150 साल उम्र, गुजरेगी एक साथ 4 ट्रेनें, भूल जाइएगा बस-कार की गिनती, ऐसा होगा देश का सबसे चौड़ा रेल-रोड ब्रिज
जरा सोचिए एक ऐसा ब्रिज, जिसके नीचे से एक साथ चार ट्रेनें गुजर रही हो, ऊपर से एक साथ दर्जनों बस और कारें गुजर रही हों, रफ्तार 100 से ऊपर हो; ऐसा ब्रिज जब किसी शहर में बनेगा तो उस शहर के विकास में कितनी बड़ी बात होगी। वाराणसी में एक ऐसे ही ब्रिज बनने जा रहा है। वाराणसी में बनने वाला यह ब्रिज देश का सबसे चौड़ा रेल-रोड ब्रिज होगा, जिसके एक मंजिल पर ट्रेन तो दूसरी मंजिल पर कार और बसें चलेंगी। मतलब नीचे रेलमार्ग और ऊपर सड़क मार्ग होगा
वाराणसी में बनेगा 150 साल की उम्र वाला रेल रोड ब्रिज
वाराणसी में जो रेल-रोड ब्रिज बनेगा, उसकी उम्र 150 साल होगी। यानि 150 साल तक यह वाराणसी को अपनी सेवा देते रहेगा। प्रस्तावित रेल-सह-सड़क पुल मल्टी-मॉडल कनेक्टिविटी के लिए पीएम-गतिशक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान का हिस्सा है। एकीकृत योजना के माध्यम से, इस परियोजना का उद्देश्य लोगों, वस्तुओं और सेवाओं के लिए निर्बाध आवागमन प्रदान करना है। इस ब्रिज पर ट्रेन 90 से 112 किमी की रफ्तार से दौड़ेगी। जिससे रेलवे का काफी फायदा होगा।
कितना बड़ा होगा वाराणसी का सिग्नेचर ब्रिज
वाराणसी में बनने वाले नए सड़क पुल में चार रेलवे लाइन और छह लेन का राजमार्ग होगा। नए पुल को 150 साल की उम्र के हिसाब से डिजाइन किया जाएगा और इसकी लंबाई एक किलोमीटर से ज्यादा होगी। पुल की संरचना की जटिलता को देखते हुए इसे पूरा होने में करीब चार साल लगेंगे।
बाढ़ रोधी डिजाइन से लैस होगा वाराणसी का सिग्नेचर ब्रिज
वाराणसी के सिग्नेचर ब्रिज का डिजाइन यह भी सुनिश्चित करेगा कि पुल और उससे जुड़ी रेल लाइनें बाढ़-रोधी हों, साथ ही नदी के दोनों किनारों पर 15 किलोमीटर का अतिरिक्त एलिवेटेड ट्रैक भी होगा। इसका उद्देश्य बाढ़ के कारण होने वाली किसी भी यातायात बाधा को रोकना है, जो इस क्षेत्र में बार-बार होने वाली समस्या है। बेहतर रेल नेटवर्क मल्टी-ट्रैकिंग क्षमता को भी बढ़ाएगा, जिससे परिचालन आसान होगा और भीड़भाड़ कम होगी।
वाराणसी सिग्नेचर ब्रिज पर कितना होगा खर्च
वाराणसी में बनने वाले देश के सबसे चौड़े रेल-रोड ब्रिज पर 2,642 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत आएगी। यह परियोजना उत्तर प्रदेश में वाराणसी और चंदौली जिलों से होकर गुजरती है। उत्तर प्रदेश के दो जिलों से जुड़ी इस परियोजना से भारतीय रेलवे के मौजूदा नेटवर्क में लगभग 30 किलोमीटर की बढ़ोतरी होगी।
यूपी के साथ-साथ बिहार और बंगाल को भी फायदा
वाराणसी में इस रेल रोड ब्रिज से उत्तर प्रदेश को तो फायदा होगा, साथ ही बिहार-बंगाल समेत कई राज्यों को बंपर फायदा होगा। इस ब्रिज के कारण बिहार, झारखंड, बंगाल समेत पूरे नॉर्थ ईस्ट से कनेक्टिविटी में फायदा होगा। वाराणसी में आर्थिक और बुनियादी ढांचे में तो वृद्धि होगी ही, साथ ही बिहार के यूपी से सटे जिलों को भी फायदा होगा। ब्रिज से पर्यावरण को भी काफी फायदा होगा। डीजल की खपत कम जाएगी, जिससे प्रदूषण कम पैदा होगा।
क्यों पड़ी सिग्नेचर ब्रिज की जरूरत
वाराणसी-डीडीयू जंक्शन मार्ग भारतीय रेलवे के सबसे व्यस्त मार्गों में से एक है, जो यात्रियों और माल ढुलाई दोनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिसमें कोयला, सीमेंट और खाद्यान्न जैसी आवश्यक वस्तुएं शामिल हैं। इस क्षेत्र में औद्योगिक और पर्यटन की मांग में वृद्धि देखी गई है, जिससे विस्तारित बुनियादी ढांचे की आवश्यकता और बढ़ गई है। नया पुल भारी भीड़भाड़ को कम करेगा, इस खंड पर अनुमानित 27.83 MTPA (मिलियन टन प्रति वर्ष) माल यातायात का अनुमान है। आज की तारीख में जो सड़क सह रेल पुल है वो काफी पुराना हो चुका है और उसकी भार क्षमता भी कम है।
ऐतिहासिक है वाराणसी का पुराना मालवीय ब्रिज
वाराणसी में आज की तारीख में भी एक रेल-रोड ब्रिज है, लेकिन वो लगभग 137 साल पुराना है। मालवीय ब्रिज को आजादी से लपहले डफरिन ब्रिज के नाम से जाना जाता था और इसका निर्माण 1887 में हुआ था। आजादी के बाद यह मालवीय ब्रिज हो गया। स्थानीय लोग इसे राजघाट पुल के नाम से भी जानते हैं, क्योंकि यह वाराणसी में राजघाट के पास स्थित है।
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