान तिरंगे के डिजाइन के बारे में जानते हैं और इसके तीन रंगों का क्या मतलब है। आइए तिरंगे के रोचक तथ्यों और इसके इतिहास के बारे में जानते हैं।

भारत का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा
भारत का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा हमारे देश के लिए गौरव का प्रतीक है। तिरंगे की शान के लिए बहुत से वीरों ने अपने जान की आहुति दी है। इस तिरंगे का इतिहास भी बहुत गौरवपूर्ण रहा है। साल 1906 से लेकर अब तक हमारे देश के राष्ट्रीय ध्वज का स्वरूप 6 बार बदल चुका है। भारत 15 अगस्त 2024 को अपना 78वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। इस दिन लोग अपने घरों, स्कूलों, ऑफिस समेत कई स्थानों पर तिरंगे को फहराएंगे। इस मौके पर आइए जानते हैं कि तिरंगे का सफर 1906 से अब तक कैसा रहा है?

तिरंगे के तीनों रंगों का मतलब
भारत का राष्ट्रीय ध्वज तीन रंगो से मिलकर बना है। इसमें सबसे केसरिया पट्टी है जो भारत की ताकत और साहस का प्रतीक है। बीच में सफेद रंग की पट्टी है, जो शांति और सच्चाई का प्रतीक है और सबसे नीचे हरे रंग की पट्टी ऊपजाऊ भूमि को प्रदर्शित करती है, यह विकास और समृद्धि का प्रतीक है। सफेद पट्टी के बीच में अशोक च्कर बना है, जिसमें 24 तीलियां है। यह अशोक चक्र भारत की गतिशीलता और विकास के चक्र का प्रतीक है।

तिरंगे को किसने किया डिजाइन
भारत के वर्तमान ध्वज को आंध्र प्रदेश के पिंगली वेंकैया ने बनाया था। यह उनके द्वारा साल 1921 में बनाए गए ध्वज की डिजाइन पर आधारित है। पिंगली वेंकैया भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे। इसके अलावा वे व्याख्याता, शिक्षाविद, कृषक, लेखक, भूविज्ञानी और बहुभाषी भी थे।

साल 1906 में पहला राष्ट्रीय ध्वज
पहला राष्ट्रीय ध्वज साल 1906 में आस्तित्व में आया। जिसे स्वामी विवेकानंद की शिष्या भगिनी निवेदिता ने तैयार किया था। इस ध्वज में तीन रंगों हरे, पीले और लाल रंग की आड़ी पट्टियां थी। इसमें बीच में वंदे मातरम् लिखा हुआ था और नीचे सूरज और चांद भी बने हुए थे। 7 अगस्त 1906 को देश के पहले गैर आधिकारिक ध्वज को कोलकाता के पारसी बागान चौक में कांग्रेस के अधिवेशन में फहराया गया था। इसे बंगाल विभाग के विरोध में फहराया गया था।

साल 1907 में दूसरा ध्वज
मैडम भीकाजी कामा और उनके साथ निर्वासित किए गए कुछ क्रांतिकारियों ने साल 1907 में पेरिस में भारत का दूसरा ध्वज फहराया। दूसरे राष्ट्रीय ध्वज में बहुत थोड़े बदलाव किए गए थे, बाकी सब पहले ध्वज जैसा ही रहा। इसमें सबसे ऊपर केसरिया पर सप्तऋषि के प्रतीक सात तारे बने थे। मध्य में पीले रंग की पट्टी पर वंदे मातरम् लिखा हुआ था। सबसे नीचे हरे रंग की पट्टी पर सूरज और चांद बने थे।

साल 1917 में तीसरा ध्वज
भारत का तीसरा ध्वज होम रूल आंदोलन के दौरान फहराया गया था। इसे एनी बेसेंट और बाल गंगाधर तिलक ने फहराया था। इस ध्वज में हरे और लाल रंगे की 9 क्षैतिज पट्टिया थीं, जिसमें से 5 लाल और 4 हरी पट्टी थी। इन पट्टियों पर सात तारे बने थे, जो सप्तऋषि के स्वरूप को दर्शाते थे। ध्वज के ऊपर दायीं ओर एक कोने में अर्धचंद्र और तारे भी बने थे,

साल 1921 में चौथा ध्वज
इस ध्वज को बेजवाड़ा में साल 1921 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सत्र के दौरान गैर आधिकारिक रूप से अपनाया गया था। इस सत्र के दौरान पिंगली वेंकैया ने अपने ध्वज का डिजाइन महात्मा गांधी को दिखाया था। इस ध्वज में तीन रंग की क्षैतिज पट्टियां थी। सबसे ऊपर सफेद, बीच में हरा और सबसे नीचे लाल रंग था। ध्वज के बीच में एक चलता हुआ चरखा भी था, जो देश की प्रगति का प्रतीक था।

साल 1931 में पारित हुआ प्रस्ताव
साल 1931 में पिंगली वेंकैया द्वारा बनाए गए ध्वज में थोड़ा बदलाव किया गया। यह साल भारतीय राष्ट्रीय ध्वज की विकास यात्रा का यादगार साल था। साल 1931 में ही तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने का प्रस्ताव पारित हुआ। यह ध्वज वर्तमान स्वरूप जैसा ही थी। इसमें ऊपर केसरिया, बीच में सफेद और नीचे हरे रंग की पट्टी थी। वर्तमान ध्वज से इसमें अंतर ये था कि धर्म चक्र के स्थान पर सफेद पट्टी में चलता हुआ चरखा बना था।

साल 1947 में वर्तमान तिरंगे का स्वरूप
देश की आजादी के बाद भारत के राष्ट्रीय ध्वज के चुनाव के लिए राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई। जिसने मौजूदा ध्वज में चरखे को धर्म चक्र से बदल दिया। संविधान सभा ने 22 जुलाई 1947 में इस ध्वज को स्वतंत्र भारत का राष्ट्रीय ध्वज माना। यह तिरंगा वर्तमान में हमारा राष्ट्रीय ध्वज है।

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