साइबेरिया में लगातार बढ़ रहा 'गेटवे टू हेल', अंतरिक्ष से दिखता है 'रहस्यमयी दरवाजा'

Gateway to Hell: रूस के साइबेरिया में 'गेटवे टू हेल' यानी 'नरक का दरवाजा' धीरे-धीरे खुलता जा रहा है। इसे आप कुदरता का करिश्मा कहिये या कुछ और, लेकिन 'गेटवे टू हेल' जिसका आकार स्टिंगरे जैसा प्रतीत होता है, वह लगातार बढ़ता जा रहा है। लगभग 30 साल में इसका आकार तीन गुना बढ़ चुका है। आलम यह है कि इसे अब अंतरिक्ष से भी देखा जा सकता है। साइबेरिया के बेहद ठंडे इलाके में मौजूद इस क्रेटर के लगातार बढ़ने की वजह से वैज्ञानिक हैरान हैं।

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लगातार बढ़ रहा 'नरक का दरवाजा'

Batagaika Crater: साइबेरिया के 'गेटवे टू हेल' को बटागे क्रेटर या बटागाइका क्रेटर (Batagay Crater) भी कहा जाता है। रूसी लोग इसे आम बोलचाल की भाषा में 'नरक का दरवाजा' या 'नरक का रास्ता' भी कहते हैं। (फाइल फोटो)

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30 साल में 3 गुना बढ़ा गड्ढा

Siberian Crater: पिछले 30 सालों में बटागाइका क्रेटर का आकार लगातार बढ़ रहा है। अमेरिकी जियोलॉजिकल सर्वे के मुताबिक, क्रेटर का आकार 1991 और 2018 के बीच तीन गुना बढ़ा है। (फाइल फोटो)

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तेजी से पिघल रहा पर्माफ्रॉस्ट

रूस में स्थित पर्माफ्रॉस्ट पृथ्वी के गर्म होने की वजह से तेजी से पिघल रहा है, जो विज्ञानियों की चिंता बढ़ाने वाला है। इसी वजह से बटागाइका क्रेटर का आकार लगातार बढ़ रहा है। (फाइल फोटो)

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क्या होता है पर्माफ्रॉस्ट

Permafrost: लंबे समय से जमी हुई जमीन को पर्माफ्रॉस्ट कहा जाता है। आसान भाषा में समझें तो कम से कम दो साल तक जीरो डिग्री सेल्सियस पर जमी हुई जमीन पर्माफ्रॉस्ट कहलाती है। आमतौर पर पर्माफ्रॉस्ट मिट्टी, चट्टानों और रेत के किसी एक स्थान पर एकत्रित होने की वजह से बनते हैं। (फाइल फोटो)

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क्या गड्ढा है बटागाइका क्रेटर?

बटागाइका क्रेटर असल में कोई गड्ढा नहीं है, बल्कि पर्माफ्रॉस्ट का एक हिस्सा है, जिसे रेट्रोग्रेसिव थॉ स्लंप कहते हैं। इस तरह के गड्ढे उस वक्त बनते हैं जब पर्माफ्रॉस्ट की बर्फ पिघलती है और भूधंसाव होता है।

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पर्माफ्रॉस्ट में होते हैं मृत जीव

बटागाइका क्रेटर की स्टडी से यह समझने में आसानी हुई कि हमारा ग्रह आखिर किस दिशा की ओर बढ़ रहा है, क्योंकि पर्माफ्रॉस्ट में मृत जीव और पेड़-पौधे मौजूद होते हैं, जिसकी वजह से पर्माफ्रॉस्ट में कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसी गैस जमा होती है।

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ग्लोबल वार्मिंग का खतरा

पर्माफ्रॉस्ट के पिछलने की वजह से कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसी गैस वातावरण में मिल जाती है जिसकी वजह से ग्लोबल वॉर्मिंग का खतरा बना रहता है।