'बिहार का शोक' का विकराल रूप, कोसी में उफान देख याद आ जाएगी पुरानी त्रासदी

कोसी नदी को बिहार का शोक कहा जाता है। कोसी नदी कब और कैसे अपना रास्ता बदल ले, ये कहा नहीं जा सकता। जो गांव कोसी से कभी दूर थे आज नदी में समा चुके हैं। जैसे ही बारिश का मौसम शुरू होता है कोसी नदी अपना रौद्र रूप दिखाने लगती है। इस बार भी कोसी नदीं ने बारिश के शुरू होते ही अपना भयावह रूप अपना लिया। कई के आशियाने इस नदी में बह चुके हैं। कोसी नदी अपने खतरे के निशान से ऊपर बह रही है।

उफान पर कोसी
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उफान पर कोसी

बिहार में पिछले 24 घंटे में हुई मूसलाधार बारिश के कारण राज्य के नदी-नाले जहां उफान पर हैं, वहीं कोसी समेत कई नदियों का जल स्तर विभिन्न जगहों पर खतरे के निशान को पार कर चुका है।

कहां-कहां मंडरा रहा खतरा
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कहां-कहां मंडरा रहा खतरा

कोसी नदी सुपौल और बसंतपुर में खतरे के निशान से ऊपर बह रही है, जबकि खगड़िया और बेलदौर इलाके में भी इसने शुक्रवार को चेतावनी के स्तर को छू लिया।

कहलाती है बिहार का शोक
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कहलाती है बिहार का शोक

कोसी को बिहार का शोक भी कहा जाता है क्योंकि यह इस क्षेत्र में बाढ़ का कारण बनती है। नदी के ऊपरी हिस्से में मिट्टी का कटाव और भूस्खलन दुनिया में सबसे ज़्यादा गाद पैदा करता है। यही कारण है कि इसे "बिहार का शोक" कहा जाता है।

हर साल मचाती है तबाही
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हर साल मचाती है तबाही

हर साल इसकी बाढ़ से 21,000 वर्ग किलोमीटर उपजाऊ भूमि प्रभावित होती है, जिससे ग्रामीण कृषि अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान होता है।

30 फीट तक बढ़ जाती है कोसी
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30 फीट तक बढ़ जाती है कोसी

मलबे के विशाल प्रवाह के कारण, कोसी के पास उत्तरी भारत के विशाल मैदान में कोई स्थायी चैनल नहीं है। यह लंबे समय से अपनी विनाशकारी बाढ़ के लिए कुख्यात है, जो 24 घंटे में 30 फीट (9 मीटर) तक बढ़ सकती है।

कहलाती है सप्तकोसी
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कहलाती है सप्तकोसी

कोसी नदी को इसकी सात सहायक नदियों के कारण सप्तकोसी के नाम से भी जाना जाता है। कोसी नदी की मुख्य सहायक नदियां तमोर नदी, अरुण नदी और सुन कोशी, तमाकोशी नदी, लिखुखोला हैं।

गंगा से होता है मिलन
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गंगा से होता है मिलन

कोसी नदी कटिहार जिले के कुर्सेला के पास गंगा में मिलने से पहले विभिन्न शाखाओं में बँट जाती है। कोसी घाघरा और यमुना के बाद जल निर्वहन के हिसाब से गंगा की तीसरी सबसे बड़ी सहायक नदी है।

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