दिव्य, भव्य होगा ओंकारेश्वर का एकात्म धाम, तस्वीरें देखते ही रम जाएगा मन
दिव्य, भव्य होगा ओंकारेश्वर का एकात्म धाम, तस्वीरें देखते ही रम जाएगा मन
18 सितंबर को होगा अनावरण
18 सितंबर को आदि शंकराचार्य की ज्ञान स्थली ओंकारेश्वर की धरा पर होने वाले शंकरावतरणं नामक भव्य कार्यक्रम में प्रतिमा अनावरण के साथ ही अद्वैत लोक शिला न्यास का पूजन भी होगा। अद्वैत लोक नामक संग्रहालय नर्मदा व कावेरी की पुण्य सरिताओं की ओर मुख किए ओंकारेश्वर के मांधाता पर्वत पर स्थित है। इसमें अनेक सिद्धस्थ व समर्पित कारीगरों की कला का जन-जन प्रत्यक्षदर्शी होगा, साथ ही भारतवर्ष की मनोरम , समृद्ध व समस्त विश्व के पुरातत्वविदों के लिए प्राचीन काल से अचंभा का विषय रही भारतीय स्थापत्य कला का अद्वैत लोक के द्वारा लोग अनुभव कर पाएंगे।और पढ़ें
अद्वैत लोक में दिखेंगे आचार्य शंकराचार्य के जीवन प्रसंग
यदि एकात्म धाम के स्थापत्य शैली की बात की जाए तो इसकी निर्मिती शैली विविध क्षेत्रों के स्थापत्य कलाओं की पुरातात्त्विक शैली से प्रेरित रहेगी। धाम में मंदिर वास्तुकला की नागर शैली किया जाएगा साथ ही पारंपारिक वास्तुशिल्प तत्त्वों जैसे स्तम्भ, छत्तरियों का उपयोग किया जाएगा। साथ ही अद्वैत लोक की निर्मित सामग्री में कुशल कारीगरों द्वारा तैयार होगी व ठोस पत्थर की चिनाई , पाषाण की सहायता से निर्मित कारीगरी देखने को मिलेगी । आचार्य शंकराचार्य के जीवन प्रसंगों को भित्तिचित्रों, मूर्तियों के माध्यम से चित्रित किया जाएगा। और पढ़ें
आदिगुरू के चार शिष्यों के नाम पर आधारित होंगे शोध केंद्र
अद्वैत दर्शन को नव युवा शक्ति, जो जिज्ञासु, ज्ञान पिपासु व एकात्मता के संदेश को समस्त विश्व तक पहुँचाने हेतु कटिबद्ध हैं, ऐसे शोधार्थियों-विद्यार्थियों के लिए चार शोध केंद्र भी स्थापित किए जाने की कल्पना भी जल्द ही साकार रूप लेना प्रारंभ करेगी। यह शोध केंद्र आदि गुरु शंकराचार्य जी के चार शिष्यों के नाम पर आधारित होंगे। अद्वैत वेदान्त आचार्य शंकर अन्तराष्ट्रीय संस्थान के प्रांगण के अंतर्गत यह चार शोध केंद्र स्थित रहेंगे जिनके नाम हैं - अद्वैत वेदान्त आचार्य पद्मपाद केंद्र, आचार्य हस्तमलक अद्वैत विज्ञान केंद्र, आचार्य सुरेश्वर सामाजिक विज्ञान अद्वैत केंद्र, आचार्य तोटक साहित्य अद्वैत केंद्र। इसकी स्थापत्य शिल्प कला में नागर, द्रविड, उडिया, मारू गुर्जर, होयसला, उत्तर भारतीय –हिमालयीन और केरल मंदिर स्थापत्य सहित अनेक पारंपरिक वास्तुकला शैलियों की शृंखला स्थानीय सम्मिलित होंगे। और पढ़ें
समृद्ध स्थापत्य शैलियों का होगा समावेश
विभिन्न स्थापत्य शैली के बारे में बात की जाए तो नागर शैली के मंदिर संरचना की तुलना मानव शरीर के विभिन्न अंगों से की गई है। मानव शरीर की संरचना के समान ही मंदिर की संरचना पर बल दिया गया है, इसे निम्न तथ्यों के आधार पर देखा जा सकता है 'नागर' शब्द नगर से बना है। सर्वप्रथम नगर में निर्माण होने के कारण इन्हें नागर की संज्ञा प्रदान की गई। शिल्पशास्त्र के अनुसार नागर मंदिरों के आठ प्रमुख अंग है -1. मूल आधार - जिस पर सम्पूर्ण भवन खड़ा किया जाता है।2. मसूरक - नींव और दीवारों के बीच का भाग3. जंघा - दीवारें (विशेषकर गर्भगृह की दीवारें)4. कपोत - कार्निस5. शिखर - मंदिर का शीर्ष भाग अथवा गर्भगृह का उपरी भाग6. ग्रीवा - शिखर का ऊपरी भाग7. वर्तुलाकार आमलक - शिखर के शीर्ष पर कलश के नीचे का भाग8. कलश - शिखर का शीर्षभागऔर पढ़ें
नर्मदा नदी के उत्तरी क्षेत्र तक नागर शैली
नागर शैली का क्षेत्र उत्तर भारत में नर्मदा नदी के उत्तरी क्षेत्र तक है। परंतु यह कहीं-कहीं अपनी सीमाओं से आगे भी विस्तारित हो गयी है। नागर शैली के मंदिरों में योजना तथा ऊॅंचाई को मापदंड रखा गया है। नागर वास्तुकला में वर्गाकार योजना के आरंभ होते ही दोनों कोनों पर कुछ उभरा हुआ भाग प्रकट हो जाता है जिसे 'अस्त' कहते हैं। इसमें चांड़ी समतल छत से उठती हुई शिखा की प्रधानता पाई जाती है। यह शिखा कला उत्तर भारत में सातवीं शताब्दी के पश्चात् विकसित हुई अर्थात परमार शासकों ने वास्तुकला के क्षेत्र में नागर शैली को प्रधानता देते हुए इस क्षेत्र में नागर शैली के मंदिर बनवाये।और पढ़ें
कृष्णा नदी से लेकर कन्याकुमारी तक द्रविड़ शैली
कृष्णा नदी से लेकर कन्याकुमारी तक द्रविड़ शैली के मंदिर पाए जाते हैं। द्रविड़ शैली की पहचान विशेषताओं में- प्राकार (चहारदीवारी), गोपुरम (प्रवेश द्वार), वर्गाकार या अष्टकोणीय गर्भगृह (रथ), पिरामिडनुमा शिखर, मंडप (नंदी मंडप) विशाल संकेन्द्रित प्रांगण तथा अष्टकोण मंदिर संरचना शामिल हैं। द्रविड़ शैली के मंदिर बहुमंजिला होते हैं।और पढ़ें
शंकराचार्य ने की थी चार मठों की स्थापना
जगतगुरु शंकराचार्य जी द्वारा चार दिशाओं में चार मठों की स्थापना कर न केवल चार मठों में वेदान्त शालाएं प्रारंभ की, अपितु उन चार दिशाओं की संस्कृति व कला में अपना महत्वपूर्ण योगदान देकर सांस्कृतिक व कलात्मक एकीकरण की धरोहर आज के ज्ञान पिपासुओं हेतु देकर गए l
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