भारतीय सेना की इस बटालियन में क्यों शामिल किया जाता है बकरा, रोचक है ये कहानी
कुमाऊं रेजिमेंट का अपना समृद्ध इतिहास है। लेकिन कुमाऊं रेजिमेंट में बकरे की भर्ती होती है, यह सुनकर शायद आपको अजीब लगे। लेकिन यह प्रथा 1963 से चली आ रही है। दरअसल उस समय लॉन्ग रेंज पेट्रोल यूनिट गस्ती से वापस लौट रही थी। आगे बढ़ रही यूनिट की गाड़ी के पीछे-पीछे एक बकरा दौड़ते हुए यूनिट की लोकेशन तक पहुंच गया। बकरे के वहां पहुंचने पर कुमाऊं रेजिमेंट के जवानों ने उसे अपने साथ रख लिया और उसका नाम सतवीर रखा गया। चलिए जानते हैं इस बारे में विस्तार से
बकरे का नामकरण कैसे
कुमाऊं रेजिमेंट ने बकरे का नाम यूं ही नहीं रख दिया, बल्कि इसके लिए अधिकारियों की एक टीम बनाई गई थी। काफी सोच विचार के बाद सतवीर नाम तय किया गया। सतवीर को अंग्रेजी में SATVIR लिखा जाता है और इसके हर एक लैटर का अपना मतलब है।
पहले तीन लैटर्स का मतलब
SATVIR में S का मतलब कुमाऊं रेजिमेंट की सातवीं बटालियन से है। A बटालियन के मोटो को दर्शाता है, जबकि T उस समय के कमांडिग ऑफिसर कर्नल थांबू के नाम से लिया गया था।
दूसरे तीन लैटर्स का मतलब
SATVIR में V लैटर उस समय के सैकेंड इन-कमांडर विश्वनाथ के नाम से लिया गया है। I उस समय वरिष्ठ कंपनी कमांडर रहे ईश्वर सिंह दहिया के नाम का पहला इनीशियल है, जबकि R उस समय के सूबेदार मेजर रावत के नाम ले लिया गया है।
समय-समय पर प्रमोशन भी
बकरे का यह नामकरण 1963 में ही कर दिया गया था, लेकिन आधिकारिक तौर पर यह नाम 1965 में दिया गया। उसी समय बकरे को लांस नायक का पद भी दिया गया। तब से बकरे का लगातार प्रमोशन होता रहता है। 1968 में उसे नायक के पोस्ट पर प्रमोट किया गया और 1971 में उसे हवलदार बनाया गया।
हर 10 साल में रिटायरमेंट
सतवीर को भारत-तिब्बत सीमा से सटे कुमाऊं क्षेत्र से लाया जाता है। छोटे बकरे को ही सेना में शामिल कर लिया जाता है। 1963 से चली आ रही यह प्रथा अब भी चल रही है। हर 10 साल में एक सतवीर रिटायर हो जाता है और उसकी जगह दूसरा बकरा ले लेता है।
3 बंदूकों की सलामी
सातवीं बटालियन का इन बकरों से इतना लगाव है कि वह स्वयं को भी सतवीर बटालियन कहती है। सतवीर सैनिकों की तरह सुबह-शाम की परेड करता है और मेहमानों का स्वागत भी करता है। सतवीर की मौत होने पर उसे सैन्य सम्मान और तीन बंदूकों की सलामी दी जाती है।
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