Kargil Vijay Diwas: कारगिल वॉर में 15 गोलियां लगने के बाद भी लड़ता रहा देश का ये जवान, जीवित रहते ही मिला सेना का सर्वोच्च सम्मान

हर साल 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना के खिलाफ एक लंबी और कठिन लड़ाई लड़ी, जिसमें कई अधिकारियों और जवानों ने शहादत दी।

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​​कारगिल विजय दिवस​

कारगिल विजय दिवस हर साल 26 जुलाई को कारगिल युद्ध में लड़ने वाले जवानों के सम्मान में मनाया जाता है। इस बार देश 26 जुलाई के दिन कारगिल विजय दिवस की 25वीं वर्षगांठ मना रहा है। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे जवान के बारे में बताएंगे, जिसने कारगिल वॉर के दौरान अदम्य साहस और वीरता का परिचय दिया था। जिसने कारगिल युद्ध के दौरान 15 गोलियां लगने के बावजूद देश की सुरक्षा के लिए हार नहीं मानी थी।

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​​ योगेंद्र सिंह यादव ​

हम बात कर रहे हैं योगेंद्र सिंह यादव की। योगेंद्र सिंह यादव का जन्म 10 मई 1980 को उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले में स्थित औरंगाबाद आहिर गांव में हुआ था। जानकारी के मुताबिक 1996 में महज 16 वर्ष की आयु में योगेंद्र सिंह यादव भारतीय सेना में भर्ती हो गए थे। योगेंद्र सिंह यादव एक फौजी परिवार से थे, उनके पिता भी भारतीय सेना में अपनी सेवाएं दे चुके थे। उन्होंने 1965 और 1971 के भारत पाक युद्ध में कुमाऊं रेजिमेंट की तरफ से विरोधियों को धूल चटाया था।

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​​टाइगर हिल​

योगेंद्र सिंह यादव के सेना में भर्ती होने के कुछ ही वर्ष हुए थे, पाकिस्तान सैनिकों ने घुसपैठ करके कारगिल की चोटियों पर अपना कब्जा जमा लिया था। इस युद्ध के दौरान योगेन्द्र सिंह यादव को टाइगर हिल के 3 सबसे ख़ास बंकरों को मुक्त कराने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। जानकारी के अनुसार, 4 जुलाई 1999 को योगेन्द्र सिंह यादव ने अपने कमांडो प्लाटून के साथ मिलकर दुर्गम ऊंची चोटी पर चढ़ाई की थी। वहीं अपनी बटालियन के साथ योगेंद्र सिंह यादव अभी कुछ ही दूरी तक पहुंचे ही थे कि पाकिस्तानी सैनिकों को उनके आने की आहट हो गई थी। इसके बाद पाकिस्तानी सैनिकों ने भारी गोलीबारी शुरू कर दी थी, इसमें कई भारतीय जवान गंभीर रूप से घायल हुए थे।

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​​ 18 ग्रनेडियर्स​

योगेंद्र सिंह यादव ने हार ना मानते हुए एक बार फिर 5 जुलाई को 18 ग्रनेडियर्स के 25 सैनिकों के साथ आगे बढ़ना शुरू किया था। हालांकि इस बार भी रणनीति बदल गई थी। उधर पाकिस्तानी सैनिकों की नजर फिर से भारतीय सैनिकों पर पड़ गई थी, जिसके बाद करीब 5 घंटे की लगातार गोलाबारी के बाद भारतीय सेना ने योजनाबद्ध तरीके से अपने कुछ जवानों को पीछे हटने के लिए कहा था। लेकिन यह एक योजना का हिस्सा था। जानकारी के मुताबिक ऑपरेशन के तहत योगेन्द्र सिंह यादव और उनके 7 भारतीय सैनिक अभी भी वहीं छिपे हुए थे। जब पाकिस्तान सैनिक दोबारा पुष्टि करने के लिए नीचे आए थे, उसी वक्त योगेन्द्र सिंह यादव की टुकड़ी ने उन पर हमला कर दिया था। हालांकि इस संघर्ष के दौरान कुछ पाकिस्तानी सैनिक वापस चोटी की तरफ भागने में सफ़ल हुए थे। लेकिन दूसरी तरफ भारतीय सैनिक तेजी ऊपर की तरफ चढ़े और सुबह होते-होते टाइगर हिल की चोटी के नजदीक पहुंचने में सफल हो गए थे।

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​​ परमवीर चक्र ​

पाकिस्तानी सैनिकों के इस हमले में योगेन्द्र सिंह यादव के सभी सैनिक वीरगति को प्राप्त हो गए थे। योगेन्द्र सिंह यादव के शरीर में 15 गोलियां लगी थी, लेकिन उनकी सांसें चल रही थी। इस दौरान उन्होंने मौका पाते ही अपनी जेब में रखे ग्रेनेड की पिन हटाई और आगे जा रहे पाकिस्तानी सैनिकों पर फेंक दी। इस दौरान जोरदार धमाके के साथ कई पाकिस्तानी सैनिकों के चीथड़े उड़ गए थे। इस बीच योगेन्द्र सिंह यादव ने अपने पास पड़ी रायफल उठाया और बचे हुए पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया था। हालांकि योगेंद्र सिंह यादव का बहुत खून बह चुका था, इसलिए वो ज़्यादा देर तक होश में नहीं रह सके। इस दौरान वो एक नाले में जा गिरे और बहते हुए नीचे आ गये थे। भारतीय सैनिकों ने उन्हें बाहर निकाला और उन्हें इलाज के लिए तुरंत अस्पताल में भर्ती किया। इस तरह से उनकी जान बच सकी और टाइगर हिल पर भारतीय जवानों ने तिरंगा लहराया था। कारगिल वॉर के बाद योगेंद्र सिंह यादव को उनकी बहादुरी के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था।