न जमीन न जायदाद..सिर्फ एक तरबूज बना इन दो शहरों में जंग की वजह; हजारों सैनिक मारे गए

आज से करीब 380 साल पहले दो रियासतों के बीच एक तरबूज को लेकर जंग छिड़ी थी। ये दोनों रियासतें बीकानेर और नागौर थी। यह जंग कैसे शुरू हुई और इसमें किसकी जीत हुई, आइए जानते हैं पूरी कहानी।

मतीरे की राड़
01 / 07

​मतीरे की राड़​

इतिहास में आपने कई युद्ध या जंगों के बारे में पढ़ा या सुना होगा। इनमें से अधिकतर लड़ाईयां दौलत, ताकत, जमीन आदि के लिए होती थी। लेकिन इतिहास में एक ऐसी भी लड़ाई हुई है जिसकी वजह सिर्फ एक फल था। एक तरबूज के लिए हुई इस खूनी लड़ाई में हजारों सैनिकों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। इस जंग को इतिहास में 'मतीरे की राड़' के नाम से जाना जाता है।और पढ़ें

फल के लिए लड़ा गया इकलौता युद्ध
02 / 07

​फल के लिए लड़ा गया इकलौता युद्ध​

मतीरे की राड़ दुनिया का इकलौता ऐसा युद्ध है, जिसे सिर्फ एक फल की वजह से लड़ा गया था। 'मीतरे की राड़' नाम में मतीरे का मतलब तरबूज होता है। दरअसल राजस्थान के कुछ हिस्सों में तरबूज को मतीरा कहते हैं। वहीं राड़ का मतलब झगड़ा होता है।

बीकानेर और नागौर रियासत
03 / 07

​बीकानेर और नागौर रियासत​

मतीरे की राड़ नामक जंग आज से करीब 380 साल पहले 1644 ईस्वी में हुई थी। दरअसल बीकानेर रियासत का सीलवा गांव और नागौर रियासत का जाखणियां गांव दोनों रियासतों की अंतिम सीमा में थे। ये दोनों गांव एक दूसरे से सटे हुए थे। इन्हीं के बीच एक फल को लेकर जंग छिड़ी थी।

कैसे शुरू हुई जंग
04 / 07

​कैसे शुरू हुई जंग​

बीकानेर रियासत में तरबूज का एक पौधा उगा था, जिसकी एक फल नागौर रियासत में चला गया था। इस फल को बीकानेर रियासत के लोग अपना मान रहे थे, क्योंकि इसका पौधा उनकी सीमा में लगा हुआ था। वहीं नागौर रियासत के लोगों का कहना था कि फल उनकी सीमा में आ गया है इस कारण अब यह उनका है। इसी बात को लेकर दोनों रियासतों के बीच झगड़ा शुरू हुआ और यह खूनी जंग में बदल गया।और पढ़ें

गांव के लोगों ने लड़ी जंग
05 / 07

​गांव के लोगों ने लड़ी जंग​

इस जंग को गांव वालों ने ही आपस में लड़ा था। इसमें बीकानेर की सेना का नेतृत्व रामचंद्र मुखिया ने किया था। वहीं नागौर की सेना का नेतृत्व करने वाले सिंघवी सुखमल थे। यह जंग दो रियासतों के नाम पर हुई थी, लेकिन दिलचस्प बात ये है कि इस लड़ाके के बारे में दोनों रियासतों के राजाओं को कोई जानकारी नहीं थी।

मुगल दरबार से हस्तक्षेप की मांग
06 / 07

​मुगल दरबार से हस्तक्षेप की मांग​

बीकानेर के राजा करणसिंह इस लड़ाई के समय एक अभियान पर गए थे, वहीं नागौर के राजा राव अमरसिंह मुगल साम्राज्य की सेवा में थे। इस जंग के दौरान दोनों राजाओं ने मुगल साम्राज्य की अधीनता स्वीकार कर ली थी। जब इन राजाओं को इस युद्ध के बारे में जानकारी हुई, तो उन्होंने मुगल दरबार से इसमें हस्तक्षेप करने को कहा। लेकिन मुगल दरबार तक इस बात के पहुंचने से पहले ही युद्ध छिड़ चुका था।और पढ़ें

किसकी हुई जीत
07 / 07

​किसकी हुई जीत?​

एक तरबूज के लिए हुए इस अजीबो-गरीब युद्ध में बीकानेर रियासत की जीत हुई। लेकिन इसमें दोनों रियासतों के हजारों सैनिकों की जान गई थी।

End of Photo Gallery
Subscribe to our daily Newsletter!

© 2025 Bennett, Coleman & Company Limited