16 साल के शासन में 51 जंग जीतने वाली रानी; तीन बार मुगलों को खदेड़ा और जब हुई घायल तो खुद के सीने में मार ली थी तलवार
भारत की भूमि एक से एक वीरांगनाओं से भरी रही है। चाहे वो कोई भी काल रहा है। जिस मुगल के सामने बड़े से बडे़ राजा ने हथियार डाल दिए थे, उन मुगलों को एक भारतीय नारी ने मार भगाया था, वो भी एक बार नहीं बल्कि तीन-तीन बार। वो नारी कोई साधारण नारी नहीं थी, वो थी एक राज्य का रानी, अपने लोगों के लिए महारानी, नाम था राना दुर्गावती। दुर्गावती ने तब राज्य संभाला था, जब अकबर दिल्ली की गद्दी पर बैठा था और उसके सामने बड़े से बड़े राजा हथियार डाल चुके थे, लेकिन रानी दुर्गावती ने कभी भी अकबर की सेना के सामने सिर नहीं झुकाया और तीन बार मार भगया। जब बुरी तरह घायल हुईं तो खुद ही सीने में खंजर उतार लिया।
रानी दुर्गावती के नाम से कांप जाते दुश्मन
रानी दुर्गावती गढ़ा राज्य की रानी थी। देश की महानतम वीरांगनाओं में रानी दुर्गावती का नाम सबसे पहले याद किया जाता है। उन्होंने मातृभूमि और आत्मसम्मान की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया। उनके लिए कहा जाता है- 'वह तीर थी, तलवार थी, भालों और तोपों का वार थी, फुफकार थी, हुंकार थी, शत्रु का संहार थी!' बचपन से ही घुड़सवारी, तलवारबाजी, तीरंदाजी जैसी युद्ध कलाओं का हुनर रखने वाली रानी दुर्गावती के नाम से ही दुश्मन कांप जाते थे।
यूपी में हुआ था रानी दुर्गावती
रानी दुर्गावती का जन्म दुर्गा अष्टमी के दिन 24 जून को 1524 को बांदा जिले में हुआ। वह राजपूत राजा कीर्तिसिंह चंदेल की इकलौती संतान थीं। उनका विवाह राजा दलपत शाह से हुआ था। उनके पास गोंड वंशजों के 4 राज्यों, गढ़मंडला, देवगढ़, चंदा और खेरला, में से गढ़मंडला पर अधिकार था। विवाह के महज सात साल बाद ही राजा दलपत का निधन हो गया। पति के निधन के समय दुर्गावती का पुत्र केवल पांच साल का था। इस दौरान रानी को अपना साम्राज्य और बेटा दोनों को संभालना था।
16 साल में 51 जंग लड़ी थी दुर्गावती
रानी दुर्गावती ने गढ़ा राज्य पर 16 सालों तक शासन किया। इस शासनकाल के दौरान रानी दुर्गावती ने 51 जंगें लड़ीं और जीतीं थीं। रानी दुर्गावती ने तीन मुस्लिम राज्यों से कई बार लड़ाईंयां लड़ीं थी और जीत हासिल की थी। अकबर को युद्ध में धुल चटाने वाली वीरांगना का सामना करना किसी भी दुश्मन के लिए आसान नहीं था।
कई व्यूह की रचना कर सकती थी रानी दुर्गावती
रानी दुर्गावती युद्ध कला में इतनी निपुण थीं कि उन्हें कई तरह के व्यूह का ज्ञान था। किस सेना के सामने कौन सी व्यूह की रचना करना है और उसे कैसे हराना है ये रानी दुर्गावती को बखूबी आता था। रानी श्रींगातका व्यूह, वज्र व्यूह, गरुड़ व्यूह, क्रौंच व्यूह, औरमी व्यूह, अर्धचंद्र व्यूह, मगर व्यूह, मंडल व्यूह में काफा निपुण थीं।
शेर को मारकर पानी पीती थी रानी दुर्गावती
रानी दुर्गावती के बारे में कहा जाता है कि वो इतनी बहादुर थीं कि अगर उन्हें पता चल जाता कि उनके राज्य में अमुक जगह शेर दिखा है तो रानी महल छोड़कर बाहर निकल जातीं और शेर को मारने के बाद ही पानी पीतीं। रानी दुर्गावती ने अपने शासनकाल के दौरान, अपना राज्य काफी बढ़ा लिया था। राज्य में स्कूल, मंदिर, मठ, बाबरी समेत कई कल्याणकारी चीजों पर काम किया था।
तीन बार मुगलों की सेना को रानी दुर्गावती ने खदेड़ा था
रानी दुर्गावती से जब आसपास के मुस्लिम राज्य हार गए और अकबर को भी अपने साम्राज्य विस्तार में रानी दुर्गावती रोड़ा बनने लगीं तो मुगलों की एक बड़ी सेना दुर्गावती को हराने के लिए निकली। 1562 में जब अकबर ने मालवा को मुगल साम्राज्य में मिला लिया और रीवा पर उनके शागिर्द का कब्जा था। तब मुगल सेना ने गोंडवाना पर हमला किया, लेकिन युद्ध में रानी दुर्गावती की जीत हुई। इसके बाद साल 1564 में मुगलों ने फिर से उनके किले पर हमला बोला।
जब रानी दुर्गावती ने ले ली खुद की जान
इस हमले के दौरान रानी दुर्गावती अपने हाथी पर सवार होकर युद्ध करने के लिए निकलीं। पहले युद्धभूमि में उन्होंने मुगल साम्राज्य के सिपाहियों को खदेड़ दिया था, लेकिन वो गंभीर रूप से घायल हो गई थीं। चारों ओर से दुश्मनों से घिरी रानी को इस बात का एहसास हो चुका था कि अब उनका जिंदा रहना मुश्किल है, तब उन्होंने अपने एक सैनिक से कहा कि वह उन्हें मार दे। लेकिन सैनिक ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। रानी ने दुश्मनों के हाथों मरने से पहले खुद को ही मारना बेहतर समझा। उन्होंने बहादुरी से अपनी तलवार खुद ही अपने सीने में मार ली और शहीद हो गईं।
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