जब एक चरवाहे की वजह से हार गया था पाकिस्तान और जीत गया था हिंदुस्तान
पाकिस्तान, भारत को तोड़ने के मंसूबे से चार बार जंग लड़ा है, इन चारों जंगों में उसे हार का सामना करना पड़ा है। पहली बार 1947 में, दूसरी बार 1965, तीसरी बार 1971 में और चौथी बार 1999 में करगिल वॉर। इन चारों जंगों में पाकिस्तान को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा है। इसमें से एक जंग तो पाकिस्तान को एक चरवाहे ने हरवा दिया था। 1965 की जंग में पाकिस्तान, बहुत खतरनाक मंसूबे को लेकर भारत में घुसा था, लेकिन एक चरवाहे की वजह से उसका प्लान फेल हो गया और उसके सैनिक मारे गए थे।
पुर्तगाल और स्पेन पर मुस्लिम विजय को जब पाकिस्तान ने बनाया था आधार
ऑपरेशन जिब्राल्टर पाकिस्तान की जम्मू-कश्मीर में करीब 30,000 घुसपैठियों के जरिए प्रवेश करने की नापाक रणनीति का नाम था। भुलावे में रखने के लिए उसने 'जिब्राल्टर' नाम चुना। इस्लामिक हिस्ट्री के गर्व की कहानी कहता है जिब्राल्टर। सदियों पहले पुर्तगाल और स्पेन पर मुस्लिम विजय की कहानी जुड़ी है बस इसको ही आधार बनाकर पाकिस्तान आगे बढ़ा। दरअसल, जिब्राल्टर पश्चिम की ओर बढ़ रही अरबी सेना का पहला बड़ा पड़ाव था। पाकिस्तानी हुक्मरान भ्रम में थे कि कुछ ऐसा ही यहां होगा। उन्हें लगता था कि कश्मीर के सहारे वो पूरे भारत को फतह कर लेंगे।
पाकिस्तान के खतरनाक इरादे हुए जब फेल
पाकिस्तान ने सोचा तो यही था कि घुसपैठियों के कांधे पर चढ़कर वो कश्मीर हथिया लेगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं। इस 'कोडनेम' की हवा चरवाहे जागीर ने निकाल दी। पाकिस्तान को कश्मीर पर नियंत्रण हासिल करने की मंशा पर पानी फिर गया और उसे करारी शिकस्त झेलनी पड़ी। जो चोरी छुपे करना चाहता था उसकी कलई खुली और 1965 का जंग हुआ जिसमें पाक चारों खाने चित्त हो गया।
1965 में पाकिस्तान का क्या था प्लान
'फ़्रॉम कच्छ टू ताशकंद' में फ़ारूख़ बाजवा ने लिखा है पाकिस्तान भारत में चालबाजी से विद्रोह की चिंगारी भड़काना चाहता था। असल में पाकिस्तान चाहता था कि इन घुसपैठियों के जरिए वो घाटी में सांप्रदायिकता के बीज बोए। बड़ी मुस्लिम आबादी को भारत सरकार के खिलाफ उकसाए और अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत के खिलाफ माहौल बनाए। प्लानिंग फुलप्रूफ थी जो धरी की धरी रह गई।
चरवाहे जागीर से हारा पाकिस्तान
हुआ यूं कि अगस्त 1965 में पाक सैनिक गुलमर्ग में स्थानीय लोगों के भेष में गुलमर्ग पर ठिकाने बनाने लगे। जागीर चरवाहा था उसने देखा, उनके पास पहुंचा। कश्मीरी चरवाहे पर घुसपैठियों ने भरोसा कर लिया। अपनी करतूतों को अमली जामा पहनाने के लिए 'फिरेन' (कश्मीरी पोशाक) और टोपी मंगवा ली। जागीर समझ गया और सच्चे कश्मीरी का फर्ज अदा करते हुए पूरी खबर सेना और पुलिस तक पहुंचा दी। नतीजतन दुश्मन फिर फेल हो गया।
चरवाहे जागीर को मिला पद्म श्री
पाकिस्तान ने जिस जिब्राल्टर ऑपरेशन के लिए बड़े बड़े मंसूबे पाले थे वो मिट्टी में मिल गए। भारतीय सेना ने अद्मय साहस का परिचय दिया और दुश्मन सेना को बैरंग लौटा दिया। इस जीत के बाद एक आम कश्मीरी चरवाहा खास बन गया उसे पद्म श्री से नवाजा गया। सत्रह सप्ताह तक चले इस युद्ध में दोनों पक्षों के हजारों लोग हताहत हुए तथा द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बख्तरबंद वाहनों का सबसे बड़ा मुकाबला तथा सबसे बड़ा टैंक युद्ध देखा गया।
सेना ने दिया था अदम्य साहस का परिचय
युद्ध का अधिकांश हिस्सा कश्मीर में और भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा पर देशों की थल सेना द्वारा लड़ा गया था। इस युद्ध में 1947 में भारत के विभाजन के बाद से कश्मीर में सैनिकों का सबसे बड़ा जमावड़ा देखा गया। अधिकांश लड़ाइयां पैदल सेना और बख्तरबंद इकाइयों द्वारा लड़ी गईं, जिन्हें वायु सेना और नौसेना अभियानों से पर्याप्त समर्थन मिला।
भारत की जीत
युद्ध विराम की घोषणा के समय भारत पाकिस्तान पर बढ़त बनाए हुए था। इस संघर्ष को पाकिस्तान की रणनीतिक और राजनीतिक हार के रूप में देखा जाता है, क्योंकि वह कश्मीर में विद्रोह भड़काने में सफल नहीं हुआ और भारतीय सेना लाहौर तक पहुंच गई थी।
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