कहां से कहां पहुंच गईं विनेश फोगाट, कुश्ती के अखाड़े से हरियाणा विधानसभा तक का सफर
Vinesh Phogat Journey: अगर संकल्प का कोई चेहरा होता, तो निश्चित रूप से वह विनेश फोगाट से काफी मिलता-जुलता। कुश्ती की एक अनुभवी खिलाड़ी और एक मुखर आवाज के तौर पर सत्ता के खिलाफ खड़ी होने वाली विनेश फोगाट अब हरियाणा विधानसभा में कांग्रेस की नवनिर्वाचित विधायक हैं। हरियाणा विधानसभा चुनाव के चर्चित चेहरों में शुमार फोगाट ने जुलाना से 6,015 मतों के अंतर से अपना पहला चुनाव जीता है।
पहले चुनाव में विनेश फोगाट ने हासिल की जीत
तीस-वर्षीया फोगाट के लिए मतगणना की सुबह काफी मुश्किल रही, क्योंकि वह कई बार भाजपा के अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी योगेश कुमार से पिछड़ीं या बराबरी पर रहीं, लेकिन चरखी दादरी की इस छोटे कद की खिलाड़ी ने अंतत: जीत हासिल कर ही ली। यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं है, बल्कि यह ऐसी विजय है जो लंबे समय तक उनके जेहन में ताजा रहेगी।और पढ़ें
विनेश फोगाट की जिंदगी में आए कई उतार-चढ़ाव
जुलाना सीट पर जहां फोगाट चतुष्कोणीय मुकाबले में घिरी थीं, वहीं पार्टी की निगाहें 2005 के बाद से पहली बार इस सीट को हासिल करने पर टिकी थीं। यही नहीं, इस कड़े मुकाबले के बीच फोगाट की नजर राज्य में चुनाव जीतने वाली पहली महिला पहलवान बनने पर भी थी। कुश्ती से संन्यास ले चुकीं फोगाट की जिंदगी के उतार-चढ़ाव ऐसे हैं कि अगर वह जल्द ही किसी मेगा-बजट बॉलीवुड बायोपिक के लिए प्रेरणास्रोत बन जाएं तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी।और पढ़ें
कांग्रेस ने हरियाणा विधानसभा चुनाव में 37 सीटें जीतीं
एक महीने से थोड़ा अधिक समय पहले, उन्होंने वह कदम उठाया जिसकी लोग महीनों से उम्मीद लगा रहे थे और अंतत: उन्होंने हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर राजनीति में पदार्पण किया। कांग्रेस को सत्तारूढ़ भाजपा को उखाड़ फेंकने का भरोसा था, जो 10 साल की सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही थी। हालांकि ऐसा हो न सका, क्योंकि भाजपा विधानसभा की कुल 90 सीट में से 48 पर जीत दर्ज कर चुकी है जबकि कांग्रेस 37 सीट जीता है।और पढ़ें
नौ साल की उम्र में अपने पिता को खोने का दर्द पाया
फोगाट ने नौ साल की उम्र में अपने पिता को खोने का दर्द पाया, लेकिन कुश्ती के खेल ने उन्हें संबल दिया। हालांकि हाल में सम्पन्न पेरिस ओलंपिक के घटनाक्रम ने उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से लगभग तोड़ दिया था और आखिरकार उन्होंने हार मान ली। फोगाट ने मान लिया कि अब वह इस खेल से नहीं लड़ सकतीं। इसके बाद फोगाट ने ‘राजनीति के अखाड़े’ के लिए खुद को तैयार किया एवं जीत का परचम लहराया। पेरिस ओलंपिक में कुश्ती के 50 किग्रा भारवर्ग के फाइनल से पहले 100 ग्राम अधिक वजन होने के कारण अयोग्य ठहराई गई फोगाट अब राजनीति के क्षेत्र में एक कद्दावर नेता के तौर पर उभरी हैं।और पढ़ें
कितना शानदार और जबरदस्त रहा विनेश फोगाट का करियर
इससे पहले फोगाट ने अपने शानदार करियर में दो विश्व चैंपियनशिप कांस्य पदक, दो एशियाई खेल पदक, जिसमें एक स्वर्ण पदक, आठ एशियाई चैंपियनशिप पदक और राष्ट्रमंडल खेलों में लगातार तीन स्वर्ण पदक जीते। कुल मिलाकर, फोगट ने विभिन्न विश्व और महाद्वीपीय प्रतियोगिताओं में 15 पदक जीते, जिनमें से पांच स्वर्ण पदक थे। इस पूरे सफर में, विनेश को अपनी मां का भरपूर सहारा मिला, लेकिन फोगाट परिवार के साथ उनके रिश्ते में खटास आई। उनके चाचा एवं द्रोणाचार्य पुरस्कार विजेता महावीर फोगाट तथा उनकी चचेरी बहनें गीता और बबीता फोगाट ने उन्हें निशाना बनाया।और पढ़ें
जुलाना के मतदाताओं से जुड़ने पर ध्यान केंद्रित किया
तीनों ने कांग्रेस में शामिल होने के उनके फैसले की आलोचना करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वहीं, विनेश फोगाट ने अपने बयानों पर चुप्पी साधे रखी और इसके बजाय जुलाना के मतदाताओं से जुड़ने पर ध्यान केंद्रित किया। नकारात्मकता के सामने उनके प्रयासों और दृढ़ता ने एक बार फिर सफलता दिलाई है। विनेश के सोशल मीडिया ‘बायो’ की शुरुआती लाइन में लिखा है, ‘‘एक दिन, आपकी सारी मेहनत रंग लाएगी।’’ निश्चित रूप से विनेश के लिए मंगलवार का दिन ऐसे ही दिनों में से एक साबित हुआ है।और पढ़ें
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