Badrinath Temple History: बद्रीनाथ धाम यात्रा जाने से पहले जान लें इस मंदिर का इतिहास और कहानी
Badrinath Temple History: चार धामों (बद्रीनाथ, द्वारिकापुरी, रामेश्वरम और जगन्नाथपुरी) में से एक है बद्रीनाथ धाम मंदिर। हिंदुओं की आस्था का प्रतीक ये तीर्थस्थल उत्तराखंड राज्य के चमोली में स्थित है। ऐसा माना जाता है कि इस प्राचीन मंदिर का निर्माण 7वीं से 9वीं सदी के बीच में हुआ था। ये मंदिर केवल 6 तक श्रद्धालुओं के लिए खुलता है। अप्रैल में इस मंदिर के कपाट खोले जाते हैं और नवंबर में बंद किए जाते हैं। जानिए बद्रीनाथ मंदिर के बारे में रोचक बातें।
क्यों कहते हैं बद्रीनाथ
भगवान विष्णु के इस धाम के पास एक समय में जंगली बेरी यानि बद्री प्रचुर मात्रा में पाई जाती थी। इसी बद्री के कारण इस धाम का नाम बद्रीनाथ पड़ा। वहीं बद्रीनाथ नाम के पीछे एक कथा भी प्रचलित है। कहते हैं कि एक समय भगवान विष्णु जब तपस्या में लीन थे तभी अचानक हिमपात होने लगा। तब माता लक्ष्मी ने एक बेरी यानि बदरी के पेड़ का रुप लेकर उन्हें धूब, वर्षा और हिम से बचाया। जब भगवान विष्णु ने अपनी आंखे खोली तो देखा की मां लक्ष्मी स्वयं हिम से ढकी हुई हैं। भगवान विष्णु माता लक्ष्मी के तप से प्रसन्न हुए और उन्होंने कहा कि इस धाम को मुझे तुम्हारे साथ पूजा जायेगा। चूंकि माता लक्ष्मी ने बदरी वृक्ष का रूप धारण कर उनकी रक्षा की है इसलिये श्री विष्णु ने कहा कि मुझे यहां बदरी के नाथ यानि बदरीनाथ के नाम से जाना जायेगा।
मंदिर में भगवान बद्रीनारायण की प्रतिमा किसने स्थापित की थी
बद्रीनाथ मंदिर में भगवान विष्णु के अवतार बद्रीनारायण की पूजा होती है। यहां उनकी 1 मीटर लंबी शालिग्राम से बनी हुई मूर्ति है। ऐसी मान्यता है कि इस प्रतिमा की स्थापना आदि शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में की थी। ऐसा भी मान्यता है कि भगवान विष्णु जी की ये मूर्ति यहां खुद ही स्थापित हो गई थी।
बद्रीनाथ मंदिर की महिमा
स्कंद पुराण में बद्रीनाथ मंदिर का जिक्र करते हुए लिखा गया है कि, 'बहुनि सन्ति तीर्थानि दिव्य भूमि रसातले। बद्री सदृश्य तीर्थं न भूतो न भविष्यतिः॥', इसका अर्थ है कि, ‘तीनों ही जगहों अर्थात स्वर्ग, पृथ्वी और नर्क में यूं तो कई तीर्थ स्थान है लेकिन इनमें से ना ही कोई स्थान बद्रीनाथ जैसा है, ना था, और ना ही कभी होगा।
ऐसे खोजा था भगवान विष्णु ने यह स्थान
धार्मिक मान्यताओं अनुसार भगवान विष्णु जब अपने ध्यान-योग के लिए एक उचित स्थान खोज कर रहे थे, तभी उन्हें अलकनन्दा के समीप की जगह काफी अच्छी लगी। तब नीलकण्ठ पर्वत के पास बाल रूप में भगवान विष्णु ने अवतार लिया और वो रोने लगे। उनका रोना सुनकर माता पार्वती बालक के समीप आई और उसे मनाने का प्रयास करने लगीं। तब बालक ने माता पार्वती से ध्यानयोग करने के लिए वह स्थान मांग लिया। कहते हैं ये पवित्र स्थान वर्तमान में बद्रीनाथ के रूप में प्रसिद्ध हो गया।
यहां छह महीने नारद जी करते हैं पूजा
बद्रीनाथ धाम के कपाट सर्दियों के मौसम में यानि पूरे 6 महीने बंद रहते हैं। मान्यता है कि इन 6 महीने में देवर्षि नारद यहां भगवान की पूजा करते हैं। कहते हैं मंदिर के कपाट बंद करते समय जो यहां ज्योति जलाई जाति है वो कपाट खुलने के बाद भी वैसे ही जलती हुई मिलती है।
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