कब, क्यों और कौन कर सकता है मौत के बाद डेड बॉडी दान, डोनेशन में मिले लाश का क्या करते हैं डॉक्टर
हम अक्सर सुनते हैं कि डॉक्टर जिन डेड बॉडी पर टेस्ट करते हैं, मेडिकल परीक्षण करते हैं, ट्रेनिंग लेते हैं वो दान में मिले होते हैं। ये दान कई बार कई कारणों में चर्चा में रहता है, जैसे कभी कोई गरीब आर्थिक तंगी की वजह से बॉडी दान कर जाता है, तो कभी कोई शख्स खुद मरने से पहले अपनी डेड बॉडी को दान के लिए समर्पित कर जाता है, तो कभी मौत के बाद परिजन कर जाते हैं। ऐसे में सवाल ये है कि भारत में कब, क्यों और कौन डेड बॉडी दान कर सकता है? दान मिले में डेड बॉडी के साथ डॉक्टर क्या-क्या कर सकते हैं? क्या कहता है नियम
कौन कर सकता है डेड बॉडी दान
हाल ही में जब कम्युनिस्ट पार्टी के नेता सीताराम येचुरी का निधन हुआ तो उनकी डेड बॉडी को उनकी इच्छानुसार एम्स को दान कर दिया गया, ताकि डॉक्टर उनपर रिसर्च कर सके। जिस तरह से सीताराम येचुरी ने अपनी डेड बॉडी दान की है, उसी तरह मृत्यु के बाद लगभग कोई भी व्यक्ति अपना पूरा शरीर दान कर सकता है। इसके लिए कोई ऊपरी आयु सीमा नहीं है। यहां तक कि जो लोग बहुत बीमार हैं वे भी इसके पात्र हो सकते हैं, क्योंकि शोधकर्ताओं को अक्सर ऐसे दाताओं की आवश्यकता होती है जिन्हें कोई विशिष्ट बीमारी या मेडिकल स्थिति हो। हां जो ऑर्गेन डोनेट करना चाहते हैं, उनके लिए जरूर कुछ शर्तें हैं।और पढ़ें
किसके पास है शव दान करने का अधिकार
भारत में, मृतक व्यक्ति के निकटतम संबंधी या अभिभावक वैज्ञानिक अनुसंधान, शिक्षा और शारीरिक अध्ययन के लिए मेडिकल कॉलेजों को अपना शरीर दान कर सकते हैं, भले ही मृतक पंजीकृत दाता न हो। इसके अलावा मरने से पहले शख्स खुद को डेडबॉडी दान करने के लिए पंजीकृत करा सकता है।
कैसे होता है डेड बॉडी दान
सबसे पहले किसी सरकारी मेडिकल कॉलेज के एनाटॉमी विभाग में जाए। शरीर दान करने वाले एनजीओ से संपर्क करें। मेडिकल कॉलेजों में उपलब्ध फॉर्म भरें। यहां कुछ बातें ध्यान में रखने योग्य हैं, जैसे- दाता को अपने परिवार के साथ अपनी इच्छाओं पर चर्चा करनी चाहिए और सुनिश्चित करना चाहिए कि वे इस प्रक्रिया से सहज हैं। शरीर को मृत्यु के छह घंटे के भीतर मेडिकल कॉलेज लाया जाना चाहिए। शरीर को माइनस 20 डिग्री के तापमान पर रखा जा सकता है या फॉर्मेलिन जैसे परिरक्षकों का इंजेक्शन लगाया जा सकता है। दाता की मृत्यु के बाद, मृतक (दाता) के रिश्तेदारों की यह जिम्मेदारी है कि वे एनाटॉमी विभाग को मृत्यु के बारे में सूचित करें और एनाटॉमी विभाग के संकाय के साथ दान की प्रक्रिया पर चर्चा करें।और पढ़ें
डेड बॉडी दान करने के लिए जरूरी कागजात
डेड बॉडी दान करने के लिए शख्स के निधन के बाद एमबीबीएस डॉक्टर द्वारा जारी मृत्यु प्रमाण पत्र जरूरी है। निकटतम संबंधी (निकटतम रिश्तेदार) की सहमति के साथ विधिवत भरा हुआ वसीयत फॉर्म चाहिए। पासपोर्ट आकार का एक फोटो जरूरी है। दानकर्ता का पहचान प्रमाण जैसे वोटर कार्ड/आधार कार्ड होना जरूरी है। मेडिकल कॉलेज को शरीर दान करने के संबंध में स्थानीय पुलिस स्टेशन से अनापत्ति प्रमाण पत्र।और पढ़ें
कौन-कौन नहीं कर सकते हैं बॉडी दान
यदि डेडबॉडी दान करने वाला शख्स: एचआईवी, संक्रामक हेपेटाइटिस, सक्रिय तपेदिक, सेप्सिस, गैस गैंग्रीन, टेटनस संक्रमण, COVID-19 पॉजिटिव, सड़क यातायात दुर्घटना के बाद का शरीर, मेडिको-लीगल केस या किसी अन्य प्रकार की अप्राकृतिक मृत्यु या फिर लाश जब ज्यादा दिन की हो गई तो ऐसे में शवदान नहीं किया जा सकता है। क्योंकि ऐसे शव मेडिकल छात्रों और उन्हें संभालने वाले कर्मचारियों के लिए गंभीर स्वास्थ्य खतरा हो सकते हैं।और पढ़ें
दान में दिए गए लाश के साथ क्या होता है
दान किए गए डेड बॉडी का उपयोग चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान के उद्देश्य से किया जाता है, जिसमें शारीरिक परीक्षण और अनुसंधान शामिल हैं। इसका उपयोग मेडिकल छात्रों द्वारा मानव शरीर की संरचना के बारे में जानने के लिए किया जाता है। छात्रों को मानव शरीर का “अनुभव” मिलता है जो किताबों के अध्ययन के माध्यम से प्राप्त करना अद्वितीय और असंभव है। इन शरीरों का उपयोग जीवित रोगियों पर किए जाने से पहले “रोबोटिक सर्जरी” जैसी नई सर्जिकल तकनीकों का अभ्यास करने के लिए भी किया जाता है। शव का या तो तुरंत उपयोग किया जा सकता है या भविष्य में उपयोग के लिए अलग-अलग समय के लिए संरक्षित किया जा सकता है। पूर्ण उपयोग के बाद, अवशेषों का वैज्ञानिक तरीके से निपटान कर दिया जाता है।और पढ़ें
किस नियम के तहत होता है डेड बॉडी दान
शरीर दान को एनाटॉमी अधिनियम द्वारा नियंत्रित किया जाता है, जो "मृत व्यक्तियों के शवों (या दान किए गए शवों या मृत व्यक्तियों के किसी अंग) को शारीरिक परीक्षण और विच्छेदन तथा अन्य समान उद्देश्यों के लिए अस्पतालों और चिकित्सा एवं शिक्षण संस्थानों को आपूर्ति करने की अनुमति देता है। संपूर्ण शरीर दान का अर्थ है किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसके शरीर को चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान के उद्देश्य से उपयोग के लिए किसी चिकित्सा संस्थान को दान करना। शरीर दान करने का यह निर्णय सूचित, स्वतंत्र इच्छा से लिया जाना चाहिए, अर्थात शरीर दान करने वाला व्यक्ति अपनी इच्छा से ऐसा करे, न कि किसी मजबूरी में।और पढ़ें
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