क्या है सपिंड विवाह जिसकी हिंदू मैरिज एक्ट में भी सख्त मनाही

हिंदुओं मे सपिंड विवाह एक बड़ा मुद्दा है जिसकी अक्सर चर्चा होती है। यह एक ऐसी शादी है, जहां व्यक्ति अपने नजदीकी रिश्तेदारों से विवाह कर लेता है। भारत में हिंदू विवाह अधिनियम के तहत ऐसी शादी अवैध मानी जाती है। भले ही भारत के संविधान में कई मौलिक अधिकार दिए गए हैं, जिसमें मर्जी से शादी भी एक अधिकार है। इसमें कोई भी व्यस्क पुरुष या महिला अपनी मर्जी से किसी भी जाति, धर्म में शादी कर सकते हैं, लेकिन कुछ मामलों में शादी मुमकिन नहीं है, ऐसा ही मामला है सपिंड विवाह जिसकी सख्त मनाही है।

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क्या है सपिंड विवाह

सपिंड विवाह का अर्थ है एक ही पिंड में की गई शादी। भले ही किसी व्यक्ति या महिला को किसी भी जाति, धर्म में शादी करने का अधिकार है, लेकिन हिंदू मैरिज एक्ट में यह प्रतिबंधित है।

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नजदीकी रिश्तेदारी में शादी

यानी सपिंड विवाह एक ऐसी शादी है, जहां व्यक्ति अपने नजदीकी रिश्तेदारों से विवाह कर लेता है। सपिंड यानी एक ही खानदान के लोग, जो एक ही पितरों का पिंडदान करते हैं।

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हिंदुओं में सपिंड विवाह की मान्यता नहीं

आजादी के बाद साल 1950 में भारत का संविधान लागू हुआ था। इसमें हर नागरिक को कुछ मौलिक अधिकार दिए गए थे। इसके तहत कोई भी व्यस्क पुरुष व महिला अपनी मर्जी से किसी भी जाति, धर्म में शादी कर सकते हैं, लेकिन हिंदुओं में सपिंड विवाह की मान्यता नहीं दी गई है।

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हिंदू मैरिज एक्ट में प्रावधान

हिंदू मैरिज एक्ट 1955 की धारा 3(f)(i) के अनुसार, एक हिंदू व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति से शादी नहीं कर सकता जो मां की ओर से उनकी तीन पीढ़ियों के अंदर हो।

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पिता की ओर से पांच पीढ़ियों पर लागू

पिता की ओर से यह कानून पांच पीढ़ियों पर लागू होता है। ऐसी शादी करने पर सजा और जुर्माने की बात भी की गई है।

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बच्चों में आनुवंशिक विकार दिखते हैं

हालांकि, सपिंड शादी आज भी समाज में कही-कहीं दिख जाती हैं, लेकिन हिंदू समाज ऐसी शादियों को प्रेरित नहीं करता। ऐसे शादी से होने वाले बच्चों में आनुवंशिक विकार दिखते हैं।