Same Sex Marriage क्या India में होगी मान्य? SC में LGBTQIA सपोर्टर्स ने रखी ये दलील
Same Sex Marriage: समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता दिलाने के पक्ष में जमकर दलीलें गईं। याचिकार्ता की तरह से पेश वकीलों ने कहा कि LGBTQIA समुदाय के लोग भी विषम लैंगिकों की तरह सम्मानजनक जीवन जीने का हक है।
LGBTQIA को भी मिले सम्मानजनक जीवन का अधिकार
समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने का अनुरोध कर रहे याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया कि वह अपनी पूर्ण शक्ति, प्रतिष्ठा और नैतिक अधिकार का इस्तेमाल कर समाज को ऐसे बंधन को स्वीकार करने के लिए प्रेरित करे, ताकि एलजीबीटीक्यूआईए समुदाय के लोग भी विषम लैंगिकों की तरह सम्मानजनक जीवन जी पाएं।और पढ़ें
समलैंगिक शादियों को मान्यता देनी चाहिए
एक याचिकाकर्ता की तरफ से पेश सीनियर वकील मुकुल रोहतगी ने प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ से कहा कि राज्य को आगे आना चाहिए और समलैंगिक शादियों को मान्यता देनी चाहिए। इस पीठ में न्यायमूर्ति एस के कौल, न्यायमूर्ति एस आर भट, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा भी शामिल हैं।और पढ़ें
समलैंगिक शादियों को मान्यता देने के लिए प्रेरित करने की जरुरत
रोहतगी ने विधवा पुनर्विवाह से जुड़े कानून का जिक्र किया और कहा कि समाज ने तब इसे स्वीकार नहीं किया था, लेकिन कानून ने तत्परता से काम किया और अंतत: इसे सामाजिक स्वीकृति मिली। उन्होंने पीठ से कहा कि यहां, इस अदालत को समाज को समलैंगिक शादियों को मान्यता देने के लिए प्रेरित करने की जरूरत है।
संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत मिले हक
अदालत के पास संविधान के अनुच्छेद-142 (जो सुप्रीम कोर्ट को पूर्ण न्याय सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक किसी भी आदेश को पारित करने की पूर्ण शक्ति प्रदान करता है) के तहत प्रदत्त अधिकारों के अलावा, नैतिक अधिकार भी है और इसे जनता का भरोसा भी हासिल है। हम यह सुनिश्चित करने के लिए इस अदालत की प्रतिष्ठा और नैतिक अधिकार पर निर्भर हैं कि हमें हमारा हक मिले।और पढ़ें
सभी राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों से राय ली जाए
सुप्रीम कोर्ट में दायर एक नए हलफनामे में केंद्र ने कहा कि उसने 18 अप्रैल को सभी राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों को पत्र लिखकर इन याचिकाओं में उठाए गए मौलिक मुद्दों पर उनकी टिप्पणियां और राय आमंत्रित की है। हलफनामे में कहा गया है कि इसलिए, विनम्रतापूर्वक अनुरोध किया जाता है कि सभी राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों को मौजूदा कार्यवाही में पक्षकार बनाया जाए, उनके संबंधित रुख को रिकॉर्ड में लिया जाए तथा भारत संघ को राज्यों के साथ परामर्श प्रक्रिया को समाप्त करने, उनके विचार/आशंकाएं प्राप्त करने, उन्हें संकलित करने तथा इस अदालत के समक्ष रिकॉर्ड पर रखने की अनुमति दी जाए, और उसके बाद ही वर्तमान मुद्दे पर कोई निर्णय लिया जाए।और पढ़ें
केंद्रीय कानून, विशेष विवाह अधिनियम को दी गई है चुनौती
हलफनामे में कहा गया है कि यह सूचित किया जाता है कि भारत संघ ने 18 अप्रैल 2023 को सभी राज्यों को पत्र जारी कर याचिकाओं में उठाए गए मौलिक मुद्दों पर उनकी टिप्पणियां और विचार आमंत्रित किए हैं। सरकार की ओर से दायर नई याचिका का विरोध करते हुए रोहतगी ने कहा कि याचिकाओं में केंद्रीय कानून, विशेष विवाह अधिनियम को चुनौती दी गई है और सिर्फ इसलिए कि यह विषय संविधान की समवर्ती सूची में है, राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों को नोटिस जारी करने की आवश्यकता नहीं है।और पढ़ें
अपराध के दायरे से बाहर किया जाए
रोहतगी ने आपसी सहमति से बनाए गए समलैंगिक संबंधों को अपराध के दायरे से बाहर किए जाने सहित अन्य फैसलों का जिक्र किया और कहा कि अदालत किसी ऐसे विषय पर फिर से विचार कर रही है, जिसमें पहले ही फैसला किया जा चुका है।
कमतर मनुष्य नहीं माना जाना चाहिए
रोहतगी ने कहा कि मेरा विषम लैंगिक समूहों के मामले में समान रुख है और ऐसा नहीं हो सकता कि उनका यौन अभिमुखीकरण (ओरियेंटेशन) सही हो और बाकी सभी का गलत। मैं कह रहा हूं कि एक सकारात्मक पुष्टि होनी चाहिए। हमें कमतर मनुष्य नहीं माना जाना चाहिए और इससे हमें जीवन के अधिकार का भरपूर आनंद मिल सकेगा।
पर्सनल लॉ पर नहीं होगा विचार
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को स्पष्ट किया था कि समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने के अनुरोध वाली याचिकाओं पर फैसला करते समय वह शादियों से जुड़े पर्सनल लॉ पर विचार नहीं करेगा। अदालत ने कहा था कि एक पुरुष और एक महिला की धारणा, जैसा कि विशेष विवाह अधिनियम में संदर्भित है, लिंग के आधार पर पूर्ण नहीं है। याचिकाओं पर सुनवाई और फैसले का देश पर महत्वपूर्ण प्रभाव होगा, क्योंकि आम लोग और राजनीतिक दल इस विषय पर अलग-अलग विचार रखते हैं।और पढ़ें
LGBTQIA पर केंद्र से सुप्रीम कोर्ट ने मांगा था जवाब
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 25 नवंबर को दो समलैंगिक जोड़ों द्वारा दायर अलग-अलग याचिकाओं पर केंद्र से जवाब मांगा था। इन याचिकाओं में दोनों जोड़ों ने शादी के अपने अधिकार को लागू करने और संबंधित अधिकारियों को विशेष विवाह अधिनियम के तहत अपने विवाह को रजिस्टर्ड करने का निर्देश देने की अपील की थी। एलजीबीटीक्यूआईए का मतलब लेस्बियन, गे, बाइसेक्शुअल, ट्रांसजेंडर, क्वीर, क्वेश्चनिंग, इंटरसेक्स और एसेक्सुअल से है।और पढ़ें
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