आखिर क्या है चकबंदी, किसानों को इससे फायदा होता है या नुकसान? योगी सरकार ने बना डाला रिकॉर्ड

What is Chakbandi: यूपी की योगी सरकार ने नया कीर्तिमान स्थापित किया। तीन वर्षों में 1475 ग्रामों में चकबंदी की प्रक्रिया पूरी हुई है। क्या आप जानते हैं कि आखिर ये चकबंदी है क्या चीज, इससे किसानों फायदा होता है या फिर नुकसान झेलना पड़ता है। आपको सारे सवालों के जवाब दे देते हैं।

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आखिर क्या होती है चकबंदी?

किसानों के खेत कई अलग-अलग हिस्सों में फैले होते हैं। ऐसे में चकबंदी प्रक्रिया से उनकी कुल जमीन के बराबर खेत एक ही जगह पर दे दिए जाते हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने चकबंदी संबंधी कार्यों में पिछले एक वर्ष में 10 वर्षों का नया कीर्तिमान स्थापित किया है। वर्तमान वित्तीय वर्ष में आठ माह में प्रदेश के 40 जिलों के 82 ग्रामों में अब तक चकबंदी कराई जा चुकी है। वहीं पिछले वर्ष 2023-24 में प्रदेश के 74 जिलों के 781 गांवों में चकबंदी कराई गई। इसके अलावा पिछले साल सितंबर से अब तक 705 ग्राम अदालत का आयोजन किया गया, जिसमें 25,523 वादों का निस्तारण किया जा चुका है। तीन वर्षों में 1475 ग्रामों में चकबंदी की प्रक्रिया पूरी की गई है।

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चकबंदी से किसनों को कितना फायदा?

चकबंदी से किसानों को ये फायदा होता है कि उनको खेती करने में लागत कम आती है। इसके अलावा सभी खेत एक ही जगह पर होने से वो उनकी अच्छे से देख भाल भी कर सकते हैं। चकबंदी आयुक्त जीएस नवीन ने बताया कि इस वित्तीय वर्ष में आठ माह में 40 जिलों के 82 ग्रामों में चकबंदी कराई जा चुकी है। वहीं 51 ग्रामों में चकबंदी प्रक्रिया संभव न होने के कारण अधिनियम की धारा 6 (1) के तहत चकबंदी प्रक्रिया से अलग किया गया। इसी तरह वर्ष 2023-24 में 74 जिलों के 781 ग्रामों में चकबंदी प्रक्रिया पूरी की गई। इसमें 330 ग्राम 10 वर्षों से अधिक अवधि के थे। वर्ष 2022-23 में 463 ग्रामों एवं 2021-22 में 231 ग्रामों में चकबंदी प्रक्रिया पूरी की गई, जो पिछले 10 वर्षों की तुलना में एक कीर्तिमान है।

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1475 ग्रामों में चकबंदी प्रक्रिया पूरी

कुल मिलाकर वर्ष 2021-2022, 2022-23 तथा 2023-24 में 1475 ग्रामों में चकबंदी प्रक्रिया पूरी हुई है। वहीं, 50 वर्ष से अधिक अवधि से लंबित 8 ग्राम, 30 वर्ष से 50 वर्ष तक लंबित 72 ग्राम और 10 वर्ष से 30 वर्ष तक लंबित 296 ग्राम में चकबंदी प्रक्रिया पूरी की गई। इसमें आजमगढ़ के ग्राम महुवा और गोमाडीह में क्रमश: 63 वर्ष और 56 वर्ष से लंबित, विचाराधीन चकबंदी प्रक्रिया पूरी की गई। इसके अलावा गाजीपुर के ग्राम सवना व बरेजी चकबंदी प्रक्रिया 59 वर्षों एवं ग्राम बेलसड़ी की चकबंदी प्रक्रिया 55 वर्षों से विचाराधीन थी, जिसे पूरी किया गया।

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किन जगहों पर चकबंदी हुई पूरी?

चकबंदी आयुक्त ने बताया कि लखीमपुर खीरी के ग्राम सुआबोझ, सुल्तानपुर के ग्राम मालापुर जगदीशपुर, जौनपुर के ढेमा गांव में क्रमश: 53, 54 और 52 वर्ष से चकबंदी प्रक्रियाधीन थी, जिसे पूरा किया गया। इसके अलावा सुल्तानपुर के ग्राम अनंदापुरा में 48 वर्षों, बरेली के ग्राम मोहनपुर में 41 वर्ष, बिजनौर के ग्राम छाचरी टीप में 35 वर्षों, बदायूं के ग्राम रेहड़िया में 33 वर्षों, मऊ के ग्राम अल्देमऊ में 31 वर्षों, बुलंदशहर के ग्राम याकूबपुर व मुस्तफाबाद डडुवा में 30 वर्षों से चकबंदी प्रक्रियाधीन थी, जिसे पूरा किया गया।

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34 वर्षों से बाधित थी चकबंदी प्रक्रिया

इसके साथ ही कन्नौज में 1990 में अग्निकांड की वजह से 35 ग्रामों के अभिलेख जल गए थे, जिससे 34 वर्षों से चकबंदी प्रक्रिया बाधित हो रही थी। इसमें नए अभिलेखों को तैयार करना सबसे बड़ी चुनौती थी। ऐसे में चकबंदी आयुक्त ने तत्कालीन अपर निदेशक चकबंदी की अध्यक्षता में समिति का गठन किया। साथ ही समिति की संस्तुति के बाद 35 ग्रामों में से 8 ग्रामों को पायलट प्रोजेक्ट के रूप में उनके अभिलेख सृजित किये गए। इनमें से दो गांव नंदलालपुर व करनौली की चकबंदी प्रक्रिया पूरी की जा चुकी है।

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25,523 वादों को किया जा चुका निस्तारण

इतना ही नहीं पिछले वर्ष चकबंदी प्रक्रिया में शामिल लखीमपुर खीरी के ग्राम रामपुर मकरन्द की चकबंदी प्रक्रिया एक वर्ष और रामपुर के ग्राम चक रफतपुर में मात्र आठ माह में चकबंदी पूरी की गई। उन्होंने बताया कि पिछले वर्ष सितंबर से अब तक प्रदेश के विभिन्न जिलों में 705 ग्राम अदालत का आयोजन किया गया। इसके जरिये 25,523 वादों को निस्तारण किया जा चुका है। इसके अलावा किसानों के हित एवं पारदर्शिता के मद्देनजर एआई, ब्लॉक चैन, ड्रोन एवं रोवर सर्वेक्षण आधारित चकबंदी संचालित करने के लिए पायलट प्रोजेक्ट के तहत आईआईटी रुड़की के साथ परीक्षण चल रहा है। इसके साथ ही जीआईएस बेस्ड सॉफ्टवेयर एवं मोबाइल ऐप विकसित करने की भी कार्रवाई चल रही है। जल्द ही इन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर चकबंदी प्रक्रिया संचालित की जाएगी।