सूर्य की बारीकी से जांच करने वाला ESA का मिशन प्रोबा-3 लॉन्च करेगा ISRO, जानें 5 बड़ी बातें
Proba-3 Mission: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र से यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) के प्रोबा-3 मिशन को लॉन्च करने वाला है। इसको लेकर तैयारियां जोरों शोरों से चल रही हैं। सूर्य की बारीकी से जांच करने के उद्देश्य से लॉन्च करने वाले मिशन में दो सैटेलाइट शामिल हैं। हाल ही में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री जितेंद्र सिंह ने ईएसए के प्रोबा-3 मिशन की लॉन्चिंग के बारे में जानकारी दी थी।
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क्या है प्रोबा-3 मिशन?
प्रोबा-3 मिशन ईएसए की एक महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष परियोजना है। इसका मुख्य उद्देश्य सूर्य के बाहरी वातावरणस जिसे सौर कोरोना कहा जाता है, का अध्ययन करना है। इस मिशन के तहत दो सैटेलाइट 60,000 किमी की ऊंचाई पर मिलकर एकसाथ काम करेंगे। (फोटो साभार: ESA)
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मिशन का उद्देश्य
प्रोबा-3 मिशन का उद्देश्य दो सैटेलाइट की मदद से सूर्य के वातावरण की जांच करना है। ऐसे में एक सैटेलाइट सूर्य की रोशनी को ढकने की कोशिश करेगी तो दूसरी सूर्य के कोरोना को देखेगा और नई जानकारियां एकत्रित करेगा। (फोटो साभार: ESA)
छिप जाता है कोरोना
अमूमन सूर्य की तीव्र चमक की वजह से मंद कोरोना छिप जाता है और उसके बारे में ज्यादा जानकारियां नहीं मिल पाती हैं। ऐसे में यह मिशन सूर्य की सतह के पहले से कहीं ज्यादा नजदीक से कोरोना का निरीक्षण और विश्लेषण करने में मदद करेगा। जिसकी बदौलत सौर गतिविधियों के बारे में कुछ नया पता चल सकेगा। (फोटो साभार: ESA)
कब लॉन्च होगा प्रोबा-3 मिशन?
प्राप्त जानकारी के मुताबिक, अगर सब कुछ ठीक रहा तो ईएसए के प्रोबा-3 मिशन को दिसंबर के पहले सप्ताह में श्रीहरिकोटा से पीएसएलवी रॉकेट द्वारा लॉन्च किया जाएगा। बता दें कि मिशन 4 दिसंबर को लॉन्च हो सकता है। (फोटो साभार: ISRO)
ESA ने इसरो को ही क्यों चुना?
ESA जिस ऊंचाई पर मिशन को भेजना चाहता है उसके लिए एरियन-6 रॉकेट सक्षम है, लेकिन बहुत ज्यादा पैसा खर्च होता। ऐसे में इसरो का विकल्प चुना गया, जो किफायती होने के साथ-साथ ईएसए के सैटेलाइट को उच्च कक्षा में पहुंचाने की क्षमता रखता है।
सूर्य का वातावरण
प्रोबा-3 के दो सैटेलाइट को PSLV-XL लांचर द्वारा एकसाथ लॉन्च किया जाएंगे। प्रोबा-3 के दो सैटेलाइट सूर्य के आसपास के वायुमंडल का निरंतर दृश्य देख पाएंगे, जो पहले सूर्यग्रहण के दौरान केवल कुछ क्षणों के लिए ही पृथ्वी से दिखाई देता था। (फोटो साभार: ISRO)
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